उनके द्वारा लगाये गये युकीलिप्टस, शीशम, सीबबूल, (जंगली लकड़ी), अर्जुन, सागौन और अमरुद आदि के तीस हजार पौधे आज बड़े होकर वृक्ष बन गये है। अजय के बड़े भाई विजय सिंह पेशे से शिक्षक हैं। जबकि अजय सिंह व सुधीर सिंह खेती बाड़ी का काम देखते हैं। खाली समय में तीनों भाई अपने पिता के साथ प्रति दिन अपने लगाये हुए पेड़ों की देखभाल करते हैं। उनके द्वारा लगाये गया जंगल इतना बड़ा है कि उसमें कई तरह के पक्षीयों ने अपना आशियाना बना रखा है। चुंकि उसी किनारे तमसा नदी बहती है जिसकी बजह से पक्षियों को एक खुला वातावरण मिला हुआ है। यही नहीं मुबारकपुर व आसपास के लोगों के लिए यह किसी पिकनिक स्पॉट से कम नहीं है। प्रतिदिन यहां लोग पिकनिक मनाने पहुंचते है। पिता व पुत्र खुद तो उसकी देखभाल करते ही हैं दो मज़दूरों को भी उसकी देख भाल के लिए लगा रखा है। जंगल से से सटे चार बीघे का पोखरा खोदवाकर यह परिवार उसमें मछली पालन भी करता हैं। जिससे इन्हें अच्छी खासी आमदनी हो जाती है।