इस ‘मॉस्को फॉर्मेट’ बैठक में भारतीय प्रतिनिधिमंडल और तालिबान के अधिकारी आमने-सामने आएंगे, जिसमें अफगानिस्तान में सुरक्षा स्थिति और एक समावेशी सरकार के गठन पर को लेकर बातचीत की उम्मीद है। 5 अगस्त को तालिबान द्वारा अशरफ गनी सरकार को जबरदस्ती सत्ता से हटाने के बाद से इस ‘मॉस्को फॉर्मेट’ का यह पहला संस्करण है।
-
रूस की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, अफगानिस्तान के हालात को लेकर मॉस्को फॉर्मेट की बैठक में 10 देश और तालिबान का एक प्रतिनिधिमंडल हिस्सा लेगा। यह बैठक आज यानी 20 अक्टूबर को होगी, जिसमें भारत भी अहम भूमिका निभाएगा। भारत ने इस बैठक में भाग लेने को अपनी हां कर दी है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि 20 अक्टूबर को अफगानिस्तान मसले पर मॉस्को फॉर्मेट पर बैठक का आमंत्रण मिला है और हम इसमें भाग ले रहे हैं। इतना ही नहीं, इस बैठक में पाकिस्तान और चीन भी शामिल हो रहा है।
तीसरी मास्को फॉर्मेट बैठक में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व संयुक्त सचिव जेपी सिंह करेंगे, जो विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान-अफगानिस्तान-ईरान डेस्क के प्रमुख हैं। मॉस्को में बैठक से इतर भारतीय टीम और तालिबान के बीच अनौपचारिक संपर्क की संभावना से इंकार नहीं किया गया है। स्पूतनिक की रिपोर्ट बताती है कि मॉस्को में होने वाली यह बैठक अफगानिस्तान में सैन्य, राजनीतिक हालात, समावेशी सरकार के गठन और मानवीय संकट को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय कोशिशों पर केंद्रित होगी।
-
रूस के विदेश मंत्री सरगी लावरोव इस बैठक में भाग लेने वालों को संबोधित करेंगे। रूसी विदेश मंत्रालय ने जानकारी दी है कि अफगानिस्तान में सैन्य और राजनीतिक विकास की संभावनाओं और समावेशी सरकार गठन पर चर्चा की जाएगी। हम सभी अफगानिस्तान में मानवीय संकट को रोकने के लिए दुनिया की कोशिशों को और मजबूत करेंगे। मीटिंग के बाद एक जॉइंट स्टेटमेंट भी जारी किया जाएगा।
तालिबान प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व अंतरिम अफगान सरकार के उपप्रधानमंत्री अब्दुल सलाम हनफी करेंगे। यह जानकारी अफगानिस्तान विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल कहर बल्खी ने ट्विटर पर लिखा। तालिबान को उम्मीद है कि इस बैठक से आपसी हित के मसलों पर बातचीत की जाएगी। बता दें कि मॉस्को फॉर्मेट की घोषणा 2017 में की गई थी। उस वक्त इस ग्रुप में रूस के साथ अफगानिस्तान, चीन, पाकिस्तान, ईरान और भारत जैसे देश शामिल थे।
भारत, तालिबानी व्यवस्था को लेकर अपनी मुखर आपत्ति दर्ज करा चुका है। उसने कहा है कि अफगान जमीन का उपयोग आतंकवाद और कट्टरपंथ के लिए नहीं होना चाहिए। तालिबानी व्यवस्था में सभी वर्गों का प्रतिनधित्व नहीं होने को लेकर भी आपत्ति जताई गई है। हालांकि भारत बैक डोर चैनल से सभी सम्बद्ध पक्षों से बातचीत का चैनल खुला रखा हुआ था, जिससे भारत के नागरिकों की सुरक्षा व अन्य चिंताओं का समाधान किया जाए।