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पुतिन का भारत दौरा: एजेंडे में S-400 से लेकर जेट इंजन का संयुक्त उत्पादन शामिल

Vladimir Putin's India Visit: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दो दिवसीय भारत दौरे पर आने वाले हैं। आइए नज़र डालते हैं उनके इस दौरे का एजेंडा क्या रहेगा।

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Dec 03, 2025
Indian Prime Minister Narendra Modi and Russian President Vladimir Putin (Photo - PM Modi's social media)

रूस (Russia) के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) 4-5 दिसंबर को भारत (India) के दौरे पर रहेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के आमंत्रण पर भारत आ रहे पुतिन 23वें वार्षिक भारत-रूस शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। पुतिन की इस यात्रा के बारे में क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव (Dmitry Peskov) ने जानकारी दी है कि उनकी भारत यात्रा के दौरान S-400 एयर डिफेंस सिस्टम पर निश्चित रूप से चर्चा होगी। माना जा रहा है कि भारत और ज़्यादा S-400 खरीद सकता है। पेस्कोव ने आगे कहा कि पुतिन की यात्रा में पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट Su-57 भी एजेंडे में है। पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स भी भारतीय वायुसेना की बड़ी ज़रूरत है।

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जेट इंजन का संयुक्त उत्पादन

भारत लंबे अरसे से अपना खुद का जेट इंजन बनाने की कोशिश कर रहा है। रूस ने जेट इंजन के संयुक्त रूप से उत्पादन पर भी बयान जारी किया है। जेट इंजन के संयुक्त उत्पादन को लेकर पेस्कोव ने कहा कि रूस, भारत में संयुक्त उत्पादन वेंचर शुरू कर रहा है और यह जारी रहेगा। जो कुछ भी साझा किया जा सकता है वह भारत के साथ साझा किया जाएगा।

भारत-रूस के रिश्ते के मुख्य स्तंभ

रूस के प्रथम उप-प्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव (Denis Manturov) ने इस बारे में बात करते हुए कहा है कि संयुक्त विकास, सह-उत्पादन और स्थानीयकरण भारत-रूस के रिश्ते के मुख्य स्तंभ बन गए हैं। मंटुरोव के अनुसार सहयोग अब सीधे-सादे आपूर्ति अनुबंधों से आगे बढ़कर दीर्घकालिक तकनीकी साझेदारियों की ओर बढ़ रहा है। मंटुरोव ने पुष्टि की है कि S-400 की सप्लाई का कार्यक्रम पूरी तरह से पटरी पर है। अनुबंध दोनों पक्षों द्वारा तय समय-सीमा के भीतर पूरा हो रहा है।

तकनीकी सहयोग और मेक इन इंडिया

रूस-भारत की साझेदारी का मुख्य आयाम अब तकनीकी सहयोग की ओर बढ़ रहा है जिसमें 'मेक इन इंडिया' पहल भी शामिल है। दोनों देशों के बीच सैन्य-तकनीकी सहयोग रणनीतिक महत्व का है, जो हर साल मजबूत और विकसित हो रहा है।

रूस-यूक्रेन युद्ध पर पश्चिम के दबाव के सामने भारत अडिग

रूस-यूक्रेन युद्ध संकट के बीच पुतिन का भारत दौरा वैश्विक कूटनीति हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। 45 महीने से ज़्यादा समय से चल रहे इस युद्ध ने यूरोप को ध्रुवीकृत कर दिया है। इस बीच भारत ने 50 से ज़्यादा G-20 बैठकों में किसी दबाव के सामने झुके बिना 'शांति वार्ता' का आह्वान किया है। साथ ही भारत ने रूसी तेल खरीद भी जारी रखी है। 2024-25 में भारत ने करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा की तेल खरीद रूस से की है। ऐसे में मोदी-पुतिन वार्ता में रूस-यूक्रेन युद्ध मुद्दा प्रमुख होगा।

तीन नए मोर्चों पर बन सकती है सहमति

भारत और रूस के बीच शिखर सम्मेलन का मकसद सिर्फ रक्षा या ऊर्जा सहयोग नहीं है, बल्कि तीन ऐसे मोर्चे हैं जो पहली बार होने जा रहे हैं। यही पुतिन की इस यात्रा को असाधारण बनाते हैं।

1. वैकल्पिक वैश्विक भुगतान प्रणाली का विकास

दोनों देशों के बीच एक वैकल्पिक वैश्विक भुगतान प्रणाली के विकास को लेकर प्रयास जारी हैं। यह पहला मौका होगा जब दो बड़े देश पश्चिमी वित्तीय व्यवस्था के बाहर एक समानांतर भुगतान नेटवर्क खोज रहे हैं। इसके अंतर्गत भारत का यूपीआई और रूस का एमआईआर कार्ड मिलकर ऐसा वित्तीय भुगतान मंच बना सकते हैं, जो पश्चिमी स्विफ्ट नेटवर्क के समानांतर एक नया विकल्प खड़ा करेगा। पश्चिमी देश विशेष रूप से इस पर नज़र रखे हुए हैं। जानकारों की नजर में पुतिन की यात्रा का यह सबसे क्रांतिकारी परिणाम हो सकता है।

2. रूस करना चाहता है 10 लाख भारतीयों की भर्ती

रूस द्वारा भारत से बड़े पैमाने पर भारतीय श्रमिकों की आधिकारिक भर्ती के लिए नया मंच खुल सकता है। यूक्रेन के खिलाफ युद्ध के कारण रूस श्रमिक और कुशल पेशेवरों की भारी कमी से जूझ रहा है। अनुमान है कि भारत से रूस 10 लाख कुशल-अकुशल श्रमिकों की भर्ती करना चाहता है।

3. रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत से खुला रणनीतिक संवाद

रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत से खुला रणनीतिक संवाद भी रूस के लिए अहम है। चीन पर अति-निर्भरता से बाहर निकलने के रूस की नज़र अपने सदाबहार दोस्त भारत पर है। इसे कूटनीति परिणामों की नज़रिए से देखें तो साफ है कि यह सिर्फ द्विपक्षीय घटनाक्रम नहीं है, यह दुनिया के शक्ति संतुलन को बदल सकती है।

ब्रह्मोस की तरह हर चुनौती के सामने आगे बढ़े हैं भारत-रूस के रिश्ते

भारत और रूस के रिश्ते को समझना हो, तो ब्रह्मोस मिसाइल से बेहतर प्रतीक शायद ही मिले। दो नदियाँ, दो शक्ति-धाराएं मिलकर जीवन-शक्ति की एक अटूट धारा बनाती हुईं। ब्रह्मोस शब्द दोनों देशों की दो नदियों भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मोस्कवा को मिलकर बना है। इतिहास साक्षी है कि ब्रह्मोस सिर्फ एक हथियार नहीं, बल्कि दो सभ्यताओं की साझा क्षमता, आपसी भरोसे और दशकों से चली आ रही रणनीतिक मित्रता का गतिशील प्रतीक है। ब्रह्मपुत्र भारत की सांस्कृतिक-सैन्य स्वायत्तता का प्रतीक है और मोस्कवा रूस की रणनीतिक दृढ़ता और कठोर भू-राजनीतिक वास्तविकता का। भारत का सांस्कृतिक आत्मविश्वास और रूस की तकनीकी-रणनीतिक विरासत का संगम, यही सब कुछ दोनों देशों के रिश्तों में दिखता है। भारत-रूस के संबंध भी वैश्विक कूटनीति की तुलना में तेज़, भरोसेमंद और प्रतिक्रियाशील रहे हैं। कूटनीति की दुनिया में यह भरोसा दुर्लभ है। दुनिया में कई रणनीतिक साझेदारियाँ मौजूद हैं, पर विश्वास की उस गति तक कम ही पहुंचती हैं, जिस गति से ब्रह्मोस उड़ती है। जैसे-जैसे ब्रह्मोस की रेंज बढ़ती गई, दोनों देशों के संबंध भी अपग्रेड होते गए। 4 दिसंबर को रूस के राष्ट्रपति व्लीदिमीर पुतिन की भारत यात्रा भी दोनों देशों के इसी रिश्ते में एक और बड़ा अपग्रेड, एक अहम पड़ाव होने जा रही है। यह सिर्फ संयोग नहीं हो सकता कि पुतिन की भारत यात्रा से ठीक पहले सोमवार को भारत ने बंगाल की खाड़ी में ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल का कॉम्बैट लॉन्च किया है। भारतीय थलसेना की साउथर्न कमांड की ओर लॉन्च की गई इस मिसाइल ने 3457.44 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से उड़ान भरी और दूर टारगेट को सटीक भेदा यह लॉन्च सिर्फ एक टेस्ट नहीं था, बल्कि दुनिया के सामने रूस-भारत की मित्रता के नए चरण का ऐलान था। ध्यान रहे कि ब्रह्मोस के डिज़ाइन, विकास और परीक्षण में दोनों देशों का 'समान हिस्सेदारी वाला योगदान' है। यह ऐसा सैन्य सहयोग है जो दुनिया में लगभग अद्वितीय है क्योंकि इसमें न वर्चस्व है, न आश्रय। है तो सिर्फ सहभागिता।

यात्रा से पहले रूस ने जताया भारत के अत्यंत्र मैत्रीपूर्ण रुख के लिए आभार

ऐसा नहीं है कि भारत और रूस की दोस्ती में चुनौतियाँ नहीं आईं, लेकिन चुनौतियों का सामना करने के दौरान इस रिश्ते की स्थिरता और विश्वसनीयता ने इसे और मज़बूत बनाया है। पुतिन की भारत यात्रा से पहले क्रेमलिन के प्रवक्ता पेस्कोव के वक्तव्य में भी दोनों देशों के संबंध मित्रता का यह पक्ष देखा जा सकता है। पेस्कोव ने कहा है कि भारत-रूस संबंध सिर्फ राजनयिक प्रोटोकॉल और व्यापार समझौतों का एक मानक समूह नहीं है, बल्कि यह उससे कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है। दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध आपसी समझ, साझेदारी, वैश्विक मामलों पर साझा दृष्टिकोण और अंतर्राष्ट्रीय कानून, कानून के शासन और एक-दूसरे के हितों को ध्यान में रखने की क्षमता पर आधारित एक गहरी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर टिके हैं। पेस्कोव ने बताया कि रूस को अपने भारतीय मित्रों के ऐतिहासिक विकास के दौरान उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने पर गर्व है और भारत के वर्तमान मैत्रीपूर्ण रुख और रूस के प्रति अत्यंत मैत्रीपूर्ण रुख के लिए बहुत आभारी है।

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