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केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक नाराज? अयोध्या दौरा किया रद्द, क्या विज्ञापन में फोटो न छपना वजह या कुछ और…?

रामनगरी अयोध्या आज 26 लाख दीयों की चमक से नहा रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश की सियासी दुनिया में एक ठंडी हवा चल पड़ी है। योगी आदित्यनाथ कैबिनेट के दोनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक ने दीपोत्सव के इस वैश्विक उत्सव से किनारा कर लिया।

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अयोध्या की पावन धरती पर दीपावली की चांदनी बिखरने को तैयार है, लेकिन उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में एक अनकहा तनाव छा गया है। योगी आदित्यनाथ सरकार के दोनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक ने अयोध्या दीपोत्सव के भव्य आयोजन से खुद को अलग कर लिया। क्या शनिवार को जारी सरकारी विज्ञापन में उनके नामों की अनदेखी करना इसकी वजह हो सकती है?

प्रदेश सरकार की ओर से शनिवार को समाचार पत्रों में छपे पूरे पेज के विज्ञापन ने सुर्खियां बटोरीं, लेकिन गलत वजहों से। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीरें प्रमुखता से थीं, साथ ही अयोध्या के प्रभारी मंत्री सूर्य प्रताप शाही (कृषि) और पर्यटन-संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह के नाम भी हैं। लेकिन, दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक का जिक्र तक नहीं। सूचना विभाग के अधिकारियों ने बताया कि 'कार्यक्रम-केंद्रित' था, सूर्य प्रताप शाही प्रभारी का होने के नाते और जयवीर सिंह नोडल विभाग (संस्कृति) के मुखिया होने के कारण उनका नाम विज्ञापन में रखा गया।

बिहार चुनाव में सह-प्रभारी हैं केशव प्रसाद मौर्या

केशव प्रसाद मौर्य, जो हाल ही में बिहार विधानसभा चुनाव के सह-प्रभारी नियुक्त हुए हैं, अयोध्या के लिए लखनऊ तक पहुंच चुके थे। लेकिन, विज्ञापन देखते ही उन्होंने प्लान ड्रॉप कर लिया और घर लौट आए। अब वहां दीवाली मिलन के नाम पर स्थानीय समर्थकों से मुलाकात कर रहे हैं। दूसरी ओर, ब्रजेश पाठक ने रविवार सुबह रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ समय बिताया, उसके बाद घर पर ही व्यस्त हैं। दोनों की अनुपस्थिति अयोध्या के इस वैश्विक आयोजन को एक सियासी रंग दे रही है, जहां 26 लाख दीये जलकर नया गिनीज रिकॉर्ड बनाने की तैयारी है।

2022 में भी हुई थी एक घटना

यह कोई नई बात नहीं। 2022 के दीपोत्सव में भी मौर्य ने अयोध्या का रुख नहीं किया था। तब सीएम कार्यालय ने उन्हें हेलीकॉप्टर से ले जाने के लिए योगी के सलाहकार अवनीश अवस्थी को उनके घर भेजा। लेकिन मौर्य ने साफ मना कर दिया। सूत्र बताते हैं कि उन्होंने पाठक के जरिए योगी को संदेश भेजा: "सिराथू विधानसभा चुनाव में हार के पीछे अवस्थी की भी भूमिका थी, इसलिए उनके साथ यात्रा अस्वीकार्य।" यह घटना भी कैबिनेट के भीतर की दरारों का प्रतीक बनी।

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि दोनों उपमुख्यमंत्री लंबे अर्से से असंतुष्ट हैं। सरकारी कार्यक्रमों में उन्हें अक्सर 'साइडलाइन' किया जाता है, जबकि वित्त एवं संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना और जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह योगी के हर मंच पर साझीदार नजर आते हैं। ओबीसी पृष्ठभूमि के मौर्य और ब्राह्मण समुदाय से पाठक को लगता है कि सत्ता का केंद्र बिंदु सिर्फ योगी (क्षत्रिय) पर टिका है। बिहार चुनाव से ठीक पहले यह 'सिग्नल' दिल्ली तक पहुंचा है, जो पार्टी के लिए चुनौती बन सकता है।

विश्लेषकों का मानना है कि विज्ञापन महज बहाना है, मुख्य वजह है कैबिनेट में बढ़ती असमानता। एक ओर जहां अयोध्या राम जन्मभूमि का प्रतीक है और योगी की छवि इससे जुड़ी है, वहीं डिप्टी सीएम की अनुपस्थिति 'एकता' की नकली परतें उधेड़ रही है। पार्टी आलाकमान (अमित शाह या जेपी नड्डा) जल्द हस्तक्षेप कर सकता है, वरना 2027 के यूपी चुनावों में यह फूट बड़ा खतरा साबित हो सकती है।


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