Chitragupta Puja 2025: कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन भगवान चित्रगुप्त और भैया दूज का पर्व मनाया जाता है। जानें चित्रगुप्त पूजा की तिथि, पूजा विधि, महत्व और कलम पूजा का सही तरीका।
Chitragupta Puja 2025 : सनातन धर्म में प्रत्येक पर्व का एक गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व होता है। दीपावली के पांच दिवसीय पर्व के बीच आने वाला चित्रगुप्त पूजा का दिन भी बेहद खास होता है। यह पूजा न केवल भगवान चित्रगुप्त की आराधना का अवसर है, बल्कि इसी दिन भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का पर्व भैया दूज भी मनाया जाता है।
हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। भगवान चित्रगुप्त को कायस्थ समाज के आराध्य देव माना जाता है। वे यमराज के सचिव हैं, जो मनुष्य के अच्छे और बुरे कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। इसलिए इस दिन कायस्थ समाज के लोग विशेष रूप से पूजा-अर्चना करते हैं और अपने लेखन साधनों की पूजा कर उनसे ज्ञान और बुद्धि की प्रार्थना करते हैं।
इसी दिन भैया दूज का पर्व भी मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाई के माथे पर तिलक लगाती हैं, आरती उतारती हैं और उसकी लंबी आयु की कामना करती हैं। भाई बदले में अपनी बहन को उपहार देता है और जीवनभर उसकी रक्षा करने का वचन देता है। इस तरह यह दिन एक ओर धर्म और ज्ञान का प्रतीक है, तो दूसरी ओर भाई-बहन के स्नेह का उत्सव भी है।
दीपावली के अगले दिन यानी 24 घंटे बाद चित्रगुप्त पूजा का आयोजन किया जाता है। इस साल भी कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भगवान चित्रगुप्त की पूजा विधि-विधान से की जाएगी। इस दिन विशेष रूप से कलम, दवात और किताबों की पूजा का विधान है। कायस्थ समाज के लोग अपने घर या दफ्तर में चौकी सजाकर पूजा करते हैं। इस दिन वे अपने सालभर के व्यवसाय का लेखा-जोखा भगवान चित्रगुप्त के समक्ष रखते हैं और आगामी वर्ष में समृद्धि की प्रार्थना करते हैं।
सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूर्व दिशा में चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाएं। उस पर भगवान चित्रगुप्त की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। घी का दीपक जलाएं, चंदन, फूल और धूप अर्पित करें। फिर एक नई कलम और सादा कागज पूजा स्थल पर रखें। आरती के समय कलम की आरती करें और सादा कागज पर श्री गणेशाय नमः 11 बार लिखें। इसके बाद भगवान चित्रगुप्त से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति और ज्ञान-विवेक की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें। इस दिन पूजा के बाद परिवार में प्रसाद बांटने और भाई-बहन के बीच तिलक रस्म निभाने का भी विशेष महत्व है। ऐसा करने से परिवार में सौहार्द, समृद्धि और शुभता बनी रहती है।