
अरहर दाल
आजमगढ़. कम वर्षा के बीच खरीफ की फसल में किसानों की समस्या बढ़ गयी है। ट्यूबवेल से धान की रोपाई और फसल की सुरक्षा असान काम नहीं हैं। किसान परेशान है। ऐसे में यह मना जा रहा है कि यदि किसान दलहनी फसल अरहर की खेती तो खरीफ में होने वाले नुकसान की भरपाई कर सकता है।
अरहर दलहन की मुख्य फसल है लेकिन इसकी खेती में किसानों को कभी कभी भारी घाटा उठाना पड़ता है। कारण की आज भी ज्यादातर लोग इसकी बोआई छिड़काव विधि से करते है। ऐसे में अधिक बरसात के समय जलनिकासी की अच्छी व्यवस्था न होने अथवा जल जमाव की स्थित में फसल सूख जाती है। यदि किसान पारंपरिक विधि से हटकर मेड़ पर बोआई करें तो न केवल उत्पादन बढ़ जाएगा बल्कि फसल उकठने का खतरा भी समाप्त हो जाएगा।
कृषि विज्ञान केंद्र कोटवां के सस्य वैज्ञानिक डा.आरके सिंह का कहना है कि किसान अधिक उपज के लिए अरहर की खेती में 45 गुणे 45 सेंटीमीटर की दूरी पर मेड़ व नाली बनाए। इसके बाद मेड़ पर 25 से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर हाथ या मशीन से बोआई करे। बोआई के समय प्रति एकड़ 50 किग्रा डीएपी का प्रयोग करें। इस विधि से बोआई कर हम प्रति एकड़ 11 से 12 कुंतल उपज प्राप्त कर सकते है। उन्होंने बताया कि उर्वरक का उपयोग हम खेत तैयार करते समय कर सकते है। वेड प्लांटर या गन्ना रेजर से मेड़ बनाई जा सकती है।
मेड़-नाली विधि के लाभ
- कम वर्षा होने पर वर्षा जल संरक्षण किया जा सकता है।
- अधिक वर्षा होने पर पूरे खेत का पानी नाली के माध्यम से निकाला जा सकता है।
- नीलगायों से फसल बचाव में मेडऩाली पद्धति लाभदायक है। क्योंकि ऐसे खेतों में घडऱोज भागदौड़ या रैनबसेरा नहीं बना सकते। वे जिस नाली में घुसेगें उसी नाली से होते हुए बाहर निकल जाते हैं।
- कीटनाशी दवाओं का छिड़काव व अन्य सस्य प्रबंधन आसानी से अपनाया जा सकता है।
- बोआई के समय मेड़ों पर मक्के की बोआई भी की जा सकती है। इससे किसानों को एक अतिरिक्त फसल का लाभ मिल जाता है।
By Ran Vijay Singh
Published on:
28 Jul 2018 12:46 pm
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