Chhath Puja 2025, Nahay Khay: नहाय खाय छठ पूजा का पहला दिन होता है, जिसमें श्रद्धालु पवित्रता की ओर अग्रसर होते हैं। इस दिन को शुद्धता और स्वच्छता के दिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भक्तगण नदियों या जलाशयों में स्नान करते हैं और घर की सफाई करते हैं।
Chhath Puja 2025, Nahay Khay Day 1: छठ पूजा, एक प्रमुख हिंदू त्योहार है, जो विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मइया की पूजा के लिए समर्पित है। नहाय खाय छठ पूजा का पहला दिन होता है, जिसमें श्रद्धालु पवित्रता की ओर अग्रसर होते हैं। इस दिन को शुद्धता और स्वच्छता के दिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भक्तगण नदियों या जलाशयों में स्नान करते हैं और घर की सफाई करते हैं। साथ ही, इस दिन एक विशेष प्रकार का प्रसाद पकाया जाता है, जिसे बाद में सूर्य देवता को अर्पित किया जाता है।
छठ महापर्व का पहला दिन ‘नहाय-खाय’ के नाम से जाना जाता है। यह दिन पवित्रता और संयम का प्रतीक है। इसी दिन से व्रती महिलाएं छठ के कठोर व्रत की शुरुआत करती हैं।
नहाय-खाय केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और संयम का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन स्नान और सात्विक भोजन से शरीर और मन दोनों पवित्र होते हैं। यह दिन नकारात्मकता और पापों से मुक्ति का संकेत देता है। छठ व्रत का मूल भाव है जीवन में शुद्धता, आस्था और सूर्य देव के प्रति कृतज्ञता को बनाए रखना।नहाय-खाय को नए जीवन की शुरुआत का दिन भी कहा जाता है। यह वही क्षण होता है जब व्रती अपनी संतान, परिवार और समाज की सुख-समृद्धि के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं।
इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं भोर में उठकर सबसे पहले घर की साफ-सफाई करती हैं। इसके बाद गंगा, नदी या तालाब में स्नान करना शुभ माना गया है। यदि संभव न हो, तो घर में गंगाजल मिलाकर स्नान किया जा सकता है। स्नान के बाद नई या स्वच्छ वस्त्र धारण करके छठ व्रत का संकल्प लिया जाता है।इसके पश्चात भगवान सूर्य की पूजा कर जल अर्पित किया जाता है। भोजन में शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है इस दिन व्रती चना दाल, कद्दू की सब्जी और चावल का सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। भोजन में लहसुन-प्याज का प्रयोग वर्जित होता है।
नहाय-खाय के दिन जो भोजन बनाया जाता है, उसे पहले सूर्य देव को अर्पित किया जाता है, फिर व्रती महिला स्वयं ग्रहण करती हैं। इसके बाद परिवार के अन्य सदस्य भोजन करते हैं। यह परंपरा घर में पवित्रता और समर्पण का प्रतीक मानी जाती है।