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मोहब्बत, भाईचारे और खुशी का त्योहार है ईद  

ईद का मतलब ही है-ख़ुशी। ईद ख़ुशियों का पैग़ाम लेकर आती है।

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Mukesh Kumar

Jul 06, 2016

Eid festival : fannie and siwaiya adorned shops

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आगरा।
त्योहार का संबंध मनुष्य की भावनाओं से होता है। मनुष्य की स्वाभाविक इच्छा होती है कि वो खुश रहे, फिर वो इस ख़ुशी को कभी अकेले व्यक्त करता है या कभी सबके साथ मिलकर। ईद का त्योहार सबके साथ ख़ुशी बांटने का त्योहार है। वास्तव में इसी दिन ख़ुशी का सामूहिक रूप से जाहिर करने का दूसरा नाम ईद है। चूंकि ख़ुशी प्रकट करना मनुष्य का स्वभाव है, इसलिए इस्लाम धर्म में भी मनुष्य के स्वभाव को ध्यान में रखते हुए दो महत्वपूर्ण दिन रखे हैं। ईदुल-फितर, ईदुल अजहा, इसके आलावा शब्बेबरात, मुहर्रम और बाराबफात आदि, मुसलमानों के प्रमुख त्योहारों में हैं।


ईद का मतलब ही है- ख़ुशी

ईदुल फितर यानी ईद। इस्लामी कलेंडर के अनुसार रमजान महीने के 30 या 29 रोजे रखने के बाद चांद दिखाई देने पर शव्वाल महीने की पहली तारीख को मनाई जाती है। ईदुल फितर पूरी दुनिया में सामूहिक रूप से मनाई जाती है। चाहे कोई किसी भी नस्ल का हो चाहे कोई भी भाषा बोलता हो, दुनिया के किसी भी क्षेत्र में रहता हो, किसी भी कबीले या खानदान से संबंध रखता हो, या किसी भी हैसियत का हो, सभी मुसलमान बिना किसी भेदभाव के सामूहिकता की भावना के साथ इस त्योहार को मानते हैं। ईद का मतलब ही है-ख़ुशी।


खुशियों का पैगाम लेकर आती है ईद

अरबी भाषा में यह शब्द अपने मूल रूप से 'उद'से आया है। अर्थात वह चीज जो बार- बार वापस आये। ईद हर साल आती है और ख़ुशियों का पैग़ाम लेकर आती है। इसलिए इसका नामकरण 'ईद'किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि पैगम्बर हज़रत मुहम्मद साहब ने 27 मार्च 664 ई.को मदीना-मुनव्वरा से बाहर ईद मनाई थी। वैसे ईद एक महीने के रोजे पूरे होने की ख़ुशी में अल्लाह का शुक्रिया अदा करने के लिए मनाई जाती है। ईद का त्यौहार अल्लाह ने रमज़ान के 30 रोजे रखने के इनाम के बदले में दी है।


इस दिन अदा की जाती है विशेष नमाज

ईद के दिन एक विशेष नमाज़ अदा की जाती है, जिसे ईद की नमाज़ कहते हैं। मुसलमान ईदगाह में इकट्ठा होकर यह नमाज़ अदा करते है। यह रोजाना की पांच नमाजों से अलग होती है। अल्लाहताला का यह भी हुक्म है कि इस दिन कोई भूखा ना रहे। इसलिए गरीबों, बेसहारों, मुफलिसों और मिसकीनों के लिए फितरे का इंतज़ाम है। जिससे की गरीबों की मदद हो सके और वो भी अपनी ईद मना सकें। हर वो मुसलमान जिसकी आर्थिक स्थिति अच्छी हो, इसके लिए अनिवार्य है कि वह अपनी ओर से अपने परिवार के सदस्यों का फितरा अदा करे जिस पर गरीबों का हक़ होता है सदस्य चाहे बालिग या नाबालिग हो। यहां तक कि नमाज़ से पहले जन्म लेने बाले बच्चे के लिए भी फितरा देना जरुरी है।


हफ्तेभर चलता है दावतों का सिलसिला

ईद की नमाज़ अदा करने के बाद लोग एक-दूसरे से गले मिलकर ईद की मुबारकबाद देते हैं और अपने सारे गिले शिकवे भुलाकर एक दूसरे को माफ़ कर दिया जाता है। मुस्लिम घरों में दावतों का सिलसिला पूरे हफ्ते चलता है। इसमें दोस्त, रिश्तेदार के आलावा दूसरे मज़हब के लोग भी ईद की मुबारकबाद गले मिलकर एक दूसरे को देते हैं गंगा-यमुनी तहजीब से सरोबर आपसी मेलमिलाप और भाईचारे का संजीव दृश्य हर ओर नज़र आता। जिससे क़ौमी एकता को मज़बूती मिलती है। इसीलिए ईद को मोहब्बत, प्यार, भाईचारे का त्योहार कहा जाता है।




(लेखक- इमरान कुरैशी, पूर्व मंडल अध्यक्ष भारतीय मुस्लिम विकास परिषद् मंटोला आगरा)

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