
चीन हुबेई प्रांत को किस्मत पर छोड़ा।
बीजिंग। चीन में कोरोनावायरस का कहर जारी है। इसे रोकने के लिए चीन युद्ध स्तर पर तैयारी कर रहा है। मगर इसके बावजूद इस बीमारी को रोकना उसके बस में नहीं है। बेबस होकर उसने एक प्रांत को उसकी किस्मत पर छोड़ दिया है। ये प्रांत है हुबेई का है। यहां की आबादी छह करोड़ है। कोरोना वायरस से मरने वाले 97 प्रतिशत लोग यहीं से हैं। हाल ही में मशहूर गायक झांग यारू की दीदी ने सोमवार को दम तोड़ दिया। वह कोमा में थीं। अस्पताल ने उनका इलाज करने से मना कर दिया है। वहीं कई ऐसे डाक्टर हैं जो यहां पर अंतिम सांसे गिन रहे हैं। मगर उन्हें इलाज नहीं दिया जा रहा।
मीडिया में चर्चा वुहान की है। दरअसल हुबेई की राजधानी है वुहान। पूरे चीन में इस वायरस से संक्रमित जितने लोग हैं उनका 67 फीसदी हुबेई में है। मरने वालों की तादाद दिनोदिन बढ़ती ही जा रही है। लोकल हेल्थ सिस्टम के हालात खराब हो चुके हैं। मरीज इतने हैं कि अस्पताल में पांव रखने की बिल्कुल जगह नहीं है। कोरोना वायरस रहस्यमय बनता जा रहा है। 23 जनवरी को चीन की सरकार ने पूरे हुबेई प्रांत को ही अलग-थलग कर दिया।
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कड़े निर्देश जारी किए हैं। इसके मुताबिक हुबेई से कोई भी बाहर नहीं जा सकता। मकसद है वायरस को फैलने से रोकना ताकि पूरी दुनिया को बचाया जा सके। वुहान के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर जनरल यांग गांगहुन के अनुसार अगर पूरे राज्य की घेराबंदी नहीं जाती तो तो बीमार लोग इलाज के लिए पूरे देश में कहीं भी जा सकते थे। इससे पूरा चीन जानलेवा वायरस की चपेट में आ जाता। इससे लोगों का जीना दुश्वार हो गया है लेकिन ये जरूरी था।
वुहान में एक करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं। इसे दूसरे दर्जे का शहर माना जाता है। विकास के मामले में यह शंघाई, बीजिंग और गुआंगझाऊ से पिछड़ा हुआ है। जब वायरस फैलना शुरू हुआ तो कुछ दिनों तक किसी को इसका अंदाजा तक नहीं था। इस वजह से ये और तेजी से फैला। दिसंबर में लोगों को लगा कि वुहान के फूड मार्केट से यह फैला है। डॉक्टरों का कहना था कि यह वायरस जानवरों से मनुष्यों में आया। जनवरी तक सरकार ने सार्वजनिक समारोह कैंसल नहीं किए। इसका प्रकोप लगातार बढ़ता गया। चीन में लूनर न्यू ईयर के बाद सही तस्वीर सामने आई। तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
वुहान यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर जेंग यान अनुसार ये शांत तूफान की तरह आया। इसने पूरे हुबेई को अपनी चपेट ले लिया। हुबेई में आईसीयू वाले 110 अस्पताल हैं। यहां पैर रखने की जगह तक नहीं बची। अलग-थलग पड़ने के कारण यहां ग्लव्स, प्रोटेक्टिव कपड़ों की कमी हो गई है। बचाव के लिए लोगों से कहा जा रहा है कि पानी कम पीएं, ताकि टॉयलेट न जाना पड़े। यहां पर सबसे अधिक वायरस फैलने का खतरा है।
लाइबेरिया का रिकॉर्ड टूटा
इससे पहले ईबोला से ग्रस्त लाइबेरिया के एक इलाके को दुनिया से अलग-थलग कर दिया गया था। ये बात 2014 की है। तब वहां दंगे फैल गए। पेकिंग लॉ स्कूल के प्रफेसर झांग क्यानफान के अनुसार लॉकडाउन का मतलब ये न हो कि लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया जाए। वहां दवाइयों की कमी नहीं होने देनी चाहिए। सरकार के 8000 मेडिकल वर्कर हुबेई में काम कर रहे हैं।
मेडिकल टेस्ट सेंटर चौबीसों घंटे खोले गए हैं। अब धीरे-धीरे लोगों में निराशा घर करने लगी है। टेस्ट के लिए सैंपल देना हो तो आठ से दस घंटे लाइन में खड़ा रहना पड़ता है। यहां के लोगों भय का माहौल है। वह अनिश्चिता के दौर में जी रहे हैं।
Updated on:
07 Feb 2020 09:12 pm
Published on:
07 Feb 2020 08:07 am
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