Hemkund Sahib Trek: 60 वर्ष से अधिक उम्र में भी शहर के किशोर पारख ने हौसले की मिसाल पेश करते हुए 15,200 फीट ऊंचे हेमकुण्ड साहिब और 12,100 फीट ऊंची फूलों की घाटी की सफल चढ़ाई की। चार दिन में 45 किमी की ट्रेकिंग, विपरीत मौसम और कठिन रास्तों के बावजूद तिरंगा फहराया।
Hemkund Sahib Trek: उम्र सिर्फ एक संख्या है—यह बात शहर के वरिष्ठ ट्रैकर किशोर पारख ने एक बार फिर साबित कर दी। 60 वर्ष से अधिक उम्र में भी उन्होंने 8 अगस्त को 12,100 फीट ऊंची फूलों की घाटी और 9 अगस्त को 15,200 फीट ऊंचे हेमकुण्ड साहिब की कठिन चढ़ाई सफलतापूर्वक पूरी की। चार दिन में 45 किमी से अधिक की ट्रैकिंग, विपरीत मौसम, भूस्खलन और पत्थरों के गिरने के खतरे के बावजूद उन्होंने तिरंगा फहराकर देशभक्ति और साहस का अद्वितीय संदेश दिया।
शहर के वरिष्ठ ट्रैकर किशोर पारख ने एक बार फिर उम्र की सीमा को चुनौती देते हुए पर्वतारोहण का नया रिकॉर्ड बनाया है। 60 वर्ष से अधिक की उम्र होने के बावजूद उन्होंने 8 अगस्त को 12,100 फीट ऊंची फूलों की घाटी और 9 अगस्त को 15,200 फीट ऊंचे हेमकुण्ड साहिब की सफल चढ़ाई पूरी की।
किशोर पारख 16 सदस्यीय पहाड़ी एडवेंचर दल के साथ 5 से 12 अगस्त तक चले इस अभियान में शामिल हुए। यात्रा देहरादून से शुरू हुई, लेकिन ऋषिकेश में गंगा के तेज उफान और जिला प्रशासन के ऑरेंज अलर्ट के कारण दल को टिहरी गढ़वाल बांध मार्ग से होते हुए गोविंदघाट पहुंचना पड़ा। सामान्यत: 7-8 घंटे का सफर विपरीत परिस्थितियों में 12 घंटे में पूरा हुआ।
7 अगस्त को पुलना से 10 किमी की कठिन चढ़ाई के बाद दल घांघरिया (10,003 फीट) पहुंचा। अगले दिन 6.5 किमी की सीढ़ीनुमा चढ़ाई पार कर सदस्य यूनेस्को विश्व धरोहर घोषित फूलों की घाटी पहुंचे, जहां जुलाई-अगस्त में रंग-बिरंगे फूलों की चादर बिछी रहती है। शाम तक दल बेस कैंप लौट आया।
9 अगस्त को रक्षा बंधन और श्रावणी पूर्णिमा के अवसर पर दल ने 6 किमी की चढ़ाई कर प्रसिद्ध तीर्थस्थल हेमकुण्ड साहिब का रुख किया। साफ मौसम और पहाड़ों पर खिले हजारों ब्रह्मकमल का दृश्य अद्भुत था। दर्शन और अरदास के बाद दल ने 15,200 फीट की ऊंचाई पर तिरंगा फहराकर सफल चढ़ाई का जश्न मनाया।
Hemkund Sahib Trek: किशोर पारख ने बताया कि 10 अगस्त को दल ने 10 किमी उतराई कर गोविंदघाट वापसी की। कुल चार दिनों में 45 किमी से अधिक की ट्रेकिंग हुई। मौसम की कठिन चुनौतियों, भूस्खलन और पत्थरों के गिरने के खतरे के बावजूद सभी सदस्य सुरक्षित लौटे। यात्रा के अंत में दल ने बदरीनाथ धाम और चीन सीमा के पास बसे अंतिम भारतीय गांव ‘माणा’ के भी दर्शन किए।