चीन तिब्बत और शिनजियांग के बीच 2000 किमी लंबी रेल लाइन बनाने जा रहा है, जो अक्साई चिन और वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब से गुजरेगी। यह परियोजना 2035 तक पूरी होने की उम्मीद है, जिसका उद्देश्य तिब्बत को चीन के रेल नेटवर्क से जोड़ना और सीमा पर सैन्य तैनाती को मजबूत करना है।
तिब्बत-शिनजियांग के बीच 2000 किमी लंबी नई रेल परियोजना को धरातल पर लाने की तैयारी की जा रही है। यह रेल लाइन भारत के अभिन्न हिस्से अक्साई चिन के करीब से गुजरेगी। लाइन का रूट वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के काफी नजदीक है।
चीन 2008 से इस परियोजना की योजना बना रहा था। यह लाइन चीन के शिनजियांग के होतान को तिब्बत के ल्हासा को जोड़ेगी। शिगास्ते-ल्हासा व बीजिंग के बीच रेल संपर्क पहले से है।
नई लाइन की शुरूआत तिब्बत के शिगात्से से होगी। जो उत्तर- पश्चिम की तरफ नेपाल की सीमा के साथ चलेगी। औसत ऊंचाई 4500 मीटर होगी। जो कुल्लुन, कराकोरम, कैलाश और हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं से होकर गुजरेगी।
चीन के नई रेल लाइन में चुनौतियां भी है। मार्ग में हिमनद जमी हुई नदियां और स्थायी रूप से जमी मिट्टी की चुनौतियां रहेगी। रेलवे का पहला खंड शिगास्ते से पयुक्तसो तक होगा जो रुतोग और पांगोंग झील के पास से गुजरेगा।
इस परियोजना का लक्ष्य 2035 तक ल्हासा को केन्द्र में रखते हुए 5000 किलोमीटर का पठारी रेल नेटवर्क स्थापित करना है। इससे चीन और मजबूत होगा।
अक्साई चिन विवाद- अक्साई चिन भारत का हिस्सा है और यह 1950 से चीन के कब्जे में है। 1950 के दशक में चीन ने इसी क्षेत्र में हाइवे बनाया था जो 1962 में भारत-चीन युद्ध का प्रमुख कारण बना।
सीमा सुरक्षा- एलएसी के नजदीक रेल लाइन से चीन सेना व सैन्य उपकरणों तेजी से तैनात कर सकेगा।
चीन अपनी रेल लाइन को ल्हासा से नियंगची रूट से आगे चेंगदू तक बढ़ाने की तैयारी भी कर रहा है। साथ ही नेपाल-तिब्बत सीमा पर गियरोग व चांबी घाटी में यदोंग काउंटी तक भी रेल चलेगी। जहां 2017 में डोकलाम विवाद हुआ था। चीन पूर्व में यहां सड़क बना चुका है।