Ram Janmotsav : नौ वर्ष के बाद रामनवमी पर ग्रहों का बन रहा संयोग, जाने क्या है शुभ मुहूर्त दिग्पाल करते हैं सुरक्षा :- एक मशहूर बताते हैं कि प्रमुख रूप से चार दिशाएं पूरब, उत्तर, पश्चिम व दक्षिण हैं। चार विदिशाएं ईशान, अग्नि, नैऋत्य व वायव्य हैं। शास्त्रों में ऊर्ध्व व अधो दिशाओं की भी गणना होती है। इन सभी दस दिशाओं के देवता होते हैं, जिन्हें दिग्पाल कहा जाता है। और यह सभी अपनी—अपनी दिशाओं की रक्षा करते हैं। इनके सथापित करने का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि जहां पर इन देवताओं को स्थापित करते हैं उस स्थान की भूमि, मंदिर व भवन लम्बे समय तक सुरक्षित रहते हैं।
दसों दिग्पाल :—
पूर्व —इंद्र
पूर्व दक्षिण (अग्नि कोण)— अग्नि
दक्षिण —यमराज
दक्षिण पश्चिम ( नैऋत्य) —निऋति
पश्चिम — वरुण
उत्तर पश्चिम — वायु
उत्तर — कुबेर
उत्तर पूर्व ( ईशान कोण) — शिव
अंतरिक्ष की ओर (शास्त्रीय नाम-ऊर्ध्व)- ब्राह्म
नीचे की ओर (शास्त्रीय नाम-अधो ) दिशा — अनंत भगवान
पूर्व —इंद्र
पूर्व दक्षिण (अग्नि कोण)— अग्नि
दक्षिण —यमराज
दक्षिण पश्चिम ( नैऋत्य) —निऋति
पश्चिम — वरुण
उत्तर पश्चिम — वायु
उत्तर — कुबेर
उत्तर पूर्व ( ईशान कोण) — शिव
अंतरिक्ष की ओर (शास्त्रीय नाम-ऊर्ध्व)- ब्राह्म
नीचे की ओर (शास्त्रीय नाम-अधो ) दिशा — अनंत भगवान
राजस्थान में गढ़ी जा रहींं है दिग्पाल की शिलाएं :- राम मंदिर के गर्भगृह में सभी दस दिशाओं के देवताओं यानि की दिग्पालों की शिलाओं को उनके अस्त्रों के साथ विधिवित पूजन अर्चना के साथ गर्भगृह में प्रतिष्ठित किया जाएगा। वास्तुशास्त्र के दृष्टिकोण से ये सभी शिलाएं मंदिर को दीर्घकालिक बनाने में सहायक होंगी। दिग्पालों की सभी दस शिलाएं राजस्थान में गढ़ी जा रही हैं। इन सभी को मई माह में गर्भगृह में स्थापित करने की योजना है। इसी के बाद गर्भगृह में इंजीनियर्ड मैटीरियल फिलिंग का कार्य शुरू हो सकेगा। अभी तकरीबन ढाई हजार वर्ग फीट (गर्भगृह) को छोड़कर नींव भराई का कार्य चल रहा है।