दीघा विधानसभा क्षेत्र से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के उम्मीदवार की खूब चर्चा हो रही है। इसके पीछे कोई विवादित कारण नहीं बल्कि उनका कनेक्शन है। जानिए दिव्या गौतम का सुशांत सिंह राजपूत से क्या कनेक्शन है।
पटना के दीघा विधानसभा क्षेत्र में इस बार का चुनावी माहौल अचानक गरम हो गया है। वजह सिर्फ राजनीतिक उठापटक नहीं, बल्कि एक ऐसा चेहरा है जो अपने कनेक्शन के कारण सुर्खियों में है। नाम है दिव्या गौतम। दिव्या, दिवंगत बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की चचेरी बहन हैं और उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन [CPI(ML)] ने दीघा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है। दिव्या की उम्मीदवारी ने इस शहरी सीट को इस चुनाव का सबसे रोचक हॉटस्पॉट बना दिया है।
दिव्या गौतम का नाम भले ही चुनावी गलियारों के लिए नया हो, लेकिन उनकी पहचान सीधे तौर पर सुशांत सिंह राजपूत की विरासत से जुड़ी है। सुशांत देश के एक जानेमाने चेहरे थे और उनकी मौत ने सबको झकझोर दिया था। दिव्या ने स्पष्ट किया है कि वह सिर्फ सुशांत की बहन बनकर नहीं, बल्कि लोगों के लिए वह एक सशक्त आवाज बनकर उभरी हैं। वह कहती हैं कि उनका लक्ष्य सिर्फ चुनाव जीतना नहीं है, बल्कि शिक्षा, सामाजिक न्याय, युवाओं के रोजगार और महिलाओं के अधिकार जैसे मूलभूत मुद्दों को केंद्रीय राजनीति में लाना है।
दिव्या गौतम का बैकग्राउंड उन्हें बिहार की पारंपरिक राजनीति से अलग खड़ा करती है। उनकी शैक्षणिक यात्रा काफी प्रभावशाली रही है। उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। अपने करियर की शुरुआत उन्होंने कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में की थी। उन्होंने BPSC पास कर सरकारी नौकरी भी हासिल की थी, लेकिन राजनीति में सक्रिय भागीदारी के लिए उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी।
दिव्या के इस फैसले पर उनका कहना है कि कभी-कभी सुकून नौकरी में नहीं, लोगों के बीच मिलता है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि राजनीति उनके लिए सत्ता का साधन नहीं, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का माध्यम है।
दीघा विधानसभा सीट पटना की सबसे बड़ी और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सीटों में से एक है। यह क्षेत्र तेजी से शहरीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहा है और यहां की जनसंख्या में युवा वोटरों और मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या अधिक है। शहरी और अर्ध-शहरी आबादी के मिश्रण वाली यह सीट, परंपरागत रूप से जातीय समीकरणों के साथ-साथ विकास और योग्यता को भी महत्व देती है।
दिव्या मानती हैं कि सुशांत का दुखद अंत उनके परिवार के लिए एक व्यक्तिगत क्षति थी, लेकिन उनकी याद ने उन्हें मजबूत बनाया। उन्होंने कहा कि सुशांत ने हमेशा उन्हें अपने सपनों को जिंदा रखने और बिना डरे आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि दिव्या गौतम की यह उम्मीदवारी न सिर्फ दीघा सीट का मुकाबला त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय बनाएगी, बल्कि पारंपरिक राजनीतिक दलों पर भी एक शिक्षित और साफ छवि के उम्मीदवार को उतारने का दबाव बनाएगी।