पटना

Bihar Elections : 10000 रुपये का ‘चुनावी च्युंइगम’! क्या राज्य की इकोनॉमी में है इसकी भरपाई का दमखम?

बिहार में विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है। इस बार मतदान दो चरणों में होगा। चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दलों ने बड़े-बड़े वादे किए हैं, जो सरकारी खजाने को खस्ताहाल कर सकते हैं।

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Oct 07, 2025
बिहार में दो चरण में मतदान होगा। (फोटो : एएनआई)

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दलों ने वादों और कल्याणकारी योजनाओं की झड़ी लगा दी है। लेकिन सवाल यह है कि क्या राज्य की कमजोर आर्थिक हालत इन योजनाओं का बोझ झेल पाएगी? ताजा आंकड़े बताते हैं कि बिहार की अर्थव्यवस्था अब भी केंद्र पर निर्भर है और रोजगार, शिक्षा और गरीबी के मोर्चे पर स्थिति चिंताजनक है।

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35000 करोड़ की लोकलुभावन योजनाएं

बता दें कि बिहार सरकार और केंद्र ने मिलकर जुलाई से अब तक महिला रोजगार, मुफ्त बिजली, श्रमिकों और ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए करीब 35000 करोड़ रुपये की लोकलुभावन योजनाओं का ऐलान किया है। इनके अलावा इंफ्रा के विकास के लिए भी कई योजनाएं शुरू हुई हैं। जानकारों का तर्क है कि बीमार वैसे ही बीमारू राज्य की श्रेणी में आता है और अब चुनाव से पहले सरकारी खजाने पर इतना बोझ डालना कहां तक सही है। क्या वाकई जनता को यह सहूलियतें नियमित रूप से मिलती रहेंगी?

राज्य की विकास दर तेज, पर आधार कमजोर

वित्तीय वर्ष 2024–25 के लिए बिहार की वास्तविक जीएसडीपी वृद्धि दर (Real GSDP growth) 8.6% आंकी गई है, जो भारत के औसत से कहीं अधिक है। लेकिन यह आंकड़ा भ्रम पैदा कर सकता है क्योंकि यह Low Base Efeect यानी बीते सालों की कमजोर अर्थव्यवस्था से तुलना पर आधारित है। राज्य की प्रति व्यक्ति आय (State per capita income) अब भी राष्ट्रीय औसत के आधे से भी कम है। 2024–25 में यह लगभग 60,000 से 65,000 रुपये के बीच रही, जबकि देश का औसत 1.7 रुपये लाख से अधिक है।

फंड के लिए केंद्र सरकार पर निर्भर

इसके साथ ही राज्य की अर्थव्यवस्था का आकार जरूर बढ़ा है, लेकिन राजस्व संरचना केंद्र पर निर्भर है। बिहार के कुल राजस्व प्राप्तियों में से लगभग 75% हिस्सा केंद्र से ट्रांसफर होता है, यानी राज्य की अपनी कर वसूली (Own Tax Revenue) सीमित है। कर संग्रह सीमित है, क्योंकि उद्योग और सर्विस सेक्टर का विस्तार बहुत धीमा है। ऐसे में पार्टियों द्वारा मुफ्त बिजली, बेरोजगारी भत्ता, छात्रवृत्ति और कैश ट्रांसफर जैसी घोषणाएं राजकोषीय संतुलन के लिए खतरा बन सकती हैं।

रोजगार और गरीबी है सबसे बड़ी चुनौती

बिजनेस स्टैंडर्ड के आंकड़ों के मुताबिक 15 साल से ऊपर के लोगों की बेरोजगारी दर गिरकर 3% पर आ गई है, जबकि राष्ट्रीय औसत 3.2 फीसदी है। यह थोड़ा उत्साहजनक है। गरीबी दर करीब 33.76% बताई गई है, यानी हर 3 में एक व्यक्ति गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहा है।

पलायन सबसे बड़ी चिंता

औद्योगिक आधार कमजोर होने के कारण पलायन लगातार जारी है। लाखों युवा रोजगार की तलाश में दिल्ली, पंजाब, गुजरात और महाराष्ट्र की ओर जाते हैं। यही कारण है कि तेजस्वी यादव का '10 लाख नौकरियों' का वादा इस चुनाव में फिर बड़ा मुद्दा बना है।

शिक्षा-हेल्थ में कुछ सुधार हुआ

बिहार ने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुछ सुधार दिखाए हैं, लेकिन अंतर अब भी व्यापक है।

  • साक्षरता दर (15-49 साल के लोग) : पुरुषों के मामले में बिहार की साक्षरता दर 77.8 फीसदी है जबकि भारत के संबंध में 85.7% है। वहीं महिलाओं का लिट्रेसी रेट 55 फीसदी जबकि राष्ट्रीय स्तर पर 71.5 फीसदी है।
  • मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Ratio) 104 प्रति लाख जन्म है, जबकि राष्ट्रीय औसत 88 है।
  • लिंगानुपात (Gender Ratio) : 1,000 पुरुषों पर लगभग 897 महिलाएं हैं, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 917 है।

कैश ट्रांसफर से राजकोषीय दबाव बढ़ेगा

राज्य की वित्तीय स्थिति पहले से ही तंग है। औसत मासिक खुदरा मुद्रास्फीति (Average monthly retail inflation) 2024-25 में 6 % रही, जबकि राष्ट्रीय औसत 4.63 रहा। खाद्य वस्तुओं और ईंधन की कीमतों में उतार-चढ़ाव से ग्रामीण इलाकों पर असर साफ दिखा। राज्य का राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) अब जीएसडीपी का 4.0% है, जो FRBM (Fiscal Responsibility and Budget Management) की सीमा (3%) से ऊपर है। इसका मतलब यह कि राज्य खर्च बढ़ा रहा है लेकिन राजस्व उतनी तेजी से नहीं बढ़ पा रहा। राजस्व व्यय (Revenue Expenditure) 85.8% तक पहुंच चुका है, जबकि पूंजीगत व्यय (Capital Outlay) 13.3% ही है, यानी विकास से जुड़ा खर्च बहुत सीमित है।

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