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बॉम्बे हाई कोर्ट का फरमान – कार का टायर फटना नहीं है ‘एक्ट ऑफ गॉड’, इंश्योरेंस कंपनी को देना होगा मुआवजा

Bombay High Court Order: बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अहम केस पर बड़ा फैसला सुनाया है। रोड एक्सीडेंट के मामले में कार के टायर को फटने को बॉम्बे हाई कोर्ट ने 'एक्ट ऑफ गॉड' मानने से इनकार कर दिया है। साथ ही बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले में इंश्योरेंस से जुड़ा एक बड़ा फैसला भी सुनाया है।

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Bombay High Court

रोड सेफ्टी सिर्फ भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में एक अहम मुद्दा है। हर साल रोड एक्सीडेंट्स के कई मामले देखने को मिलते हैं जो अलग-अलग वजहों से होते हैं। हालांकि इंश्योरेंस होने पर एक्सीडेंट में हुए नुकसान का हर्जाना मिल जाता है। पर कई मामलों में इंश्योरेंस कंपनी हर्जाना देने से मना कर देती हैं और इस तरह के मामले कोर्ट तक पहुँच जाते हैं। इसी तरह का एक मामला हाल ही में सामने आया है जिसमें बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। यह मामला एक कार एक्सीडेंट में एक व्यक्ति की मौत से जुड़ा है। यह रोड एक्सीडेंट कार का टायर फटने से हुआ था, जिसमें इंश्योरेंस कंपनी ने मुआवजा देने से यह कहते हुए मना कर दिया था कि कार का टायर फटना 'एक्ट ऑफ़ गॉड' है।


कार का टायर फटना नहीं है 'एक्ट ऑफ गॉड'

12 साल से ज़्यादा पुराने मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला लिया है। बॉम्बे हाई कोर्ट के जज एस.जी. डिगे ने इस मामले में फैसला देते हुआ कहा है कि कार का टायर फटना 'एक्ट ऑफ गॉड' ('Act of God') की श्रेणी में नहीं, बल्कि इंसान की असावधानी माना जाएगा। 'एक्ट ऑफ गॉड' यानि की ऐसा कोई एक्ट जो मानवीय नियंत्रण से बाहर हो।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कार का टायर फटने को इंसान की असावधानी बताया है। हालांकि बॉम्बे हाई कोर्ट ने कार के तैयार फटने के लिए इंसान को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया, पर इसे एक मानवीय गलती का नतीजा बताया।


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इंश्योरेंस कंपनी को देना होगा मुआवजा

यह पूरा मामला 12 साल से ज़्यादा पुराना है। 25 अक्टूबर, 2010 को टवर्द्धन नाम का शख्श अपने दो दोस्तों के साथ एक प्रोग्राम में शामिल होने के बाद दोस्त की कार से पुणे से वापस मुंबई लौट रहा था। रास्ते में पटवर्द्धन के दोस्त की कार का पिछला टायर फट गया और तेज़ स्पीड में होने की वजह से कार एक गहरी खाई में गिर गई। इस एक्सीडेंट में पटवर्द्धन की मौत हो गई थी। वह अपने परिवार में कमाने वाला इकलौता व्यक्ति था और उसके परिवार में उसके बुज़ुर्ग माता-पिता, उसकी पत्नी और एक छोटी बेटी थे।

इस मामले में मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल, पुणे ने इंश्योरेंस कंपनी को पटवर्द्धन के परिवार को 9% ब्याज के साथ 1.25 करोड़ रूपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था। इंश्योरेंस कंपनी ने 7 जून, 2016 को इस आदेश को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती देते हुए मुआवजे की राशि को काफी ज़्यादा बताते हुए इस पूरे मामले को 'एक्ट ऑफ गॉड' बताया था।

अब इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए इस 'एक्ट ऑफ गॉड' मानने से इनकार करते हुए इंश्योरेंस कंपनी को पटवर्द्धन के परिवार को मुआवजा देने का फैसला सुनाया है।


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