SIR Survey Bastar: बस्तर में सोशल आइडेंटिफिकेशन रजिस्टर (SIR) सर्वे का विरोध तेज। मनीष कुंजाम ने कहा- जल्दबाजी में हो रहे सर्वे से हजारों लोग वोटर लिस्ट और सरकारी योजनाओं से बाहर हो जाएंगे
SIR Survey Bastar: छत्तीसगढ़ में शुरू हुए सोशल आइडेंटिफिकेशन रजिस्टर (SIR) सर्वे को लेकर अब बस्तर में विरोध तेज हो गया है। बस्तरिया राज मोर्चा के संयोजक और पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने इस सर्वे को समय से पहले और ग्रामीणों के लिए घातक बताया है। उनका कहना है कि प्रशासन जल्दबाजी में डेटा इकट्ठा कर रहा है, जिससे हजारों लोग सरकारी योजनाओं और वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं।
उनका कहना है कि देश के कई राज्यों में एसआईआर पर सवाल उठ रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट में इसकी वैधता को चुनौती दी जा चुकी है। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव 2028 में हैं, ऐसे में यह सर्वे पूरी तरह समय से पहले और अनुचित है।
कुंजाम ने सवाल उठाया कि जब किसान खेतों में जुटे हैं, तब सर्वे टीमें गांवों में किससे डेटा इकट्ठा करेंगी। अभी खेतों में काम का वक्त है। जिन इलाकों में सर्वे टीम जाएगी, वहां गांव खाली मिलेंगे। बीएलओ भी कई जगह पहुँच नहीं पाएंगे। ऐसे में अधूरे या गलत डेटा से हजारों लोग सूची से बाहर हो जाएंगे। उन्होंने बताया कि बस्तर के 6 नक्सल प्रभावित जिलों में आज भी हजारों ग्रामीणों के पास शासकीय दस्तावेज नहीं हैं।
दशकों तक नक्सली हिंसा के कारण प्रशासन इन इलाकों से दूर रहा। अब जब शांति और विकास की प्रक्रिया शुरू हुई है, ऐसे समय में यह सर्वे ग्रामीणों के लिए भ्रम और संकट पैदा करेगा। कुंजाम का आरोप है कि एसआईआर की प्रक्रिया नागरिकता की जांच जैसी लग रही है। अगर किसी का नाम रजिस्टर से बाहर रह गया तो वह नागरिक अधिकारों और सरकारी योजनाओं से वंचित हो सकता है। मनीष कुंजाम ने कहा कि वे एसआईआर सर्वे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। 2028 का चुनाव जब छह महीने दूर रहेगा, तब सर्वे कराएं, अभी नहीं।
SIR Survey Bastar: कुंजाम ने कहा कि कोंटा के गोलापल्ली, किस्ताराम और माड़ के सुदूर इलाकों में अब तक शासन-प्रशासन नहीं पहुँचा है। वहां सर्वे का सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने चेताया कि यदि अब सर्वे कराया गया, तो एक लाख से ज्यादा ग्रामीणों के नाम सूची से गायब हो जाएंगे। सिर्फ सुकमा जिले में ही करीब 40 हजार लोग वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं।
उन्होंने कहा कि आज भी अधिकांश ग्रामीणों के पास केवल वन अधिकार पट्टा ही दस्तावेज के रूप में है। बाकी लोग उससे भी वंचित हैं। कुंजाम ने आरोप लगाया कि वोटर लिस्ट से नाम गायब होने का मतलब नागरिकता पर सवाल उठाना है। सरकार नागरिकता जांच के नाम से आएगी तो इसका विरोध होगा इसलिए चुनाव आयोग के माध्यम से कराया जा रहा है।