Salkhan Fossil Park UNESCO : सोनभद्र जिले में स्थित साल्खन फॉसिल पार्क दुनिया के सबसे पुराने और सबसे अच्छी तरह संरक्षित जीवाश्म स्थलों में से एक है। यहां पांच अलग-अलग क्लस्टर में स्ट्रोमैटोलाइट्स की सतहें उजागर हैं, जिनकी उम्र 1.4 से 1.6 अरब साल के बीच बताई जा रही है।
सोनभद्र : पूर्वी उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में स्थित साल्खन फॉसिल पार्क दुनिया के सबसे पुराने और सबसे अच्छी तरह संरक्षित जीवाश्म स्थलों में से एक है। अब इसे UNESCO की विश्व धरोहर सूची में शामिल कराने की दिशा में बड़ा कदम उठाया जा रहा है। लखनऊ स्थित बिरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पेलियोसाइंसेज (BSIP) ने उत्तर प्रदेश इको-टूरिज्म डेवलपमेंट बोर्ड और राज्य वन विभाग के साथ मिलकर पार्क के स्ट्रोमैटोलाइट्स (प्राचीन सायनोबैक्टीरिया द्वारा बनी परतदार संरचनाएं) का वैज्ञानिक दस्तावेजीकरण शुरू किया है, ताकि UNESCO विश्व धरोहर नामांकन के लिए मजबूत प्रस्ताव तैयार किया जा सके।
कैमूर वन्यजीव प्रभाग के गुर्मा रेंज में स्थित साल्खन फॉसिल पार्क लगभग 25 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है। विशेषज्ञों के अनुसार, यहां पांच अलग-अलग क्लस्टर में स्ट्रोमैटोलाइट्स की सतहें उजागर हैं, जिनकी उम्र 1.4 से 1.6 अरब साल के बीच बताई जा रही है।
अधिकारियों ने बताया कि जून 2025 में साल्खन फॉसिल पार्क को UNESCO की अस्थायी सूची (Tentative List) में प्राकृतिक धरोहर श्रेणी में शामिल कर लिया गया था। अब चल रहा फील्ड वर्क और स्ट्रोमैटोलाइट्स का दस्तावेजीकरण इसी नामांकन के लिए तकनीकी दस्तावेज (Dossier) तैयार करने का हिस्सा है।
ये परतदार, गुंबदाकार या स्तंभनुमा अवसादी संरचनाएं हैं, जो मुख्य रूप से सायनोबैक्टीरिया जैसे सूक्ष्मजीवों द्वारा उथले जल में कैल्शियम कार्बोनेट को फंसाकर और बांधकर बनाई जाती हैं। ये पृथ्वी पर जीवन के सबसे पुराने प्रमाण हैं, जिनकी उम्र 3.6 अरब साल तक जाती है। इन्होंने पृथ्वी के वायुमंडल में ऑक्सीजन बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई थी।
BSIP की जियोहेरिटेज और जियोटूरिज्म सेंटर की प्रमुख डॉ. शिल्पा पांडेय, जो शोध टीम का नेतृत्व कर रही हैं, ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, 'साल्खन का स्ट्रोमैटोलाइट्स क्षेत्र भारत में अब तक दस्तावेज किए गए सबसे साफ और वैज्ञानिक रूप से मूल्यवान प्रोटेरोजोइक माइक्रोबियल प्लेटफॉर्म में से एक है। हमारी चल रही फील्ड जांच में गुंबदाकार, स्तंभाकार और परतदार संरचनाएं बहुत अच्छी स्थिति में मिली हैं। इतनी पुरानी उम्र में भी इनका संरक्षण अद्भुत है। इससे हम माइक्रोबियल संचय, ऊर्ध्वाधर विकास और अवसाद फंसाने की प्रक्रिया को बड़ी स्पष्टता से समझ सकते हैं।'
डॉ. पांडेय ने बताया कि सबसे खास बात इसकी सघनता और निरंतरता है। एक छोटे से क्षेत्र में करीब एक हजार स्ट्रोमैटोलाइट्स संरचनाएं सतह पर ही दिखाई दे रही हैं, बिना किसी खुदाई के। साथ ही, ये डोलोमिटिक चूना पत्थर में होने से जल की प्राचीन रासायनिक स्थिति, जमाव की परिस्थितियां और शुरुआती ऑक्सीजन उत्पादन प्रक्रिया को समझने में बहुत मदद मिलती है।
अधिकारियों के मुताबिक, साल्खन को 'ग्रेट ऑक्सीडेशन इवेंट' का दुर्लभ आउटडोर अभिलेख कहा जा सकता है। तुलनात्मक अध्ययन बताते हैं कि साल्खन ऑस्ट्रेलिया के शार्क बे और यलोस्टोन जैसे प्रसिद्ध स्ट्रोमैटोलाइट स्थलों से भी पुराना और समकक्ष है।
पिछले साल जून में उत्तर प्रदेश इको-टूरिज्म बोर्ड और BSIP के बीच हुए MoU के तहत BSIP वैज्ञानिक अध्ययन, जियोहेरिटेज दस्तावेजीकरण और UNESCO नामांकन के लिए तकनीकी सामग्री तैयार कर रहा है, जबकि टूरिज्म बोर्ड आगंतुक सुविधाएं, व्याख्या केंद्र और संरक्षण आधारित पर्यटन की योजना बना रहा है। टीम गांव वालों और स्कूली बच्चों में भी जागरूकता फैला रही है कि ये साधारण पत्थर नहीं, बल्कि नाजुक जीवाश्म सतहें हैं जिन्हें संरक्षित करना जरूरी है।
एक अधिकारी ने कहा, 'UNESCO के दस्तावेज में स्पष्ट है कि साल्खन IUCN के जियोहेरिटेज थीम, जीवन का विकास और पृथ्वी का इतिहास में फिट बैठता है। खासकर मेसोप्रोटेरोजोइक काल के जीवाश्म रिकॉर्ड दुनिया में बहुत कम हैं, इसलिए साल्खन का वैश्विक महत्व और भी बढ़ जाता है।'
अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि कब यह प्राचीन जीवन का यह अनमोल खजाना UNESCO विश्व धरोहर की आधिकारिक सूची में अपना स्थान बना लेगा।
(Source- The Indian Express )