1985 के विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा मुस्लिम एमएलए जीते थे। उसके बाद या पहले यह आंकड़ा नहीं छुआ गया।
बिहार में भले ही 2 करोड़ से ज्यादा मुस्लिम आबादी हो, लेकिन विधानसभा में उनका प्रतिनिधित्व नाम मात्र का रहा है। 2023 की जाति जनगणना में उनकी कुल आबादी, 13 करोड़ जनसंख्या वाले राज्य में, 2.3 करोड़ निकली पर 243 सदस्यीय विधानसभा में मात्र 19 मुस्लिम विधायक हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या कुल 7.64 करोड़ थी। इनमें मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 1.29 करोड़ थी। बिहार में इतनी बड़ी संख्या में मतदाता होने के बावजूद मुस्लिम प्रतिनिधित्व विधानसभा और संसद में अपेक्षित स्तर पर नहीं है, जो राजनीतिक असमानता को दर्शाता है।
1985 के विधानसभा चुनाव में सर्वाधिक 34 मुस्लिम एमएलए बने थे। उसके बाद या पहले कभी यह आंकड़ा इस मुकाम तक नहीं पहुंचा। 2020 के विधानसभा चुनाव में उत्तर-पूर्वी सीमांचल क्षेत्र में असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली AIMIM ने जबरदस्त बढ़त बनाकर हलचल मचा दी थी। जिस पार्टी का बिहार में खास जनाधार नहीं था, उसने इस क्षेत्र में 5 सीटें जीतीं, जबकि पूरे राज्य में कुल मुस्लिम विधायक 19 रहे।
| राजनीतिक दल | 2005 (फरवरी) | 2005 (अक्टूबर) | 2010 | 2015 | 2020 |
| AIMIM | 5/5 | ||||
| BJP | 1/91 | 0/74 | |||
| BSP | 1/2 | 1/1 | |||
| Congress | 3/10 | 4/9 | 3/4 | 6/27 | 4/19 |
| CPIML | 1/7 | 01/05 | 1/3 | 1/12 | |
| IND | 1/17 | 1/10 | 0/1 | ||
| JDU | 4/55 | 4/88 | 7/115 | 5/71 | 0/43 |
| LJP | 1/10 | 1/3 | 0/1 | ||
| NCP | 2/3 | 1/1 | 0/0 | ||
| RJD | 11/75 | 4/54 | 7/22 | 12/80 | 8/75 |
| SP | 1/4 | ||||
| कुल | 24 | 16 | 19 | 24 | 19 |
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि AIMIM ने 2020 के चुनाव में सीमांचल जैसे मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मुस्लिम राजनीति का एजेंडा अपनाया। इस क्षेत्र में जहां मुस्लिम आबादी कम से कम 40% तक है, AIMIM ने इसको भुनाया। पार्टी के उम्मीदवारों में कई ऐसे नेता थे, जिनका पहले से राजनीतिक अनुभव रहा था। उदाहरण के तौर पर अमौर से जीतने वाले अख्तरुल ईमान पहले RJD विधायक रहे हैं, जबकि बहादुरगंज के अंजार नईमी ने भी पहले RJD के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था। इस तरह की राजनीतिक पृष्ठभूमि ने AIMIM को सीमांचल में मजबूत आधार दिया। साथ ही, उसने दोनों प्रमुख मुस्लिम समाज समूहों-सूरजपुर शेख और कुलहैया के वोट जुगाड़ने की रणनीति अपनाई।
2020 में कांग्रेस पार्टी ने मुस्लिम समाज के शैक्षिक वर्ग के उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी, जो अक्सर AMU या JNU जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से जुड़े होते हैं। कांग्रेस ने कुल 12 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, लेकिन इन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली। हालांकि, कांग्रेस के 3 मुस्लिम विधायक फिर चुने गए। वहीं, RJD ने मुस्लिम यादव समीकरण को सही ढंग से बनाए रखा है। इसके कुल 8 मुस्लिम विधायक चुने गए थे, जो 2015 में 12 थे। RJD ने कई ऐसे क्षेत्रों में जीत हासिल की, जहां पहले गैर-मुस्लिम विधायक थे।
| जिले | मुस्लिम जनसंख्या का प्रतिशत | 2020 विधानसभा के बाद जदयू के पास कितनी विधानसभा सीटें हैं | 2015 विधानसभा के बाद जदयू के पास कितनी विधानसभा सीटें हैं |
| किशनगंज | 67.98% | 0/4 | 2/4 |
| कटिहार | 44.47% | 1/7 | 0/7 |
| पूर्णिया | 38.46% | 1/7 | 2/7 |
| अररिया | 42.95% | 1/6 | 3/6 |
| कुल | 3/24 | 7/24 |
जदयू के मुस्लिम उम्मीदवारों को बड़ी विफलता मिली। पूरे राज्य में जदयू के 11 मुस्लिम उम्मीदवारों में से एक भी विजयी नहीं हुआ। इससे साफ हुआ कि मुस्लिम मतदाता जदयू को न केवल बिहार आधारित पार्टी के रूप में नहीं देखते, बल्कि उसे बीजेपी का सहयोगी मानते हैं। इसी तरह, लोजपा के 7 मुस्लिम उम्मीदवार भी चुनावी मुकाबले हार गए। यानी मुस्लिम वोटर के बीच NDA से असहमति व्यापक है।
पसमांदा मुसलमानों की राजनीतिक भागीदारी को लेकर भी एक नया आंदोलन उभरा। Ansari Mahapanchayat (AMP) ने 2019 में यह बात उठाई कि 11% आबादी वाले अंसारी समुदाय के पास कोई विधायक या सांसद नहीं है। AMP ने 5 उम्मीदवार उतारे, लेकिन इनमें से कोई भी नहीं जीता। इससे यह संकेत मिलता है कि जातिगत आधार पर चलने वाली राजनीति अब तक बिहार में प्रभावी नहीं हो सकी है। मुसलमानों की राजनीतिक भागीदारी का प्रमुख उद्देश्य अब भी बीजेपी और उसके सहयोगियों को हराना रहा है। सीएसडीएस लोकनीति सर्वे के मुताबिक 2014 में जदयू ने लेफ्ट के साथ लोकसभा चुनाव लड़ा था तो उसे 23.5 फीसदी मुस्लिम वोट मिले थे। वहीं 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में राजद-कांग्रेस के महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ा तो उसे कुल मुस्लिम वोटर का 80 फीसदी वोट मिला।
| गठबंधन | लोकसभा 2024 | विधानसभा चुनाव 2020 | लोकसभा 2019 | विधानसभा चुनाव 2015 | लोकसभा 2014 |
| भाजपा के साथ | भाजपा के बिना | ||||
| जदयू गठबंधन | 12% | 5% | 6% | 80% | 23.50% |
| इंडिया/एमजीबी | 87% | 76% | 80% | 65% |
राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि ऐतिहासिक रूप से बिहार में कांग्रेस के पास लंबे समय तक मुस्लिम वोट बैंक रहा, लेकिन 1989 में भागलपुर हिंसा के बाद मुस्लिम वोटर राजद के साथ आ गए। आज स्थिति यह है कि मुस्लिम मतदाता राजनीति में केवल विरोधी ताकत नहीं बल्कि सशक्तिकरण, शिक्षा, रोजगार और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर अपनी भागीदारी को मजबूत करना चाहते हैं। इसलिए सभी राजनीतिक दलों को उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए जातिगत समीकरण से ऊपर उठकर बेहतर नीतियां अपनानी होंगी।
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