Salman Rushdie India Freedom of Expression: सेटेनिक वर्सेज के लेखक सलमान रश्दी ने भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हो रहे हमलों को लेकर चिंता जताई है।
Salman Rushdie India Freedom of Expression: बरसों पहले 'सेटेनिक वर्सेज'पुस्तक लिख कर विवादों में आए विवादास्पद प्रख्यात लेखक सलमान रश्दी (Salman Rushdie) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमलों और बढ़ते हिंदू राष्ट्रवाद (Hindu Nationalism) पर चिंता जताई है। रश्दी ने हाल ही में ब्लूमबर्ग के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि वह मुसलमानों के चित्रण को लेकर चिंतित हैं और उन्होंने इसे भारत के लेखकों, पत्रकारों और शिक्षाविदों पर दबाव (India Freedom of Expression) बताया। रश्दी ने साक्षात्कार में भारत में इतिहास के पुनर्लेखन (Rewriting History) का उल्लेख करते हुए कहा, "मैं इसे लेकर बहुत चिंतित हूं। भारत में मेरे बहुत सारे दोस्त हैं। पत्रकारों, लेखकों, बुद्धिजीवियों व प्रोफ़ेसरों आदि की आज़ादी पर हो रहे हमले को लेकर सभी बेहद चिंतित हैं।"
रश्दी ने स्पष्ट किया कि उनकी चिंता खास तौर पर मुसलमानों के चित्रण को लेकर है। उनका कहना है कि यह दिखाने की कोशिश हो रही है कि हिंदू हमेशा अच्छे थे और मुसलमान बुरे थे। रश्दी ने इसे वी.एस. नायपॉल के ‘घायल सभ्यता’ विचार से जोड़ा, जिसमें कहा गया था कि भारत की मूल सभ्यता मुसलमानों के आगमन से प्रभावित हुई। रश्दी ने कहा कि इस तरह के इतिहास को फिर से लिखने में बहुत ऊर्जा लगाई जा रही है।
सलमान रश्दी ने बताया कि उनके बहुत सारे दोस्त भारत में हैं। वे कहते हैं कि पत्रकारों, प्रोफेसरों और लेखकों की स्वतंत्रता पर हो रहे हमले को लेकर लोग चिंतित हैं। रश्दी ने कहा, “यदि आप लेखक हैं और ध्यान दे रहे हैं तो आप चीजों को आते हुए देख सकते हैं। मैं यही कर रहा था।”
उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि देश की पहचान को पुनः परिभाषित करने का प्रयास किया जा रहा है। रश्दी ने कहा, "ऐसा लगता है कि देश के इतिहास को फिर से लिखने की इच्छा है; मूलतः यह कहना कि हिंदू अच्छे हैं, मुसलमान बुरे - जिसे वी.एस. नायपॉल ने एक बार 'घायल सभ्यता' कहा था, यह विचार कि भारत एक हिंदू सभ्यता है जो मुसलमानों के आगमन से घायल हो गई। इस परियोजना के पीछे बहुत ऊर्जा है।"
उन्होंने दशकों पहले दी गई चेतावनियों के बारे में कहा: "मुझे लगता है, आप जानते हैं, यदि आप एक लेखक हैं, यदि आप ध्यान दे रहे हैं तो कभी-कभी आप चीजों को आते हुए देखते हैं, आप जानते हैं, और मुझे लगता है कि मैं गंभीरता से यही कर रहा था, मैं ध्यान दे रहा था।"
गौरतलब है कि सन 1988 में "द सैटेनिक वर्सेज" के प्रकाशन के बाद से रश्दी ईरान की ओर से जारी एक फतवे के साये में जी रहे हैं। अगस्त 2022 में, पश्चिमी न्यूयॉर्क में एक व्याख्यान देने से ठीक पहले, उन पर हुए हमले के बाद, ये धमकियां फिर से हिंसक रूप से उभर आईं। इस केस में हमलावर, 27 वर्षीय हादी मटर को बाद में हत्या के प्रयास और हमले का दोषी ठहराया गया और 25 साल की जेल की सजा सुनाई गई।
भारत ने अक्टूबर 1988 में राजीव गांधी की सरकार के दौरान वित्त मंत्रालय की ओर से जारी किए गए एक सीमा शुल्क आदेश के तहत रश्दी के उपन्यास द सैटेनिक वर्सेज के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था , क्योंकि मुस्लिम समुदाय इस पुस्तक को ईश निंदा मानता था और इसके प्रति संभावित तीखी प्रतिक्रिया होने की आशंका थी।