Sikar Cattle Fair: सीकर के बेरी पशु मेले में मुर्रा नस्ल का भैंसा ‘सिंघम’ आकर्षण का केंद्र बना है। 34 महीने की उम्र में तीन करोड़ कीमत वाला यह भैंसा खास डाइट और दमदार काया से सबका ध्यान खींच रहा है। इसके वीर्य की कीमत 2400-2500 रुपए तक है।
Sikar Cattle Fair: सीकर जिले के बेरी गांव में चल रहे वार्षिक पशु मेले में इस बार एक भैंसा सबका ध्यान खींचे हुए है। मुर्रा नस्ल का यह भैंसा ‘सिंघम’ अपनी ताकतवर काया, चमकदार रूप और खास देखभाल के चलते मेले का सितारा बन गया है। इसकी कीमत करोड़ों में आंकी गई है और पशुपालक इसे देखने के लिए दूर-दराज से पहुंच रहे हैं।
भादवासी गांव के पशुपालक डॉ. मुकेश दूधवाल इस भैंसे के मालिक हैं। वे बताते हैं कि सिंघम की उम्र महज 34 महीने है, लेकिन इसने जिस तरह की कद-काठी और आभा विकसित कर ली है, वह किसी को भी हैरान कर सकती है।
इसकी अनुमानित कीमत लगभग तीन करोड़ रुपये रखी गई है। यही नहीं, सिंघम के वीर्य की मांग भी बाजार में काफी है, जिसकी एक बूंद की कीमत ढाई हजार रुपये तक पहुंच जाती है। यही वजह है कि यह भैंसा सिर्फ प्रदर्शनी का हिस्सा नहीं बल्कि कई पशुपालकों के लिए निवेश का बड़ा साधन भी है।
सिंघम की देखभाल किसी सदस्य से कम नहीं की जाती। इसके खान-पान पर हर महीने हजारों रुपये खर्च होते हैं। डॉ. मुकेश बताते हैं कि इसकी डाइट में ग्वार, बिनोला और अन्य पौष्टिक फीड शामिल है। खास बात यह है कि इसे नियमित समय पर खिलाने और स्वास्थ्य की निगरानी के लिए अलग से व्यवस्था की जाती है। यही कारण है कि इतनी कम उम्र में भी इसकी काया में संतुलन और दमखम साफ झलकता है।
मुर्रा नस्ल वैसे भी दूध उत्पादन के लिए जानी जाती है। सिंघम की मां रोजाना करीब 24 लीटर दूध देती है। यह नस्ल पंजाब-हरियाणा सहित उत्तर भारत में सबसे अधिक लोकप्रिय है और अब राजस्थान में भी इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है। सिंघम और इसकी मां की देखभाल इस बात का प्रमाण है कि यहां के पशुपालक गुणवत्ता और परंपरागत पद्धतियों के साथ आधुनिक तकनीकों का भी इस्तेमाल कर रहे हैं।
शेखावाटी क्षेत्र में अब तक खेती को ही प्रमुख व्यवसाय माना जाता था, लेकिन हाल के वर्षों में पशुपालन ने भी नई दिशा पकड़ी है। बेरी का यह छह दिवसीय मेला इसी बदलाव की झलक पेश करता है। यहां न केवल पशुओं की खरीद-फरोख्त होती है। बल्कि पशुपालकों को नई तकनीकों और उन्नत नस्लों की जानकारी भी दी जाती है।
आयोजकों का मानना है कि ऐसे मेलों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है और किसानों को पारंपरिक खेती के साथ अतिरिक्त आमदनी के नए रास्ते मिलते हैं। सिंघम जैसे पशु न सिर्फ गर्व का विषय बनते हैं बल्कि यह संदेश भी देते हैं कि समर्पित देखभाल और सही तकनीक के जरिये पशुपालन को लाभकारी व्यवसाय में बदला जा सकता है।