
यहां जंगल में लगी आग ने मचाई तबाही, लपटों में झुलसे 150 एकड़ में फैला वन
अनूपपुर। जिले में गर्मी के दिनों वनीय क्षेत्र में होने वाले अग्नि हादसे से जंगल का बहुत सारा क्षेत्र तबाह हो रहा है। इसमेें जहां वन के नए पौध नष्ट हो रहे हैं, वहीं पुराने वृक्षो को भी आग की लपट झुलसा रही है। पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष हुई अग्नि हादसा में इस वर्ष वनीय नुकसान का क्षेत्रफल बढ़ा है। लगातार आग की लपटों से झुलस रहे जंगल में रहने वाले जीव जंतुओं को भी खतरा बना हुआ है। वहीं इससे पर्यावरण भी प्रभावित हो रही है।
इससे निपटने वनविभाग के पास कोई ठोस रणनीति के साथ ही संसाधन भी उपलब्ध नहीं है। जिसके कारण दिनोंदिन आग की लपटें उंची होने के साथ साथ दायरा भी बढ़ा चला जा रहा है। इस वर्ष अनूपपुर के सात वनपरिक्षेत्रों अनूपपुर, जैतहरी, कोतमा, बिजुरी, अमरकंटक, राजेन्द्रग्राम, बेनीबारी और अहिरगवां में हुई अग्नि हादसे में लगभग १५० एकड़ से अधिक में फैला वनक्षेत्र आग की लपटों में झुलस गए हैं। इनमें सतही अग्नि हादसे से पहाड़ी क्षेत्रों में लगे जंगल को अधिक नुकसान पहुंचा है। इसमें छोटे-जीवों के साथ कीट-पतंग आग की भेंट चढ़ गए। वहीं हजारों पेड़-पौधें भी आग की लटप में सूख गए या जलकर खाक हो गए हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में फैले जंगल में यह आग माह से भी अधिक दिनों तक जलती रहती है। जिसमें कई किलोमीटर का दायरा प्रभावित होता है। आग से जंगल की नमी, मिट्टी अपरदन प्रभावित होने के साथ नवीन पौध का जीवन समाप्त हो जाता है। वनविभाग राजेन्द्रग्राम एसडीओ मान सिंह मरावी बताते हैं कि इस वर्ष आग की लपट में लगभग ७० हेक्टेयर या १५०-१६० एकड़ के वन क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। इसमें अहिरगवां से अमरकंटक रेंज के पहाड़ी क्षेत्र वाले जंगल सबसे अधिक अग्नि हादसों के शिकार बने हैं। आग की घटना के दौरान जो कापस निकलने वाले होते हैं वे जल्द बाहर आ जाते हैं, लेकिन जिन पौधे के अभी दो-तीन पत्ते होते हैं, वे नष्ट हो जाते हैं। वहीं बड़े जानवर खासकर शेर, बाध, तेंदुआ, हिरण सहित अन्य छलांग लगाने वाले जानवर आग व धुंए के गंध को महसूस कर सुरक्षित स्थल की ओर निकल जाते हैं। लेकिन छोटे जीव व कीट पतंग नहीं भाग पाते, नाजुक होने के कारण वे झुलस में मर जाते हैं। इससे जंगल की ईको सिस्टम भी प्रभावित होती है।
पिछले वर्ष की तुलना में पांच गुणा बढ़े आग की घटना, संसाधन के अभाव में बढ़ रहा दायरा
एसडीओ राजेन्द्रग्राम के अनुसार पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष अग्नि हादसे के क्षेत्रफल बढ़े हैं। वर्ष २०२१ में जहां २५-३० हेक्टेयर में अग्नि हादस के मामले सामने आए थे। वहीं वर्ष २०२२ में यह पांच गुणा अधिक हो गया है, यानि ६०-७० हेक्टेयर वन क्षेत्र में अग्नि हादसे हुए हैं। जिले में सर्वाधिक आग की घटना अमरकंटक, राजेन्द्रग्राम, मझगवां, अहिरगवां और बुढार रेंज में होता है। राजेन्द्रग्राम का किररघाट इस अग्नि हादसें में सर्वाधिक प्रभावित हिस्सा है। यहां कभी कभी एक से डेढ़ माह तक आग सुलगते रहते हैं। इसका मुख्य कारण यह भी है कि मजूदरों की कमी, पानी के संसाधन का अभाव, उपकरण की कमी।
पर्यावरण में घुल रहा जंगल का धुंआ
जंगल में आग की घटना के बाद पर्यावरण में महीनों तक घुलते जंगल के धुंए से आसपास के लोगों में श्वास सम्बंधित बीमारियां अधिक बढ़ गई है। बताया जाता है कि धुएं में दर्जनों अलग-अलग तरह के कण होते हैं। इनमें कालिख, रसायन सहित कार्बन मोनोऑक्साइड शामिल होते हैं। इससे लोगों के फेंफड़ों तक पहुंच रहे ये कण उन्हें संक्रमित कर रहे हैं। वनविभाग अधिकारी का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में यह आग दो कारणों से सुलगते हैं, १ ङ्क्षहसक जानवरों से मवेशियों व जान की सुरक्षा में उन्हें भगाने के लिए और २ वन विभाग के किसी प्रकरण में नाराज हुए व्यक्ति से। जबकि अन्य कारणों में महुआ बीनने के लिए स्थल की सफाई में जलाई गई थोड़ी आग विराल रूप में धारण कर लेती है।
वर्र्सन:
पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष अग्नि हादसे में वनक्षेत्र बढ़ा है। यह चिंता का विषय है। इससे पर्यावरण के साथ वनों व जीव-जंतुओं को भी नुकसान है। जबकि आग में पौधों के साथ घास के जल जाने से मवेशियों का भी परेशानी होती है। जंगल की सुरक्षा में विभाग के साथ नागरिकों को भी सहभागिता बनें।
मान सिंह मरावी, एसडीओ वनपरिक्षेत्र राजेन्द्रग्राम।
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Published on:
04 Jun 2022 11:52 am
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