Manikarnika Ghat: मणिकर्णिका घाट से हर किसी को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। जानिए, किन लोगों का घाट पर दाह संस्कार नहीं हो सकता है?
Manikarnika Ghat: यूपी के वाराणसी के मणिकर्णिका घाट को आस्था, मोक्ष और रहस्य का संगम माना जाता है। यहां सदियों से लगातार चिताएं जलती आ रही हैं। काशी का 'महाश्मशान' भी मणिकर्णिका घाट को कहा जाता है। मणिकर्णिका घाट पर सभी की चिताएं नहीं जलाई जाती हैं।
मणिकर्णिका घाट पर हर शव का दाह संस्कार नहीं होता। यहां गर्भवती स्त्रियां, 12 वर्ष से छोटे बच्चे, सर्पदंश से मरे व्यक्ति या संत-महात्मा का दाह संस्कार नहीं किया जाता है।
मणिकर्णिका घाट से जुड़ी एक अनोखी परंपरा है। शव के दाह संस्कार पूरा होने के बाद जब चिता ठंडी होने लगती है, तब संस्कार करने वाला व्यक्ति राख पर लकड़ी या उंगली से '94' लिखता है। ऐसी मान्यता है कि यह प्रक्रिया मृत आत्मा की मुक्ति के लिए की जाती है। यहां 94 को मुक्ति मंत्र माना जाता है। मान्यताओं के मुताबिक, इस अंक को भगवान शिव स्वयं स्वीकार करते हैं। साथ ही आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाते हैं।
अगर आप सोच रहे हैं कि 94 ही क्यों? तो इसके पीछे भी एक मान्यता है। जिसके मुताबिक, कुल 100 गुण हर मनुष्य के पास माने जाते हैं। इनमें से 6 गुण- जीवन, मरण, यश, अपयश, लाभ और हानि ऐसे हैं जो ब्रह्मा द्वारा पहले से तय माने जाते हैं। ये गुण इंसान के वश में नहीं होते। अन्य 94 गुण इंसान के उसके अपने होते हैं। जिन्हें वह कर्म, विचार और अपने आचरण से संभालता है। इसी वजह से मणिकर्णिका घाट पर 94 लिखने का अर्थ होता है कि अपने जीवन के सारे 94 कर्म भगवान शिव को समर्पित करना। जिससे आत्मा अपने कर्मों के बंधन से मुक्त हो जाए और मोक्ष प्राप्त करे।
हालांकि, यह परंपरा कब शुरू हुई, इसका सही समय कोई नहीं जानता है। यह परंपरा पीढ़ियों से चलती हुई आ रही है। किसी धार्मिक ग्रंथ में भी इसका जिक्र नही मिलता है। बता दें कि केवल मणिकर्णिका घाट तक ही ये परंपरा सीमित है। साथ ही इसके रहस्य को वही लोग समझते हैं जो इस घाट पर पीढ़ियों से अंतिम संस्कार करते आ रहे हैं। नोट- ये खबर धार्मिक मान्यताओं के आधार पर है। पत्रिका न्यूज इसकी पुष्टि नहीं करती है।