
Rahul Bajaj
Rahul Bajaj Death: बजाज ग्रुप के मानद चेयरमैन राहुल बजाज (Rahul Bajaj) अब हमारे बीच नहीं रहें। लंबे समय से कैंसर की बीमारी से लड़ते हुए आज पुणे में 83 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। राहुल बजाज न केवल एक उद्योगपति के तौर पर जाने जाते रहे हैं बल्कि उनका बेबाक नजरिया उन्हें बाकियों से अलग बनाता था। तकरीबन 50 सालों तक उन्होनें कंपनी का नेतृत्व किया है और आम भारतीय के सपनों को देशी 'स्कूटर' के तौर पर एक नई उड़ान दी।
राहुल बजाज का जन्म 30 जून 1938 को कोलकाता में हुआ था। राहुल के दादा जमनालाल बजाज ने 1926 में बजाज समूह की स्थापना की और उनके पिता कमलनयन बजाज ने उन्हें 1942 में उत्तराधिकारी बनाया। कमलनयन ने बजाज ऑटो (Bajaj Auto) की शुरुआत की और इस दौरान महज तीन साल के भीतर उन्होंने सीमेंट, बिजली के उपकरण और स्कूटर सहित नए व्यवसायों में विस्तार किया।
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राहुल बजाज ने 1958 में दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बॉम्बे विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री भी हासिल की। फिर उन्होंने अमेरिका के हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एमबीए किया। राहुल बजाज उप महाप्रबंधक (Deputy General Manager) के रूप में अपने पिता के समूह का हिस्सा बने। वह कंपनी में मार्केटिंग, अकाउंट्स, परचेज और ऑडिट जैसे प्रमुख विभागों के प्रभारी थें।
उस वक्त बजाज ऑटो के CEO नवल के फिरोदिया के मार्गदर्शन में, राहुल ने व्यवसाय की बारीकियां सीखीं, बाद में फिरोदिया और बजाज के रास्ते अलग हो गए। 1972 में अपने पिता के निधन के बाद, राहुल को बजाज ऑटो का प्रबंध निदेशक नियुक्त किया गया। उनके नेतृत्व में कंपनी ने जबरदस्त ग्रोथ दर्ज की। राहुल बजाज ने 1970 और 80 के दशक में फर्म का निर्माण किया और देखते ही देखते कारोबार इस कदर बढ़ा कि कंपनी अरबों डॉलर के क्लब में शामिल हो गई।
ये राहुल बजाज के नजरिए का ही कमाल था जब देश को Bajaj Chetak, Priya और Super जैसे स्कूटरों के मॉडलों की सवारी करने का मौका मिला। स्कूटर सेग्मेंट ने कंपनी की ग्रोथ में सबसे अहम योगदान दिया। उनकी अगुआई में बजाज ऑटो का टर्नओवर 7.2 करोड़ से 12 हजार करोड़ तक पहुंच गया और यह स्कूटर बेचने वाली देश की प्रमुख कंपनी बन गई।
उन्हें 1986 में इंडियन एयरलाइंस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था और 2001 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। जून 2006 में, राहुल बजाज महाराष्ट्र से राज्यसभा के लिए चुने गए थें। साल 2005 में उन्होंने कंपनी के अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया और उनके बेटे राजीव बजाज समूह के प्रबंध निदेशक बने।
हमारा बजाज: जब एक TV विज्ञापन के धुन पर पूरा देश नाचा:
अस्सी के दशक में जब एक दोपहिया वाहन का मालिक होनो देश के मध्यम वर्गीय परिवार के लिए किसी लग्ज़री से कम नहीं था। उस दौर में बजाज चेतक जो कि लगभग स्कूटर का पर्यायवाची बन चुका था हर मिडिल-क्लास फैमिली की विश-लिस्ट में सबके अव्वल मुकाम पर था। हर कोई चाहता था कि, वो भी बजाज के इस शानदार स्कूटर की सवारी करे। इस स्कूटर की लोकप्रियता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि उस समय इसका वेटिंग पीरियड तकरीबन 10 साल तक हुआ करता था।
राहुल बजाज की पहल का ही नतीजा था जब कि चेतक और बजाज सुपर मॉडल भारतीय बाजार में प्रमुखता से उभरें। मूल रूप से इतालवी मॉडल वेस्पा स्प्रिंट पर बेस्ड, चेतक दशकों तक लाखों भारतीयों के लिए परिवहन का एक किफायती साधन था और इसे 'हमारा बजाज' के रूप में आज भी याद किया जाता है। उनके नेतृत्व में बजाज ऑटो ने स्कूटर को घरेलू नाम बना दिया। कंपनी के 'हमारा बजाज' अभियान, जिसकी कल्पना तब की गई थी जब राहुल बजाज कंपनी के शीर्ष पर थे, ने कंपनी के स्कूटरों को सभी भारतीयों के जीवन का अभिन्न अंग बना दिया।
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यह वह समय था जब एक ब्रांड के साथ भावनात्मक जुड़ाव विज्ञापनदाताओं और एजेंसियों के भाग्य को बदल सकता था। उस समय कंपनी ने अपने दोपहिया वाहनों के रेंज के लिए एक टीवी कमर्शियल 'हमारा बजाज' लॉन्च किया, जो पूरे देश में किसी नेशनल एंथम की तरह गूंजने लगा। यह वह समय था जब भारत "ये ज़मीन, ये आसमान" की धुन पर नाच रहा था।
किसने लिखी 'बुलंद भारत' की धुन:
''ये जमीन ये आसमान , हमारा कल हमारा आज , बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर, हमारा बजाज...'' इस यादगार विज्ञापन के जिंगल के बोल जयकृत रावत (Jaikrit Rawat) ने लिखे थें और इसका निर्देशन किया था फिल्म निर्माता सुमंत्र घोषाल (Sumantra Ghosal) ने और इसे संगीत से पिरोया था लुईस बैंक्स (Louis Banks) ने। ये वो समय था जब भारत विदेशी कंपनियों के लिए खुले और सबसे ज्यादा लाभ देने वाले बाजार के तौर पर उभर रहा था, और यही कारण था कि कंपनी देशवासियों को उनके भावनाओं को समझते हुए इस विज्ञापन का निर्माण किया और लोगों को बजाज ऑटो से जोड़ने में सफल हुई।
बजाज का 'बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर' होने का विचार निसंदेह कंपनी के सबसे अहम फैसलों में से एक था। इस विज्ञापन को आज भी जब हम सुनते हैं तो नब्बे के दशक की धुंधली यादें हमें घेर लेती हैं। उस दौर में अपना बचपन जीने वालों के लिए ये धुन न केवल एक स्कूटर का जिंगल है बल्कि भावनाओं से भरी हुई उस गठरी के समान है जिसमें अनगिनत सुनहरी यादें हैं।
Updated on:
13 Feb 2022 07:30 am
Published on:
12 Feb 2022 10:31 pm
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