
आदिवासी समाज में बढ़ते अंतर पर चिंतन की आवश्यकता
अनूपपुर. आदिवासी समुदाय में आ रहे सामाजिक परिवर्तनों पर चिंतन और इसका समाज पर प्रभाव जानने के उद्देश्य से इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार सोमवार से प्रारंभ हुआ। इस अवसर पर प्रमुख वक्ताओं ने आदिवासी समाज के विभिन्न वर्गों में सामाजिक और आर्थिक स्तर पर बढ़ रहे अंतर को इंगित करते हुए इसे दूर करने के लिए नई नीतियां लागू करने का सुझाव दिया। मुख्य अतिथि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, भोपाल के निदेशक प्रो. सरित कुमार चौधरी ने देश के विभिन्न क्षेत्रों से अलग-अलग समुदायों द्वारा स्वयं को आदिवासी समुदाय में शामिल करने की मांग का जिक्र करते हुए कहा कि यह ऐतिहासिक रूप से विभिन्न समुदायों को उसके नैतिक और सामाजिक अधिकार न दिए जाने के कारण हो रहा है।
जिसकी वजह से सामाजिक आंदोलन शुरू हुए। उन्होंने कहा कि सामाजिक अंतर को खत्म करने और शासन में आम लोगों की भागीदारी को बढ़ा कर इन चुनौतियों का मुकाबला किया जा सकता है। उन्होंने आदिवासी समाज पर शोध को बढ़ावा देने के लिए कई और संस्थान स्थापित करने का सुझाव दिया जो नई नीतियां सुझा सके और इन्हें लागू करने के लिए उपयोगी सुझाव दे सके। अमेरिका स्थित कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय की प्रो. अन्नपूर्णा देवी पांडे ने अमेरिका और भारत में आदिवासी समाज की स्थिति का जिक्र करते हुए कहा कि 21वीं सदी में जिस प्रकार से शहरीकरण बढ़ रहा है, उससे आदिवासियों के सामाजिक और आर्थिक स्तर को बेहतर बनाने और उनके विस्थापन को रोकने के लिए नई नीतियां बनानी होंगी। इससे पूर्व निदेशक (अकादमिक) प्रो. आलोक श्रोत्रिय ने आदिवासी समाज में शिकार, भोजन एकत्रित करने और उनकी खुशहाली का जिक्र करते हुए कहा कि सीमित संसाधनों में वे जिस प्रकार स्वयं को प्रसन्न रखते हैं उससे समाज के अन्य वर्गों को सीख लेने की आवश्यकता है। उन्होंने नई तकनीक विशेषकर मोबाइल का आदिवासी समाज पर प्रभाव जानने का भी सुझाव दिया। कार्यक्रम में प्रो. एसआर पाढ़ी, प्रो. रंजन हंसीनी साहू ने भी भाग लिया। संचालन डॉ. चाल्र्स वर्गीज ने किया।
Published on:
25 Sept 2018 05:32 pm
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