धर्म और अध्यात्म

Pitru Paksha 2025: क्या शास्त्रों में पितृ पक्ष में नवजात शिशु का श्राद्ध करने की भी निश्चित तिथि होती है? जानिए विस्तार से

Pitru Paksha 2025: बहुत से लोगों के मन में यह भी सवाल आते होंगे कि बड़े-बूढ़ों का पिंडदान आदि की क्रियाएं तो समझ आती हैं, लेकिन क्या छोटे नवजात बच्चों की अगर मृत्यु हो जाए, तो क्या उनकी भी कोई पितृकर्म की क्रिया होती है?

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Sep 15, 2025
Death rituals for infants in Hindu religion|फोटो सोर्स – Gemini@Ai

Pitru Paksha 2025: पितृ पक्ष हिंदू धर्म में अत्यंत ही पवित्र माना जाता है क्योंकि पितृ पक्ष के दौरान लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करते हैं। शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस अ काल (अवधि) में पितरों की आत्माएं धरती पर आती हैं और अपने वंशजों से जल एवं अन्न ग्रहण कर तृप्त होती हैं।7 सितंबर 2025 से लेकर 21 सितंबर 2025 तक पितृ पक्ष है।

यह 15 दिन बेहद ही पुण्य के माने गए हैं। लेकिन बहुत से लोगों के मन में यह भी सवाल आते होंगे कि बड़े-बूढ़ों का पिंडदान आदि की क्रियाएं तो समझ आती हैं, लेकिन क्या छोटे नवजात बच्चों की अगर मृत्यु हो जाए, तो क्या उनकी भी कोई पितृकर्म की क्रिया होती है?अगर आपके मन में भी यही सवाल है, तो हमने यहां बताने की कोशिश की है कि शहरों के अनुसार क्या स्पष्ट नियम हैं।

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क्या बच्चों का श्राद्ध किया जाता है?

शास्त्रों के अनुसार, यदि बच्चे की आयु छह वर्ष से कम हो और उसकी मृत्यु हो जाए, तो उसका श्राद्ध उसी तिथि पर किया जाता है जिस दिन उसकी मृत्यु हुई हो। यह विशेष तिथि ही उसका श्राद्ध दिवस माना जाता है।हालांकि, नवजात शिशु की मृत्यु हो जाने पर पारंपरिक श्राद्ध (पिंडदान) करने का विधान नहीं है, बल्कि उसके स्थान पर केवल तर्पण किया जाता है।

नवजात शिशु का तर्पण क्यों किया जाता है?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा प्रेत योनि में प्रवेश करती है और मोक्ष की प्राप्ति के लिए तृप्ति चाहती है।माना जाता है कि नवजात शिशु भी मृत्यु के बाद पितृगण में सम्मिलित हो जाता है।उसकी आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए तर्पण करना आवश्यक है।तर्पण के माध्यम से उसे प्रेत योनि से मुक्त करने का मार्ग खुलता है।शास्त्रों में यह भी उल्लेख है कि नवजात शिशु का पिंडदान नहीं किया जाता, केवल जल तर्पण का विधान है।

तिथि ज्ञात न हो तो क्या करें?

कभी-कभी ऐसा होता है कि बच्चे या किसी भी व्यक्ति की मृत्यु तिथि की जानकारी न हो। ऐसे में पितृपक्ष के दौरान त्रयोदशी तिथि पर तर्पण करने का नियम बताया गया है। इसे करने से भी पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष का मार्ग मिलता है।

गर्भपात या गर्भ में शिशु की मृत्यु होने पर

शास्त्रों में यह भी उल्लेख है कि यदि गर्भ में ही शिशु की मृत्यु हो जाए या गर्भपात हो जाए, तो ऐसी आत्मा का श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता।अजन्मे शिशु की आत्मा के लिए केवल ईश्वर से प्रार्थना करना और उसके मोक्ष की कामना करना ही पर्याप्त माना गया है।इसके लिए किसी प्रकार के पिंडदान या श्राद्ध का विधान नहीं है।

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Published on:
15 Sept 2025 01:15 pm
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