इमरान खान ने यूएन में चीन की कोशिश को सराहा, कहा-कश्मीर को नैतिक व कूटनीतिक समर्थन जारी रहेगा आर्थिक गलियारे के तौर पर विकसित करना चाहता है पाक गौरतलब है कि भारत-पाक-चीन के संबंधों की जब भी चर्चा होती है ग्वादर पोर्ट पर जरूर बात होती है। चीन भी इस पोर्ट पर गंभीरता से ध्यान दे रहा है। वो इसे पाकिस्तान के साथ आर्थिक गलियारे के तौर पर विकसित करना चाहता है। वहीं दूसरी तरफ ईरान के साथ मिलकर भारत चाबहार पोर्ट विकसित कर रहा है। इसे चीन को भारतीय रणनीतिक जवाब माना जाता है। मगर क्या वाकई ग्वादर पोर्ट उसके पास होता।
भारत-पाकिस्तान की आजादी और ग्वादर 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तब ग्वादर पोर्ट का इलाका ओमान का हिस्सा था। पाकिस्तान बनने के बाद इस इलाके को ओमान के सुल्तान बेचना चाहते थे। इस एक कारण यह भी था कि यहां के स्थानीय लोग पाकिस्तान में शामिल होने के लिए प्रदर्शन कर रहे थे। ओमान के सुल्तान को इन प्रदर्शनों की चिंता थी।
उस समय भारत और ओमान के संबंध अच्छे हुए करते थे। बताया जाता है कि ओमान के सुल्तान चाहते थे कि इस इलाके को भारत खरीद ले। मगर भारत के लिए मुश्किल ये थी कि वह देश की सीमा से करीब 700 किलोमीटर दूरी पर था। इसके बीच में पाकिस्तान पड़ता था। पाकिस्तान इस इलाके में किसी भी वक्त विद्रोह को हवा दे सकता था क्योंकि आम लोगों के बीच पाकिस्तान को लेकर सेंटिमेंट ज्यादा प्रभावी थे।
अंग्रेजों ने पोर्ट के तौर पर किया था विकसित 1857 में भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम को दबा देने के बाद अंग्रेजों ने ओमान की तत्काल राजशाही के ग्वादर इलाके के इस्तेमाल की इजाजत मांगी थी। ये इजाजत राजशाही से उन्हें मिल गई। इस इलाके की रणनीतिक हालात का ध्यान रखते हुए अंग्रेजों ने यहां पर छोटे से पोर्ट का विकास किया। यहा पर छोटे जहाज और स्टीमर चला करते थे।
पाक के खरीदने के बाद की स्थिति पाकिस्तान द्वारा इस इलाके को खरीद के बाद इसका विकास कई सालों तक नहीं हुआ। इसके बाद चीन की एंट्री हुई। 2013 में पाकिस्तान ने चीन को यह इलाका 40 सालों के लिए बेच दिया। अब चीन इस पोर्ट को अपने हिसाब से विकसित कर रहा है। माना जा रहा है कि भविष्य में चीन के लिए बड़ा रणनीतिक केंद्र साबित होगा। पाकिस्तान के इस कदम की आलोचना उसके देश के भीतर भी होती है लेकिन माना जाता है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन के सहयोग को देखते हुए पाकिस्तान ने ये फैसला किया।
ग्वादर इलाके में ऐसी स्थिति बनने के बाद भारत ने भी ईरान के साथ मिलकर चाबहार पोर्ट को विकसित करना शुरू किया है। ये भारत के लिए रणनीतिक तौर पर बड़ा कदम माना जाता है। ग्वादर से चाबहार की दूरी 170 किलोमीटर की है। विशेषज्ञों के अनुसार यहां पर मौजूदगी के जरिए भारत चीन की गतिविधियों पर निगाह रख पाएगा।