यूरोपीय देश डेनमार्क AI डीपफेक पर लगाम लगाने की तैयारी में है। वहां कॉपीराइट के कानूनों में बदलाव किया जा रहा है। इसके तहत ‘चेहरे और आवाज’ पर लोगों को कानूनी हक मिलेगा।
डेनमार्क सरकार (Danish government) ने एआइ से बनी डीपफेक सामग्री (AI generated deepfake content) पर नियंत्रण के लिए कॉपीराइट कानून में ऐतिहासिक बदलाव की घोषणा की है। यह कानून किसी भी व्यक्ति को उसकी पहचान यानी चेहरे, शरीर और आवाज पर स्पष्ट कानूनी अधिकार देगा। सरकार का दावा है कि यह यूरोप में अपनी तरह का पहला कानून होगा।
संस्कृति मंत्री जैकब एंगेल-श्मिट ने कहा, 'कोई भी इंसान डिजिटल कॉपी मशीन में झोंक कर किसी और मकसद से इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। हर किसी का अपने चेहरे और आवाज पर हक है।' कानून का प्रारूप गर्मी की छुट्टियों से पहले विचार के लिए पेश किया जाएगा और शरद सत्र में संसद में लाया जाएगा। इसे संसद में 90% सांसदों का समर्थन मिल चुका है। डेनमार्क अब अपनी ईयू अध्यक्षता के दौरान अन्य देशों से भी इस दिशा में कदम बढ़ाने की अपील करेगा। उन्होंने कहा कि यह कानून बाकी यूरोपीय देशों के लिए मिसाल बन सकता है।
उन्होंने कहा कि नया प्रस्ताव उन डिजिटल नकलों को अपराध की श्रेणी में लाएगा, जो किसी की सहमति के बिना उसकी हूबहू छवि या आवाज की नकल करती हैं। इसमें कलाकारों की परफॉर्मेंस की एआइ-जनरेटेड कॉपी भी शामिल होगी। ऐसी सामग्री साझा होने पर व्यक्ति उसे हटवाने की मांग कर सकेगा और मुआवजा पाने का अधिकारी होगा। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि व्यंग्य और पैरोडी जैसे रचनात्मक प्रयोगों को छूट दी जाएगी। श्मिट ने चेतावनी दी कि यदि डिजिटल प्लेटफॉर्म इस कानून का पालन नहीं करते, तो उन पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा और मामला यूरोपीय आयोग तक जा सकता है।
डीपफेक कंटेट ऐसी नकली फोटो, वीडियो या आवाज होती है, जो AI से बनाई जाती है। यह सबकुछ असली जैसा लगता है। जैसे किसी इंसान का चेहरा या आवाज बदलकर उसे ऐसा कुछ बोलता दिखाना, जो उसने असल में कभी कहा ही नहीं।