नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में विभिन्न उद्योगों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को अपनाने से GDP में उछाल आएगा। इससे भारत की जीडीपी को 600 अरब डॉलर का फायदा होगा, लेकिन वैश्विक जगत में इसे लेकर आशंका भी जाहिर की जा रही है। पढ़ें पूरी खबर...
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को लेकर दुनिया भर में कोतूहल है। आम लोगों के बीच यह धारणा बैठ गई है कि अगले कुछ सालों में यह लाखों नौकरियां छीन लेगा, लेकिन नीति आयोग की ताजा रिपोर्ट इसके एकदम उलट तस्वीर पेश करती है। नीति आयोग की रिपोर्ट ‘विकसित भारत के लिए एआइ: त्वरित आर्थिक वृद्धि के लिए अवसर’ के मुताबिक, भारत में विभिन्न उद्योगों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को अपनाने से GDP में उछाल आएगा। साल 2035 तक भारत की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 500 से 600 अरब डॉलर तक की वृद्धि आ सकती है।
यही नहीं, नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि आर्टफिशियल इंटेलिजेंस से वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी तगड़ा फायदा पहुंचेगा। AI वैश्विक अर्थव्यवस्था में 17 से 26 ट्रिलियन डॉलर तक योगदान दे सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के पास विशाल एसटीईएम (साइंस, टेनोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिस) कार्यबल, तेजी से बढ़ता रिचर्स एंड डेवलपमेंट इकोसिस्टम और मजबूत डिजिटल क्षमताएं हैं, जिनसे वह वैश्विक AI इकोनॉमी का 10 से 15 प्रतिशत हिस्सा हासिल कर सकता है।
नीति आयोग के CEO बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने रिपोर्ट लॉन्च करते हुए कहा कि AI केवल उत्पादकता और नवाचार को नया आयाम ही नहीं देगा, बल्कि भारत में रोजगार भी बढ़ाएगा। उनके अनुसार, 2035 तक एआइ से भारतीय अर्थव्यवस्था में लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर का अतिरित योगदान संभव है।
रिपोर्ट के मुताबिक, एआइ का सबसे बड़ा प्रभाव वित्तीय सेवाओं व विनिर्माण क्षेत्रों में देखने को मिलेगा। अनुमान है कि इनके माध्यम से GDP में एआइ का योगदान 20 से 25 प्रतिशत तक हो सकता है। वित्तीय सेवाओं में 50 से 55 अरब डॉलर और विनिर्माण में 85 से 100 अरब डॉलर तक की अतिरिक्त प्रोडक्टिविटी जुड़ने की संभावना है।
हालांकि, वैश्विक जगत में AI को लेकर कुछ चिंताएं भी सामने आई हैं। वैश्विक स्तर पर AI को लेकर कई प्रोजेक्ट्स असफल हो रहे हैं। लोगों को आशंका है कि कहीं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी कहीं डॉटकॉम बबल की तरह फट न जाए। ’द जेनएआइ डिवाइड: स्टेट ऑफ एआई बिजनेस 2025’ के अनुसार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर चल रहे प्रोजेक्ट्स में आधे से ज्यादा बजट सेल्स और मार्केटिंग ऑटोमेशन पर खर्च हो रहे हैं।
आरएनडी पर इसकी तुलना में खर्च कम हो रहे हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक कंपनियां बिना कस्टमाइजेशन के बड़े भाषा मॉडल अपना रही हैं, जिससे पायलट प्रोजेक्ट्स तो शुरू होते हैं, लेकिन बडे़ पैमाने पर नाकाम हो जाते हैं। अमेरिका के प्रतिष्ठित कॉलेज MIT ने अपने ट्रायल में पाया कि उन्नत AI मॉडल भी दफ्तर के सिर्फ 30 फीसदी काम ही विश्वसनीय तरीके से कर पा रहे हैं। MIT ने बताया था कि AI में 44 अरब डॉलर के निवेश किया गया। इसमें 90 फीसदी डूब गए।
डॉट कॉम बबल वह दौर है, जब 1990 के दशक के अंत में इंटरनेट कंपनियों में अंधाधुंध निवेश हुआ। बिना ठोस बिजनेस मॉडल के शेयरों के दाम तेजी से बढ़े और 2000-2001 में बाजार ध्वस्त हो गया। इधर गूगल ने भी रिक्रूटमेंट प्रॉसेस में एआइ धोखाधड़ी पर सख्ती की है।