Shani Dev Vrat : शनिवार का व्रत शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से राहत पाने का सरल उपाय है। जानें संपूर्ण पूजा विधि, नियम, मंत्र और दान के महत्त्व।
Shani Dev Vrat : क्या आपको कभी ऐसा लगा है कि जिंदगी आपके सामने एक के बाद एक चुनौतियां ला रही है? चाहे वो आर्थिक परेशानियां हों, महत्वपूर्ण परियोजनाओं में देरी हो, या अप्रत्याशित कठिनाइयाँ हों, कई लोग मानते हैं कि ये संघर्ष ग्रहों की स्थिति, खासकर शनि देव से प्रभावित हो सकते हैं।
शनिवार का व्रत शनिदेव के दुष्प्रभावों को कम करने और अधिक संतुलित एवं शांतिपूर्ण जीवन के लिए उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के उद्देश्य से किया जाने वाला एक व्यापक अनुष्ठान है। यह व्रत खास तौर पर उन लोगों के लिए होता है जो शनि की ढैय्या या साढ़ेसाती से परेशान हैं, या फिर जिनकी कुंडली में शनि की स्थिति ठीक नहीं है। ऐसे लोग यह व्रत रखते हैं ताकि उन्हें शनि देव के अशुभ असर से राहत मिले और जीवन में सुख-शांति बनी रहे।
आज हम जानेंगे कि शनिवार का व्रत क्यों रखा जाता है, शनिवार व्रत कथा जो इसे एक गहरा अर्थ देती है, और आप इसके सकारात्मक प्रभावों का अनुभव करने के लिए यह व्रत कैसे कर सकते हैं।
शनिवार का व्रत रखने और भगवान शनि की पूजा करने से सभी बाधाएं और दुर्भाग्य दूर होते हैं। परंपरा के अनुसार, भक्त लोहे से बनी शनि प्रतिमाओं की पूजा करते हैं। पूजा शुरू करने के लिए वे भगवान को काले फूल, काले तिल और काले वस्त्र अर्पित करते हैं। कोई भी व्यक्ति किसी भी चंद्र मास के शुक्ल पक्ष के पहले शनिवार को इस शुभ अनुष्ठान की शुरुआत कर सकता है और इसे लगातार 11 या 51 शनिवारों तक जारी रखना चाहिए।
शनिदेव के 10 नामों का जाप करें- कोणस्थ, कृष्ण, पिप्पला, सौरि, यम, पिंगलो, रोद्रुतको, बभ्रु, मंद, शनास्तुरे।
बीज मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं शनिचराय नमः
एकाशरी मंत्र: ॐ शं शनैश्चराय नमः
“ओम नीलांजना सम भसम, रवि पुत्रम यमाग्रजम
काया मार्तण्ड समुभूतं, तम नमामि शनैश्चरम”।