Kessler Syndrome: अंतरिक्ष में उपग्रहों की भीड़ ने पैदा किया 'केसलर सिंड्रोम' का खतरा। 2.8 दिन की 'क्रैश क्लॉक' ने बढ़ाई भारत की चिंता, बंद हो सकता है इंटरनेट।
Space Traffic: ब्रह्मांड की गहराइयों में मानव निर्मित उपग्रहों (Satellites) का एक ऐसा जाल बिछ गया है, जो अब हमारे लिए ही 'काल' बनता हुआ प्रतीत हो रहा है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अंतरिक्ष में बढ़ता 'ट्रैफिक जाम' (Space Traffic) किसी भी पल (Kessler Syndrome Impact) एक ऐसी तबाही ला सकता है, जिससे पृथ्वी पर संचार क्रांति हमेशा के लिए थम सकती है। नासा (NASA) और इसरो (ISRO) जैसी एजेंसियां अब एक ऐसे मोड़ पर खड़ी हैं, जहां एक छोटी सी चूक भी मानव सभ्यता को दशकों पीछे धकेल सकती है। दिसंबर 2025 में प्रकाशित शोध के अनुसार, अंतरिक्ष में सुरक्षा को मापने के लिए वैज्ञानिकों ने CRASH Clock (Collision Realization And Significant Harm) नामक एक नया पैमाना तैयार किया है।
डराने वाली सच्चाई यह है कि साल 2018 में, जब 'स्टारलिंक' जैसी मेगा-कॉन्स्टेलेशन कंपनियां बहुत सक्रिय नहीं थीं, तब यह घड़ी 121 दिन का समय दिखा रही थी। लेकिन आज, यह घटकर महज 2.8 दिन रह गई है। इसका मतलब है कि अगर उपग्रहों के रास्ता बदलने की तकनीक (Collision Avoidance) किसी बड़े सौर तूफान या तकनीकी खामी की वजह से फेल हुई, तो औसतन 3 दिनों के भीतर अंतरिक्ष में पहली बड़ी 'कैटस्ट्रोफिक' टक्कर होना तय है।
विशेषज्ञों का सबसे बड़ा डर 'केसलर सिंड्रोम' (Kessler Syndrome) है। यह एक ऐसी डरावनी स्थिति है जिसमें दो उपग्रहों की टक्कर से निकला मलबा दूसरे उपग्रहों से टकराता है। यह सिलसिला एक 'चेन रिएक्शन' की तरह बढ़ता जाता है और देखते ही देखते पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) मलबे के एक ऐसे अभेद्य बादल में बदल जाती है जहाँ फिर कभी कोई नया रॉकेट या सैटेलाइट नहीं भेजा जा सकेगा। वर्तमान में, हर 22 सेकंड में दो सैटेलाइट्स एक-दूसरे के 1 किमी के दायरे से गुजरते हैं।
भारत के लिए यह खतरा केवल वैज्ञानिक नहीं, बल्कि सीधा आर्थिक और सामाजिक है:
डिजिटल इंडिया को झटका: अगर संचार उपग्रह नष्ट हुए, तो बैंकिंग, यूपीआई (UPI) और शेयर बाजार की धड़कनें रुक जाएंगी। इंटरनेट सेवाएं पूरी तरह ध्वस्त हो सकती हैं।
नेविगेशन का संकट: भारतीय सीमाओं की निगरानी और विमानों की लैंडिंग के लिए इस्तेमाल होने वाला NavIC (नाविक) और जीपीएस सिस्टम पूरी तरह ठप हो सकता है।
आपदा की भविष्यवाणी: चक्रवात और भारी मानसून की सटीक जानकारी देने वाले वेदर सैटेलाइट्स के बिना प्राकृतिक आपदाओं में जान-माल का भारी नुकसान होगा।
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (ISRO) के प्रमुख ने हाल ही में 'स्पेस ट्रैफिक मैनेजमेंट' को प्राथमिकता देने की बात कही है। भारत का 'Digantara' जैसा स्टार्टअप अब अंतरिक्ष में अपनी तरह का पहला कमर्शियल निगरानी सैटेलाइट लॉन्च कर चुका है ताकि इस कचरे को ट्रैक किया जा सके।
बहरहाल, दुनिया भर की अंतरिक्ष एजेंसियां अब 'स्पेस कचरा' साफ करने के लिए 'रोबोटिक आर्म', 'स्पेस नेट' और 'लेजर बीम' जैसी तकनीकों का परीक्षण कर रही हैं। इस टकराव का सबसे बुरा असर एविएशन सेक्टर पर पड़ेगा। जीपीएस के बिना विमानों का मार्ग भटकना और संचार टूटना हवाई यात्रा को असुरक्षित बना देगा।
(इनपुट क्रेडिट: प्रिंसटन यूनिवर्सिटी का हालिया शोध Thiele et al., 2025 और इसरो का 'स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस' SSA डेटा)