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‘जीवन में राम’ भाग 7: अपने चरित्र के कारण मानव समाज के आदर्श हैं श्रीराम

युद्धभूमि में रावण को लगा राम के शील का बाण, हुई असह्य वेदना। पढ़िए, सिद्धपीठ श्रीहनुमन्निवास के आचार्य मिथिलेश नन्दिनी शरण की आलेश श्रृंखला जीवन में राम का सातवां भाग...

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जीवन में राम

चरित्र एक ऐसी अवधारणा है जिसके द्वारा मनुष्य के सम्पूर्ण आचरण को एक ही शब्द में निरूपित किया जा सकता है। सामाजिक जीवन में चरित्रवान् पुरुष अथवा चरित्रवती स्त्री कहना समग्र अनुशंसा समझी जाती है। चरित्र का तात्पर्य व्यक्ति की निष्ठा से है। समूचे बर्ताव के केन्द्र में अस्तित्व को नियमित करने वाले जो सिद्धांत होते हैं, उन्हीं से चरित्र की पहचान होती है। दशरथनन्दन श्रीराम अपने चरित्र के कारण मानव समाज के आदर्श हैं, क्योंकि उनका सम्पूर्ण जीवन उनकी निष्ठाओं के आधार पर परिभाषित और प्रबंधित है।

मुनि विश्वामित्र के साथ जनकपुर की यात्रा में पुष्पवाटिका में तुलसी-पुष्प लेने गए श्रीराम प्रथम बार श्रीजानकी का दर्शन करते हैं। जानकी की असाधारण रूप, सौन्दर्य, माधुर्य से युक्त भुवनमोहिनी छवि उन्हें मुग्ध कर लेती है। भावविभोर होकर उन्हें देखते श्रीराम पल भर में ही चैतन्य होकर अपने इस विमोह की समीक्षा करते हैं। वे विचार करते हैं कि रघुवंशी धर्म की मर्यादा के बाहर किसी स्त्री पर दृष्टि नहीं डालते, तब मैं बिना किसी संबंध का आश्रय लिए जानकी के प्रति इतना उत्कण्ठित क्यों हूं, क्या यह मेरे चरित्र के अनुरूप है। अपनी इस मनोदशा का औचित्य निर्धारित करते हुए श्रीराम कहते हैं- ‘मोहि अतिसय प्रतीति मन केरी। जेहि सपनेहुं पर नारि न हेरी।’ मुझे अपने मन पर पूरा भरोसा है, जो कभी परस्त्री दर्शन में प्रवृत्त नहीं हो सकता। आज यदि जनकनन्दिनी जानकी को देखकर मेरा मन मुग्ध हुआ तो देवता इसका रहस्य जानते होंगे- ‘सो सब कारन जान बिधाता।’

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श्रीराम के चरित्र का एक और उदाहरण देखें। एक दिन युद्धभूमि से थका-हारा रावण अचानक महल में पहुंचा। मंदोदरी ने उससे युद्ध का और उसके स्वास्थ्य का हाल पूछा। रावण कहता है कि आज मेरी वेदना असह्य है। मंदोदरी जानना चाहती है कि क्या किसी दिव्यास्त्र का आघात लगा है? तो रावण कहता है कि आज राम ने मुझे शील का बाण मारा है, जिसकी कोई चिकित्सा नहीं है। युद्ध में नि:शस्त्र हो जाने पर आज जब मैं किंकत्र्तव्यविमूढ़ हो रहा था, तो राम ने अवसर होने पर भी मुझे मारने के बजाय छोड़ दिया। उस तपस्वी ने कहा कि ‘लंकेश! मैं रघुवंशी राम हूं, मैं निहत्थे पर वार नहीं करता। जाओ विश्राम करके शस्त्र लेकर आओ तब तुम्हारा वध करूंगा।’ रावण कहता है, यह असह्य है। श्रीराम किसी भी परिस्थिति में अपने इस चरित्र का त्याग नहीं करते, यही उनके मर्यादापुरुषोत्तम होने का अर्थ है।

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