नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का शासनकाल विवादों से घिरा रहा! प्रेम कुमार राय की नियुक्ति और भ्रष्टाचार के आरोपों ने ओली के खिलाफ जन आक्रोश भड़काया। सोशल मीडिया प्रतिबंध ने आग में घी का काम किया और अंततः ओली को पद छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। क्या प्रेम कुमार राय ओली के पतन के असली कारण हैं? जानिए पूरी कहानी!
केपी शर्मा ओली ने चौथी बार नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में 15 जुलाई 2024 को शपथ ली थी। उनका यह कार्यकाल लगभग 14 महीने तक चला। देश में बढ़ते विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक दबाव के कारण ओली ने मंगलवार को अपना पद छोड़ दिया।
फिलहाल, यह माना जा रहा है कि देश में सोशल मीडिया को बैन करने के फैसले ने नेपाल की सियासत में खलबली मचा दी। भारी बवाल और विरोध के बाद ओली को गद्दी छोड़नी पड़ी, लेकिन इस बीच एक और मजबूत कड़ी सामने आई है। जिससे यह समझा जा रहा है कि ओली को नेपाल की सत्ता से बेदखल होने की वजह वह भी हो सकती है।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि नेपाल में चार बार पीएम बनने वाले ओली अपने एक और फैसले को लेकर विपक्ष और जनता की नजरों में खटकने लगे थे।
दरअसल, ओली जब पुराने नेताओं को हटाकर नेपाल की सत्ता में आए तो उन्होंने दावा कि वह न तो अवैध रूप से पैसा कमाएंगे और न ही किसी और को ऐसा करने देंगे, लेकिन उनके एक फैसले ने जनता के बीच भ्रष्टाचार के प्रति उनकी छवि को धूमिल कर दिया।
बात साल 2020 की है, ओली ने अपने कार्यकाल में प्रेम कुमार राय को सत्ता के दुरुपयोग की जांच आयोग (सीआईएए) का प्रमुख नियुक्त किया था, जो उनके प्रति वफादार माने जाते थे।
दिलचस्प बात ये है कि नेपाल के दो बड़े घोटालों में राय का नाम आया था। जिसकी वजह से जनता के बीच ओली की छवि खराब हुई। एक तो भूटानी शरणार्थी घोटाले में राय की कथित भूमिका सामने आई थी।
जिसमें नेपाली नागरिकों को अमेरिका में बसाने के लिए उन्हें नकली भूटानी शरणार्थी पहचान पत्र उपलब्ध कराए गए थे। दूसरा घोटाला, सरकारी नेपाल एयरलाइंस के लिए विमान खरीद से जुड़ा था। इस सौदे के लिए शीर्ष नेताओं को कमीशन दिए जाने के आरोप थे।
ऐसा माना जाता है कि राय को जांच एजेंसी के प्रमुख पद पर बैठाने के बाद से ही ओली की उलटी गिनती शुरू हो गई थी। विपक्ष को उनके खिलाफ तब ही एक बड़ा मुद्दा मिल गया था।
यह भी जानकारी सामने आती है कि प्रधानमंत्री रहते हुए ओली ने प्रशासनिक व्यवस्था में बड़े बदलाव किए। नेपाल की लगभग नौ जांच एजेंसियों को सीधे अपने अधीन किया। आरोप यह भी है कि ओली इन एजेंसियों का इस्तेमाल अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ करते थे।
विपक्ष भी सही समय का इंतजार करता रहा। इसके बाद, सोशल मीडिया को देश में बैन करने के फैसले ने उन्हें ओली के खिलाफ हवा दे दी।
इस फैसले ने बड़े पैमाने पर युवा पीढ़ी यानी कि जनरेशन जेड को उकसाने का काम किया। अंजाम यह हुआ कि एक-एक कर कई मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा। अंत में ओली ने भी कुर्सी छोड़ दी।