
अयोध्या में हैं सैकड़ों वर्ष पुराने करीब 35 जातीय मंदिर, सबमें होती है राम सीता की पूजा सिर्फ इस एक मंदिर में नहीं
संजय कुमार श्रीवास्तव / सत्यप्रकाश
पत्रिका न्यूज नेटवर्क
अयोध्या. अयोध्या में रामलला का मंदिर, निर्माण की प्रक्रिया में आ गया है। नींव खुदाई का काम मार्च तक पूरा हो जाएगा। और फिर आगे की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। राम मंदिर तो पूरे विश्व में विख्यात है। पर यह जानकार ताज्जुब होगा कि अयोध्या में जातीय मंदिर भी हैं। जैसे कोई मंदिर कुर्मी जाति का है तो कोई धोबी जाति का। जी.. अयोध्या में करीब ऐसे अलग-अलग जातियों के 35 मंदिर हैं। यह सभी जातीय मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराने हैं। इनमे पूजा तो राम-सीता की होती है, पर मंदिर का कार्यभार और उसका रखरखाव जिस जाति का मंदिर होता है उसी जाति के लोग ही संभालते हैं। अब इन मंदिरों की हालत खस्ता होती जा रही है। और इनका कोई खैरख्वाह नहीं है। यह के अधिकतर मंदिर में श्री राम जानकी की पूजा होती है पर यादव मंदिर में राधा कृष्ण की पूजा की जाती है।
अयोध्या में करीब 35 जातीय मंदिर :- अयोध्या के चारों दिशाओं में करीब 35 जातीय मंदिर स्थित हैं। जिनमें कुछ कुर्मी, धोबी, पटवा, कलवार, कसेरा, हलवाई (मोदनवाल), विश्वकर्मा, पासी, सोनार, टेढ़ी बाजा स्थित यादव, निषाद, मुराव, खटिक, लकड़हारा, अशर्फी भवन स्थित कसौंधन, बरई, भुज, खाकी अखाड़ा स्थित राजभर, ऋणमोचनघाट स्थित मद्देशिया, कुशवाहा, पटेल, गोलाघाट स्थित दांगी क्षत्रिय मंदिर, स्वर्णखनि कुंड के पास संत रविदास मंदिर, स्वर्गद्वार स्थित गहोई, हनुमानगढ़ी के पास साहू मंदिर हैं। बाकी के नाम उपलब्ध नहीं हैं।
जब जाति व्यवस्था काफी हावी थी तब :- रामलला की जन्मभूमि में इस प्रकार के जातियां मंदिर का होना एक सवाल पैदा करता है। बताया जाता है कि जब जाति व्यवस्था काफी हावी थी तो बड़े लोग या राजा महाराजाओं ने अपनी जाति के लिए यहां मंदिर बनवा दिया था। जिनमें धर्मशाला जैसी व्यवस्था भी थी। जब इन जातियों के लोग रामलला के दर्शन को आते तो इन्हीं मंदिरों में रुकते और निवृत्त होकर रामलला के दर्शन करते थे। ये सभी मंदिर करीब 250 साल तो कुछ 150 साल पुराने हैं।
साल में एक बार जातीय पंचायत :- अयोध्या में जातीय मंदिरों का एक बड़ा फायदा यह था कि, इन मंदिरों में साल में एक बार जातीय पंचायत होती थी, जिसमें लोग अपने विवादों को रखते थे और उस पर पंच जो निर्णय देते थे उसे सिर आंखों पर रख मान लेते थे। यह भी देखा गया है कि पंचायत के फैसला दिए जाने के बाद भगवान के विग्रह के सामने दोनों पक्षों को फैसला मानने की शपथ भी दिलाई जाती है। इस प्रकार अधिकांश समस्याओं का निपटारा भी हो जाता था। और कई जगहों पर अभी भी इसकी मान्यता है।
बहुत से मंदिर विवादित :- रामजन्मभूमि के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने बताया कि अयोध्या का सर्वांगीण विकास प्रारंभ हो गया है कुछ ही दिनों में इसका स्वरूप दिखाई देने लगेगा लेकिन इसी अयोध्या में बहुत से जातीय मंदिर हैं। जिनमें बहुत से मंदिर विवादित है, कुछ की समिति बनी है और कुछ ऐसे हैं जिनके पास कोई साधन उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में इन मंदिरों की देखरेख बहुत आवश्यक है।
जातीय मंदिरों की व्यवस्था जरूरी :- आचार्य सत्येंद्र दास कहते हैं कि, इन 37 जातीय मंदिरों को बचाए रखने के लिए इनकी व्यवस्था करना जरुरी है। इनकी व्यवस्था चाहे मंदिरों की देखरेख में बने ट्रस्ट करें या फिर मंदिरों के जो सहयोगी है उनके द्वारा किया जाए। क्योंकि अयोध्या सभी जातीय सभी संप्रदाय के लिए हैं। सभी की व्यवस्था होना आवश्यक है। इसलिए मांग करता हूं कि अयोध्या के सर्वांगीण विकास के साथ जातीय मंदिरों को भी व्यवस्थित किया जाए।
मंदिर पर पंचायत होती थी :- विहिप के अवध प्रांत के प्रवक्ता शरद शर्मा ने इस मुद्दे पर बताया था कि, इन मंदिरों को बनाने का उद्देश्य यही था कि यदि किसी जाति वर्ग में आपस में कोई समस्या या मामला है तो उस जाति के मंदिर पर पंचायत होती थी और मामले का निपटारा किया जाता था।
Updated on:
12 Mar 2021 06:13 pm
Published on:
12 Mar 2021 06:06 pm
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