
एक साथ पूजे जाते हैं बाली-सुग्रीव, वानर सेना भी हरदम मौजूद
अशोकनगर. रामायण काल में भले ही वानरराज बाली और उनके भाई में विवाद रहा हो। लेकिन जिले में एक ऐंसी जगह भी है, जहां कोई भेद किए बिना ही बाली-सुग्रीव को एक साथ पूजा जाता है। इतना ही नहीं, उनके मंदिर पर हर समय वानरसेना का भी कड़ा पहरा रहता है, लेकिन यह वानरसेना वहां पूजा करने वाले पहुंचने वाले लोगों को बिल्कुल भी परेशान नहीं करती।
हम बात कर रहे हैं, जिले की पर्यटन नगरी चन्देरी की।
जहां बाली-सुग्रीव का मंदिर है और एक ही मंदिर में दोनों की मूर्तियां एक साथ स्थापित हैं। दिल्ली दरवाजा स्थित इस मंदिर में वर्षों से एक साथ ही बाली-सुग्रीव की पूजा होती है। पास में ही हनुमान जी का भी पुराना मंदिर है और हनुमानजी की पूजा के बाद पुजारी इस मंदिर में भी सुबह-शाम पूजा करता है तो वहीं चंदेरी के रहवासी भी बाली-सुग्रीव के मंदिर में पूजा करने जाते हैं। यहां पर शक्ति के रूप में दोनों भाइयों की एक साथ की जाती है। बाली और सुग्रीव वानरों के राजा थे, इस मंदिर पर भी बड़ी संख्या में बंदरों की भीड़ रहती है।
हजारों वर्ष पुराना है यह मंदिर
चंदेरी निवासी 75 वर्षीय वीरेंद्रनारायण मिश्रा के मुताबिक हमने अपने बुजुर्गों से सुना है कि बाली-सुग्रीव का यह मंदिर हजारों वर्ष पुराना है और देश में शायद यह एकमात्र मंदिर है। करीब 65 साल पहले तक चबूतरे पर मूर्तियां स्थापित थीं और फिर बुद्धा नाम के मुस्लिम समाज के व्यक्ति ने मूर्तियों के चारों तरफ मढिया का निर्माण कराया था। तब से यह मढिय़ा है। श्री मिश्रा के मुताबिक बुजुर्ग बताते थे कि यहां पर अखाड़ा भी चलता था, हालांकि अब यहाँ सिर्फ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर ही अखाड़ा होता है और शक्ति के रूप में बाली व सुग्रीव की एक साथ पूजा होती है।
Published on:
27 Oct 2019 02:42 pm
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