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अरब-इस्लामिक देश क्यों बनाना चाहते हैं नाटो जैसा संगठन? जानिए इसके संभावित प्रभाव

अरब-इस्लामिक देश भी नाटो जैसी सुरक्षा ढाल बनाने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। क्या है पूरा मामला? आइए जानते हैं।

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Sep 22, 2025
Arab-Islamic 'NATO' (Representational Photo)

इज़रायल ने कतर की राजधानी दोहा में हमास की नेताओं को निशाना बनाते हुए बमबारी की थी। इस हमले के बाद से कतर भड़का हुआ है। कतर ने अरब-इस्लामिक देशों की एक अहम बैठक बुलाई थी जिसमें नाटो जैसे संगठन की स्थापना पर चर्चा हुई है। कतर पर हमले से पहले इज़रायल ने ईरान, लेबनान, सीरिया और यमन पर भी हमले किए हैं। इस दौरान अमेरिका, इज़रायल के पीछे ढाल बनकर खड़ा रहा है। कतर में हुए सम्मेलन में इज़रायल को लेकर अरब-इस्लामिक देशों के बीच व्यापक चर्चा हुई है और साथ ही इस बात पर भी जोर दिया गया है कि अब अरब-इस्लामिक देशों को नाटो जैसे संगठन की ज़रूरत है।

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क्या वास्तव में ऐसा संगठन संभव है?

वैसे देखा जाए तो अरब-इस्लामिक देशों के बीच यह विचार आकर्षक लगता है, लेकिन इसमें कई चुनौतियाँ भी हैं। कुछ अरब देशों के बीच भी आपसी दुश्मनी है। सऊदी अरब और ईरान जैसे देशों के बीच गहरे मतभेद हैं। इसके साथ ही कई अरब देश, अमेरिका और यूरोप पर आर्थिक और सैन्य मदद के लिए निर्भर हैं। मुस्लिम देशो में राजनीतिक अस्थिरता भी इस तरह के संगठन में बड़ी बाधा है। कई देशों में लोकतंत्र नहीं है और वो आंतरिक विद्रोह से जूझ रहे हैं। इन कारणों की वजह से अरब-इस्लामिक देशों के लिए इज़रायल विरोधी नाटो जैसा संगठन बनाना आसान नहीं होने वाला है।

क्या हो सकते हैं संभावित परिणाम?

अगर अरब-इस्लामिक देश वास्तव में नाटो जैसा संगठन बना लेते हैं, तो इसके कई परिणाम हो सकते हैं। संभव है कि मिडिल-ईस्ट में हथियारों की दौड़ तेज़ हो जाए। इस पर इज़रायल, अमेरिका और पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया भी तीखी होगी। अरब-इस्लामिक देशों के बीच आपसी राजनीति भी प्रभावित हो सकती है क्योंकि बदलते वक्त में सबके अपने-अपने हित हैं।

आंतरिक मतभेदों से ग्रस्त है अरब दुनिया

वैसे देखा जाए तो अरब-इस्लामिक देशों का इज़रायल के खिलाफ नाटो जैसा संगठन बनाने का विचार उनकी सुरक्षा चिंताओं, फिलिस्तीन के मुद्दे और इज़रायल की बढ़ती सैन्य ताकत से जुड़ा है। लेकिन वास्तविकता यह है कि अरब-इस्लामिक देश आज भी आंतरिक मतभेदों से ग्रस्त है। जब तक ये मतभेद दूर नहीं होंगे, तब तक ऐसा संगठन सिर्फ विचार तक ही सीमित है। फिर भी यह सोच इस बात को दर्शाती है कि अरब-इस्लामिक देशों के भीतर इज़रायल को लेकर अविश्वास और असुरक्षा गहरी है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अरब-इस्लामिक देश वास्तव में एकजुट होकर इज़रायल के खिलाफ कोई मज़बूत मोर्चा खड़ा कर पाते हैं या नहीं।

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