समय के साथ अब अमेरिकी सुरक्षा गारंटी भरोसा खोती जा रही है। ऐसे में अब जापान और साउथ कोरिया, परमाणु हथियार बनाने के पक्ष में हो गए हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच सबसे बड़ा सवाल अमेरिका की सुरक्षा गारंटी पर उठा है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के रूस के प्रति झुकाव और सुरक्षा गारंटी पर स्पष्ट स्टैंड नहीं होने की वजह से यूरोप ही नहीं, जापान और साउथ कोरिया जैसे उसके सहयोगियों का भी विश्वास हिल गया है। परमाणु हमला झेलने के बाद दुनिया को शांति का संदेश वाला जापान अब प्लान-बी अपनाने के बारे में सोचने लगा है। जापान की सांसद रुई मात्सुकावा के अनुसार प्लान-बी सुरक्षा के लिहाज से आजाद होना और फिर अपने परमाणु हथियार बनाना है।
जापानी जनता लंबे समय से परमाणु हथियारों के खिलाफ रही है, लेकिन अब रुझान बदल रहा है। जापान में परमाणु हथियार बनाने के पक्ष वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है। कुछ ऐसा ही अमेरिका का करीबी सहयोगी साउथ कोरिया भी सोचने लगा है। एक सर्वे बताता के अनुसार लगभग 75% जनता अपने देश को परमाणु हथियार बनाने के पक्ष में मानती है। हालांकि दोनों ही देशों की सरकारों का रुख अभी भी दुविधा में नज़र आता है।
अमेरिका पर विश्वास की दरारें ट्रंप के आने से पहले भी दिखीं। पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक रूख पर अमेरिका नरम रहा। यूक्रेन का उदाहरण परमाणु हथियार छोड़ने वाले साउथ कोरिया को भी सोचने पर मजबूर करता है। इनके पड़ोसी देश भी चुनौती बन रहे हैं। चीन तेज़ी से अपना परमाणु भंडार बढ़ा रहा है। नॉर्थ कोरिया ने भी लगातार नई मिसाइलें बनाई हैं। ऐसे में जापान और साउथ कोरिया, दोनों के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है।
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि जापान तकनीकी रूप से आगे है और चाहे तो 6 महीने से 2 साल में परमाणु हथियार बना सकता है। उसके पास 45 टन प्लूटोनियम, उन्नत रिएक्टर, मिसाइल तकनीक और अंतरिक्ष कार्यक्रम जैसी बेहतर सुविधाएं हैं। साउथ कोरिया कोरिया तकनीकी रूप से अभी पीछे है क्योंकि उसके पास ईंधन प्रसंस्करण की क्षमता नहीं है।
परमाणु हथियार बनाने पर जापान के सामने एक मुश्किल भी है। अगर जापान ने परमाणु अप्रसार संधि का उल्लंघन किया तो उसे प्रतिबंध और ईंधन संकट का सामना करना पड़ सकता है।