29 दिसंबर 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

खेती कर क्षेत्र के लिए मिसाल बने अजय सिंह 

उच्च शिक्षा के बाद भी नौकरी के बजाय खेती को दिया महत्व, 16 बीघे के प्लॉट में लगे हैं तीस हजार पौधे

2 min read
Google source verification

image

Ahkhilesh Tripathi

Apr 23, 2016

agriculture

agriculture

आजमगढ़. आज बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है, रोजगार के लिए युवा रोजाना संघर्ष कर रहे हैं। वहीं सठियांव के पाहीं गांव के रहने वाले अजय सिंह ने रोजगार के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने के बजाय कृषि के क्षेत्र ही अपने लिए रोजगार ढूंढकर समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गए हैं। अजय सिंह इसके साथ- साथ पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है। अजय सिंह ने उच्च शिक्षा के बाद भी नौकरी के बजाय कृषि को तरजीह दी और खेती के साथ ही 16 बीघा जमीन पर तीस हजार पौधे लगा डाले साथ ही बगल में तालाब बनवाकर मछली पालन कर अपनी आमदनी बढ़ाई। आज इनका बगीचा और तालाब लोगों के लिए किसी पिकनिक स्पॉट से कम नहीं है।

विकास खण्ड सठियांव के पाहीं गावं निवासी दिवाकर सिंह जिनकी गिनती क्षेत्र के बड़े जमींदारों में होती है। इन्होंने वर्ष 1968 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के एमएससीएजी के टॉपर छात्र रहे। दिवाकर सिंह उस जमाने के टॉपर छात्र रहने के बावजूद भी सरकारी सेवा में नहीं गये और अपनी खेती बाड़ी और बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान दिया। उन्होंने सदैव लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रेरित किया। इनके बड़े पुत्र अजय सिंह को पिता से ही प्रेरणा मिली और उन्होंने प्रकृति को हरा भरा रखने का बीड़ा उठाया। इसके बाद अजय सिंह को पेड़ पौधों से ऐसा लगाव हुआ कि उन्होंन अपने 16 बीघे के प्लाट में वर्ष 2001 में 30 हजार पौधे लगा दिये।

उनके द्वारा लगाये गये युकीलिप्टस, शीशम, सीबबूल, (जंगली लकड़ी), अर्जुन, सागौन और अमरुद आदि के तीस हजार पौधे आज बड़े होकर वृक्ष बन गये है। अजय के बड़े भाई विजय सिंह पेशे से शिक्षक हैं। जबकि अजय सिंह व सुधीर सिंह खेती बाड़ी का काम देखते हैं। खाली समय में तीनों भाई अपने पिता के साथ प्रति दिन अपने लगाये हुए पेड़ों की देखभाल करते हैं। उनके द्वारा लगाये गया जंगल इतना बड़ा है कि उसमें कई तरह के पक्षीयों ने अपना आशियाना बना रखा है। चुंकि उसी किनारे तमसा नदी बहती है जिसकी बजह से पक्षियों को एक खुला वातावरण मिला हुआ है। यही नहीं मुबारकपुर व आसपास के लोगों के लिए यह किसी पिकनिक स्पॉट से कम नहीं है। प्रतिदिन यहां लोग पिकनिक मनाने पहुंचते है। पिता व पुत्र खुद तो उसकी देखभाल करते ही हैं दो मज़दूरों को भी उसकी देख भाल के लिए लगा रखा है। जंगल से से सटे चार बीघे का पोखरा खोदवाकर यह परिवार उसमें मछली पालन भी करता हैं। जिससे इन्हें अच्छी खासी आमदनी हो जाती है।

ये भी पढ़ें

image