
नई दिल्ली। चीन से तमाम विवाद और नोंक झोंक के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोस्ती की एक नई इबारत लिखने वुहान पहुंचे हैं। दो दिन की इस अनौपचारिक यात्रा में वो कई बार चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करेंगे और कई मसलों पर चर्चा करेंगे। इस बीच ये जानना जरूरी है कि आजादी के सात दशक बाद भी ऐसे कौन से विवाद हैं जिससे दोनों मुल्कों के रिश्तों में पैदा हो रही गर्माहट हर बार कड़वाहट में बदल जाती है।
पाकिस्तान: भारत और चीन के रिश्ते में पाकिस्तान को लेकर अक्सर विवाद होता रहा है। पूरी दुनिया में आतंकवाद के मुद्दे पर पाक बेपर्दा हो चुका है लेकिन चीन हमेशा से उसका समर्थन करता रहा है। भारत में होने वाली आतंकी वारदातों में पाक का सीधा हाथ होने के बावजूद चीन कहता है कि पाकिस्तान आतंकवाद फैलाता नहीं बल्कि खुद आतंक से पीड़ित है।
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सीमा विवाद: चीन और भारत के बीच सीमा की दावेदारी को लेकर आए दिन टकराव देखने को मिलता है। भारत और चीन के बीच 3488 किलोमीटर का विवादित क्षेत्र है। चीन की सीमा से सटा अरुणाचल प्रदेश भारत गणराज्य का हिस्सा है लेकिन 90 हजार वर्ग किमी के इस इलाके पर चीन अपना दावा करता है। दोनों पक्षों के बीच इस मुद्दे के समाधान के लिए अबतक करीब 20 बार वार्ता हो चुकी है लेकिन हल नहीं निकल सका है। गाहे बगाहे उसके सैनिक अरुणाचल प्रदेश में घुसते रहते हैं। एकसाल पहले चीन ने डोकलाम पठार में सड़क निर्माण को लेकर एक बड़े विवाद को जन्म दिया है, जो कई सालों से ठंडे बस्ते में था। 73 दिनों तक दोनों देश की सेनाओं आमने सामने डटी रहीं इसके बावजूद दोनों पक्षों की सूझबूझ से ये हालात युद्ध में तब्दील होते होते रह गया।
वन बेल्ट वन रोड (ओबोर): चीन की महत्वकांक्षी वन बेल्ट वन रोड परियोजना दोनों देशों के बीच विवाद की बहुत बड़ी वजह हैं। भारत खुलकर इसका विरोध कर चुका है, इसके बावजूद चीन इस योजना में भारत को शामिल करना चाहता है। दरअसल विवाद की वजह ये है कि इस परियोजना का एक हिस्सा पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) से होकर गुजरेगा, जिसे भारत अपना अभिन्न अंग मांगता है।
मसूद अजहर: खुद उइगर आतंकियों का आतंक झेल रहा चीन हमेशा आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का संस्थापक मसूद अजहर का बचाव करता रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने कई बार मसूद को अंतराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने की कोशिश की है लेकिन चीन अपने विटो से इसे विफल कर देता है। पठानकोट एयरबेस आतंकी हमले में मसूद अजहर मास्टरमाइंड है।
दलाई लामा: तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा पिछले साठ साल से भारत में रहे हैं। दलाई लामा को चीन अलगावादी मानता है और विदेशी नेताओं को उनसे दूर रहने की सलाह देता रहा है, ताकि वो दुनिया से अलग-थलग हो सके। इसके विपरित भारत ने उन्हें मानवाधिकारों की वकालत करने के साथ अतिथि की तरह सम्मान देते हुए अपनाए हुए हैं। दरअसल 1950 में जब चीन तिब्बत पर कब्जा करने की नियत से दखल देने लगा तो तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू ने दलाई लामा को भारत में आश्रय दिया। तबसे लामा भारत के ही होकर रह गए।
Published on:
27 Apr 2018 04:37 pm
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