धर्म और अध्यात्म

Durga Puja: पूजा के बाद ये श्लोक पढ़कर जरूर करें क्षमा प्रार्थना, मां दुर्गा देंगी आशीर्वाद

Durga Puja: शारदीय नवरात्रि में दुर्गा पूजा में दुर्गा जी की प्रार्थना, दुर्गा स्तुति और पूजा के बाद क्षमा प्रार्थना इन श्लोकों से जरूर करनी चाहिए।

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Oct 04, 2024
Durga Puja shlok: नवरात्रि में पूजा के बाद जरूर पढ़ें ये क्षमा प्रार्थना

Durga Puja 2024: शारदीय नवरात्रि गुरुवार से शुरू हो गई है, इस साल पड़ रही दस दिन की नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा अर्चना की जाएगी। कई लोग सभी दिन व्रत उपवास रखेंगे तो कुछ लोग पहले और आखिरी दिन व्रत रखेंगे। साथ ही पूजा-अर्चना के साथ आखिरी दिन हवन करेंगे। लेकिन पूरी नवरात्रि कुछ श्लोक, मंत्र और प्रार्थना जरूर पढ़ना चाहिए। साथ ही पूजा के बाद क्षमा प्रार्थना भी करनी चाहिए। शारदीय नवरात्रि में करें इन श्लोकों और स्तुति का पाठ ..

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मां दुर्गा की प्रार्थना (Ma Durga Prarthana)


प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयम्‌ ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चंद्रघण्टेति कुष्मांडेति चतुर्थकं॥
पंचमं स्कंदमातेति, षष्टम कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति, महागौरीति चाष्टमं॥
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिताः॥

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते।।

शरणागत दीनार्तपरित्राण परायणे
सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोस्तु ते।।

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्य दु:ख भयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकार करणाय सदार्द्रचित्ता।।

सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते।।

सर्वबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यम् अस्मद् वैरि विनाशनम्।।

रोगानशेषानपंहसि तुष्टारुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता हि आश्रयतां प्रयान्ति।।

मां दुर्गा क्षमा प्रार्थना (Kshama Prarthana)


अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेहर्निशं मया।
दासोयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्‌।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे॥
अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत।
यां गतिं सम्वाप्नोते न तां बह्मादयः सुराः॥
सापराधो स्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके।
इदानीमनुकम्प्योहं यथेच्छसि तथा कुरु॥
अक्षानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्नयूनमधिकं कृतम्‌ ॥
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि॥
कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रेहे।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि॥
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतमं जपम्‌।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि॥

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