
अयोध्या में स्थित मणिपर्वत
अयोध्या में स्थित 80 फिट ऊंचे मणि पर्वत ऐतिहासिक धरोहर है। जिसकी सुरक्षा और संरक्षण भारत सरकार द्वारा संचालित पुरातत्व विभाग किया जाता है। और क्षेत्र के 100 मीटर के परिधि के आसपास खुदाई या निर्माण कार्य भारत सरकार के द्वारा प्रतिबंधित किया गया है। और इस क्षेत्र को संरक्षित करते हुए और सुंदर बनाने के लिए भारत सरकार जल्द ही एक बड़ी योजना खिलाने जा रही है। इसके बाद क्षेत्र पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र होगा
अयोध्या में स्थित मणिपर्वत का है पौराणिक महत्त्व
मणिपर्वत को भी त्रेतायुगीन माना जाता है। मणिपर्वत से जुड़े पंडित कौशल्यानंदन वर्धन बताते हैं कि मणिपर्वत का इतिहास रुद्रयामल और सत्योपाख्यान में वर्णित है। उसके मुताबिक भगवान राम जब शादी के लिए जनकपुर गए तब कैैकेई ने कनक भवन बनवाने का हठ किया। कैकेई ने कनक महल जानकी को उपहार में दे दिया। और इंद्राणि से मिली मणि भगवान राम को दे दी। लेकिन राम सहित किसी भाई ने इसे धारण नहीं किया। बाद में यह मणि जानकी के चरणों में अर्पित कर दी गयी। मणि का जोड़ा न होने के कारण भगवान राम ने इसे ग्रहण नहीं किया था। बाद में जानकी के आशीर्वाद से जनकपुर में मणियों का अंबार लग गया। राजा जनक ने इसे पुत्री का धन मानते हुए अयोध्या भेज दिया था। यही मणियां अयोध्या के रामकोट के दक्षिण दिशा में रख दी गईं। जो एक योजन ऊंचे पहाड़ जैसी बन गयीं। यही मणिपर्वत है।
सावन महीने के तृतीय तिथि पर मणिपर्वत पर होता है भव्य आयोजन
ऐसी मान्यता है कि इसी मणि पर्वत पर भगवान राम ने माता सीता के साथ सावन महीने में तृतीया तिथि के दिन झूला झूलते थे. त्रेतायुग की यह परंपरा आज भी कलयुग मे चलती आ रही है. मणि पर्वत पर भगवान झूला झूलते हैं तो वहीं हजारों की संख्या में श्रद्धालु मंदिरों में झूलन उत्सव का आनंद लेते हैं, पूजा अर्चन व दर्शन करते हैं. अपने जीवन को सफल बनाने के लिए कामना करते हैं।
Published on:
12 Aug 2023 07:47 pm
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