Sunday Guest Editor: रायपुर में गरियाबंद और धमतरी जिले के 71 गांव जिसमें कुछ गांव पहाड़ पर तो कुछ जंगलों के अंदर बसाहट लिए हुए हैं।
Sunday Guest Editor: सरिता दुबे. छत्तीसगढ़ के रायपुर में गरियाबंद और धमतरी जिले के 71 गांव जिसमें कुछ गांव पहाड़ पर तो कुछ जंगलों के अंदर बसाहट लिए हुए हैं। इन गांवों में बीते 16 सालों से काम करने वाली उमा ध्रुव बताती हैं कि पहले तो गांव के लोग मुझे देखकर ही भागते थे लेकिन अब वे मेरे साथ अपनी समस्या साझा करते हैं तो लगता है कि अब कुछ तो बदल रहा है। कमार समुदाय का मुख्य कार्य बांस के सामान बनाना ही है। वो खेती-किसानी नहीं करते, लेकिन उमा की समिति के लोगों ने कमार समुदाय के पर्यावास अधिकार पर कार्य करते उन्हें वनोपज से जोड़ा।
कमार समुदाय आज भी शिक्षा से वंचित है। सरकार ने स्कूल तो खोले हैं, लेकिन उन स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक जिलों में ही अपनी ड्यूटी करते हैं। जंगल और पहाड़ पर कोई नहीं जाता, लेकिन उमा ने समुदाय में जागरुकता की ऐसी अलख जगाई की समुदाय के लोग अब खुद से आगे आने लगे हैं। जो लोग पहले उमा को देखकर भागते थे, वही लोग अब उमा की बात सुनते हैं और अब समुदाय की महिलाएं भी आगे आने लगी हैं।
उमा बताती हैं कि पर्यावास अधिकार जनजातीय समुदायों को सुरक्षा व संरक्षण का अधिकार देता है। मैंने 14 साल की उम्र से ही इन लोगों के लिए काम करने वाली संस्था खोज एवं जनजागृति समिति के साथ जुड़कर काम करना शुरू किया। आज 16 साल बाद जब परिवर्तन देखती हूं तो सुकून मिलता है।
सोच: पारंपरिक ज्ञान और जागरुकता से बचाई जा सकती है विरासत।
उमा कहती हैं कि हम लोग कमार समुदाय के लिए पर्यावास अधिकार पर काम करते है। पर्यावास अधिकार जनजातीय समुदायों को सुरक्षा व संरक्षण का अधिकार देता है। ये अधिकार समुदायों को सशक्त बनाते हैं, उनकी संस्कृति को बनाए रखने में मदद करते हैं, और पीढ़ियों से चले आ रहे पारंपरिक ज्ञान और आजीविका के साधनों को संरक्षित करते हैं।