धर्म और अध्यात्म

Diwali 2025: सूरज से जुड़ा है दीया के जन्म का धार्मिक किस्सा, जानिए इससे जुड़ी मान्यता और तथ्य

Diwali 2025: एक प्राचीन मान्यता के अनुसार, दीपक का जन्म स्वयं सूर्य देव के एक अंश से हुआ था। आइए जानते हैं इससे जुड़ी रोचक कथा और तथ्य।आईए जानते हैं इसके पीछे का विज्ञान और इससे जुड़ी रोचक कथाएं।

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Oct 18, 2025
Mythological story of Diya|फोटो सोर्स – Freepik

Diwali 2025: दीवाली के त्योहार में दीपक जलाने की परंपरा सिर्फ सांस्कृतिक ही नहीं, बल्कि गहरे धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व की भी है। एक प्राचीन मान्यता के अनुसार, दीपक का जन्म स्वयं सूर्य देव के एक अंश से हुआ था। आइए जानते हैं इससे जुड़ी रोचक कथा और तथ्य।आईए जानते हैं इसके पीछे का विज्ञान और इससे जुड़ी रोचक कथाएं।

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दीपक का जन्म कब और कैसे हुआ?

एक किवंदती के अनुसार पृथ्वी की परिक्रमा करते-करते सात घोड़ों के रथ पर बैठे-बैठे जब सूर्य देवता बहुत थक गए और उन्होंने विश्राम करना चाहा। ऐसे में उन्होंने देवताओं से पूछा कि है कोई जो मुझे अवकाश दे सके और सृष्टि के अंधकार को दूर कर सकें? इस पर सभी एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। किसी में भी इतनी क्षमता नहीं थी जोकि अंधकार को पराजित कर सके, तभी सूर्य के ही अंश से जन्मे एक नन्हे से दीपक ने सूर्य के प्रश्न का उत्तर दिया कि मुझमें अंधकार को चीरने की क्षमता है। दीपक यानी सूर्याश समवो दीप'। मानव जन्म के बाद अग्नि का आविष्कार और दीपक का उद्भव हुआ। मानव ने लगभग एक लाख वर्ष पूर्व जंगल की आग के उपयोग को समझा। उसे इस अग्नि के तीन उपयोग नजर आए। प्रकाश, ऊष्मा और भोजन पकाने का माध्यम। पुरातत्व काल के स्थानों की खुदाई में भी चार से आठ हजार साल पुराने सिंधु उत्तर वैदिक, कुषाण, गुर्जर, प्रतिहार वंश और मोहनजोदड़ो कालीन खुदाई में मिट्टी के दीपक मिले हैं।

भारतीय परंपरा का शाश्वत प्रतीक

भारत में सभी सरकारी और निजी कार्यक्रमों का शुभारम्भप्रज्ज्वलन के साथ होता है। सभी कार्य दीपक की मौजूदगी में ही सम्पादित होते हैं। दीपक जलाने की यह भारतीय परम्परा प्राचीन काल से चलती आ रही है और इसका आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। भगवान श्री राम के लंका विजय के बाद अयोध्या पधारने पर अति भव्य दीपावली मनाई गई थी जिसमें अनन्त दीप प्रज्वलित हुए थे।

दीपक की बदलती आकृति, आकार

मानव विकास के साथ दीपक के आकार एवं प्रकार में भी परिवर्तन हुए। प्रारम्भ में यह चहान पर महा बनाकर एवं सीप के बीपक के रूप में दिखा। धीरे-धीरे तांबा, पीतल कांसा, सोने, चांदी आदि के दीपक बने। विशेष अक्सरों पर जलाए जाने वाले वीपों को नैमिलिक वीप कहते हैं तथा निरंतर जलने वाले वीपों को नीराजन दीप तथा शयन कक्ष में जलाए जाने वाले दीपों को रतिदीप कहा जाता है। मंदिरों के आंगन में बड़े-बड़े दीप स्तम्भबनाए जाते हैं। वैष्णव दीपों में शंख, चक्र, गदा, पदम, गाणपत्य दीपों में गणपति, हाथी, मूषक एवं सर्प, शैवदीपों में नाग, नंदी, कीर्तिमुख तथा सौरदीप में सूर्य की आकृतियां बनाई जाती है। मान्यता है कि जब गायें, गोधूली वेला में घर लौटती है तो अपने साथ लक्ष्मी को लेकर भी आती है। मां लक्ष्मी कहीं भटक न जाए इसलिए उसके स्वागत में द्वार पर दीप जलाने की परम्परा शुरू हुई।

हर शुभ कार्य में दीपक जरूरी

त्योहारों में दीपक जलाने का विशेष महत्त्व है। शुभ मुहूर्त में पूजन करने के बाद दीपक जलाए जाते हैं। पूजा पद्धति में भी मंत्रोच्चार द्वारा दीपक के प्रज्ज्वलन एवं दर्शन का विधि विधान हैं। इसी तरह। शुभ कार्य करने से पूर्व दीप प्रज्ज्वलन करते समय शुभम् करोति कल्याणम, आरोग्यम धन सम्पदा, शत्रु-बुद्धि विनाशाय दीप ज्योति नमोस्तुते ।। श्लोक पढ़ा जाता है। आराध्य के लिए भक्त ॐ रं वहन्यात्यंक दीपं दर्शवानी।' मंत्रोच्चार द्वारा दीपक प्रकट करते है।

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Published on:
18 Oct 2025 02:00 pm
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