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दुनिया से ‘पिछड़ा’ सुपरपॉवर: अमेरिका की घड़ियां हुईं 4.8 माइक्रोसेकंड स्लो, जानें इसका आपके मोबाइल और वॉलेट पर क्या होगा असर

Time Lag: कोलोराडो में आए तूफान के कारण अमेरिका का समय दुनिया से 4.8 माइक्रोसेकंड पीछे हो गया है। इस तकनीकी गड़बड़ी से GPS, बैंकिंग और डिफेंस सिस्टम पर बड़े खतरे की आशंका जताई जा रही है।

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Dec 23, 2025
अमेरिका की परमाणु घड़ी पिछड़ गई है। ( फोटो: AI Generated)

America atomic clock failure: दुनिया को अपनी उंगलियों पर नचाने वाला अमेरिका खुद समय की दौड़ में थोड़ा पीछे रह गया है। हाल ही में एक ऐसी घटना घटी है, जिसने वैज्ञानिकों और तकनीकी विशेषज्ञों की नींद उड़ा दी है। अमेरिका का आधिकारिक समय दुनिया के मानक समय (America atomic clock failure) से 4.8 माइक्रोसेकंड पीछे (US Time Lag) हो गया है। सुनने में यह पलक झपकने से भी हजार गुना कम समय लगता है, लेकिन डिजिटल युग में यह एक बड़ा 'टाइम बम' साबित हो सकता है। इस पूरी गड़बड़ी की शुरुआत कोलोराडो के बोल्डर (Boulder) स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड्स एंड टेक्नोलॉजी (NIST) से हुई है। दरअसल, कोलोराडो (NIST Boulder Colorado) में आए भीषण तूफान के कारण बिजली आपूर्ति ठप हो गई थी। एहतियातन ग्रिड बंद किए गए, लेकिन इस दौरान NIST का बैकअप सिस्टम (जनरेटर) भी जवाब दे गया। इसी केंद्र में वह 'एटॉमिक क्लॉक' (परमाणु घड़ी) है, जो पूरे अमेरिका के लिए सटीक समय तय करती है। जैसे ही सिस्टम का तालमेल बिगड़ा(Atomic Clock Failure), अमेरिका का समय वैश्विक घड़ियों से कट गया और पीछे रह गया।

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क्यों है यह 4.8 माइक्रोसेकंड की देरी खतरनाक?

आम आदमी की कलाई पर बंधी घड़ी में कुछ माइक्रोसेकंड का फर्क कोई मायने नहीं रखता है, लेकिन आधुनिक तकनीक के लिए यह किसी आपदा से कम नहीं है।

GPS और नेविगेशन: जीपीएस सिस्टम पूरी तरह समय की सटीकता पर काम करता है। यदि समय में बाल बराबर भी अंतर आए, तो लोकेशन कई मीटर तक गलत हो सकती है।

शेयर बाजार का खेल: हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग में सेकंड के एक हजारवें हिस्से में करोड़ों के सौदे होते हैं। समय पीछे होने से ट्रांजैक्शन डेटा फेल हो सकता है।

इंटरनेट और टेलीकॉम: सर्वर और डेटा ट्रांसफर करने के लिए समय का 'सिंक' होना जरूरी है, वरना नेटवर्क क्रैश होने का खतरा रहता है।

इस पर विशेषज्ञों ने क्या कहा ?

NIST के वैज्ञानिकों ने इस घटना को "दुर्लभ लेकिन चिंताजनक" बताया है। भौतिक विज्ञानी जेफ शर्मन के अनुसार, परमाणु घड़ियां बहुत संवेदनशील होती हैं। बिजली की छोटी सी बाधा भी वर्षों की सटीकता को बिगाड़ सकती है। हालांकि, संस्थान ने भरोसा दिलाया है कि वे धीरे-धीरे समय को वैश्विक मानक (UTC) के बराबर ला रहे हैं, ताकि किसी भी बड़े सिस्टम को 'क्रैश' होने से बचाया जा सके।

अब आखिर आगे क्या होगा ?

बिजली बहाल होने के बाद अब विशेषज्ञ उस 'गैप' को भरने की कोशिश कर रहे हैं जो पैदा हो गया है। अमेरिका अपनी 20 से अधिक परमाणु घड़ियों को फिर से सिंक्रोनाइज़ (Synchronize) कर रहा है। आने वाले दिनों में यह जांच की जाएगी कि क्या इस माइक्रोसेकंड की देरी से किसी एयरलाइन, रक्षा प्रणाली या बैंकिंग सर्वर में कोई गुप्त गड़बड़ी तो नहीं हुई। इसके साथ ही, भविष्य के लिए अधिक मजबूत 'बैटरी बैकअप' सिस्टम पर काम शुरू हो गया है।

क्या रूस और चीन फायदा उठा सकते हैं ?

बहरहाल, इसे भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो समय का यह अंतर सुरक्षा में सेंध लगा सकता है। आधुनिक मिसाइल प्रणालियां और रडार भी परमाणु समय पर आधारित होते हैं। यदि किसी देश का समय 'सिंक' से बाहर होता है, तो उसकी डिफेंस प्रणाली कमजोर पड़ सकती है। तकनीकी जानकारों का मानना है कि इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि एक छोटा सा 'पॉवर कट' भी किसी महाशक्ति का डिजिटल ढांचा हिला सकता है।

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