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बता दें कि वुहान में पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की अनौपचारिक बैठक हुई थी। इस बैठक में बने सकारात्मक माहौल की वजह से दोनों देशों के बीच रिश्ते कुछ अच्छे हुए हैं। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि चाओ केजी के भारत आने पर द्विपक्षीय रक्षा सहयोग बढ़ सकता है। वहीं, भारत को भी उम्मीद है कि रक्षा सहयोगों और सुरक्षा समझौतों से जैश-ए-मोहम्मद के चीफ मसूद अजहर पर भी बात बन सकती है। अगर इस मुद्दे पर बात बनी तो शायद अब चीन मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी साबित करने की भारतीय कोशिशों में अड़ंगा नहीं डालेगा।
ऐसा नहीं की भारत और चीन के बीच सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने की पहले कोशिश नहीं हुई। कई बार इस ओर काम किया गया, लेकिन बात नहीं बनी। गौरतलब है कि 2015 में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने पेइचिंग यात्रा की थी। राजनाथ की यात्रा के दौरान दोनों देशों ने सुरक्षा सहयोग पर पहली बार अंब्रेला अग्रीमेंट पर साइन करने की तैयारी भी की थी। लेकिन किसी वजह से समझौते पर हस्ताक्षर नहीं हो पाया। फिर इसके बाद चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य मेंग जियानझू 2016 में भारत की यात्रा पर आए थे। इस दौरान भी इस मुद्दे पर सहमती नहीं बनी और भारत-चीन ने इस मौके को भी गवां दिया।
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वहीं, पिछले साल डोकलाम विवाद की वजह से चीन ने कुछ महीने पहले दोनों देशों के सहयोग के समझौते पर भारतीय प्रस्ताव को वापस कर दिया था। इस मसौदे को वापस करते हुए पड़ोसी देश चीन ने भारत से कहा, ‘ इंटेलिजेंस, नार्कोटिक्स, ह्यूमन ट्रैफिकिंग और आतंकवाद पर अंब्रेला अग्रीमेंट की बजाय अलग-अलग सेक्टर आधारित कई अग्रीमेंट किए जाएं और इसी के हिसाब से प्रस्ताव तैयार किया जाए।’
अब एक बार फिर से ऐसा माहौल बन रहा है, जिससे संभावना जताई जा रही है कि चीन के स्टेट काउंसलर और पब्लिक सिक्यॉरिटी मिनिस्टर चाओ केजी के भारत आने से दोनों देशों बीच प्रस्तावित सुरक्षा सहयोग पर सहमती बन सकती है। अगर ऐसा होता है तो इस प्रस्ताव से दोनों देशों को काफी फायदा होगा।