बिलरियागंज थाना क्षेत्र के मानपुर गांव निवासी महातम राय शुरू से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े थे। अटल जी जब पत्रकारिता छोड़ संघ से जुड़े तो उनकी मुलाकात महातम राय से हुई। दोनों अच्छे मित्र बन गये। वर्ष 1962 में जब अटल जी ने लखनऊ से चुनाव लड़ने का फैसला किया तो उस समय महातम राय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लखनऊ जनपद के जिला कार्यवाह थे। अटल जी जब मैदान में उतरे तो महातम राय के उनका चुनाव संयोजक भी बना दिया गया। बताते हैं कि उस समय महातम राय अटल जी को अपनी साइकिल पर बैठाकर घूमते थे। समय के साथ इनकी दोस्ती बढ़ती गयी।
महातम राय का 20 दिसंबर, 1994 को निधन हो गया लेकिन अटल जी का परिवार से रिश्ता उसी तरह बना रहा। महातम राय के एक पुत्र श्रवण कुमार राय और तीन पुत्रियां भाजपा नेता कुसुम राय, दूसरी सुषुम राय तीसरी सुमन हैं। महातम राय के पुत्र 60 वर्षीय श्रवण कुमार राय बताते हैं कि अटल जी 1999 में देश के प्रधानमंत्री बने। इसके बाद उन्होंने पूरे परिवार को दिल्ली बुलाया। उन्होंने मेरे पिता की बहुत सी यादों को हम सबके बीच साझा किया। बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि तुम लोगों के साथ एक भी फोटो मेरी नहीं है। ऐसा करते हैं कि एक-एक कर सभी के साथ फोटो कराते हैं। सभी के साथ फोटो हुई। जब मेरी पत्नी मंजू राय की बारी आई तो उन्होंने कहा कि यह तो मेरी बहू है। अब इसके साथ फोटो। मेरी पत्नी ने तुरंत सिर पर पल्लू रखा और बैठ गई उनके साथ। इसे आप जो भी नाम दे लें पर उस दौरान अटल जी ने स्वयं अपनी आंखें बंद कर लीं।
पिताजी के साथ बहुतायत यादें आज भी स्मृतियों में है। मेरे पिता जी आल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के महामंत्री व जार्ज फर्नाडीज अध्यक्ष थे। 1974 में आठ मई को विभिन्न मांगों को लेकर हड़ताल घोषित थी। इसके पूर्व यानी एक मई को पिताजी को गिरफ्तार कर लिया गया। अटलजी इससे बहुत आहत हुए थे। विपक्ष में होने के कारण सदन में उनकी गिरफ्तारी को लेकर आवाज उठाई। इतना ही नहीं इस मामले को लेकर सदन नहीं चलने दिया। 1977 में अटल जी विदेश मंत्री थे। पिता जी को ब्रेन ट्यूमर हो गया। इसकी जानकारी अटल जी को हुई। उस दौरान फोन की बहुत सुविधा नहीं थी। अलबत्ता उन्होंने लखनऊ में एक प्रतिष्ठित अखबार के संपादक को फोन किया। परिवार लखनऊ में था, जैसे ही सूचना मिली हम सब दिल्ली के लिए प्रस्थान किए।
दिल्ली जब उनके आवास पर हम सब पहुंचे तो अंदर जाने नहीं दिया गया। गार्ड ने सख्ती से रोक लिया। पिता जी ने विरोध भी किया। बहरहाल, पता नहीं कहां से यह सब चीजें अटल जी भी देख रहे थे। वह भागते हुए आए और पिता जी को गले लगाया। गेट पर खड़े गार्ड को हिदायत दी कि जब भी यह लोग आएं कभी मत रोकना, यह मेरा परिवार है। पिता जी का दूसरे दिन से इलाज शुरू हुआ। अस्पताल में उस दौरान अटल जी के अलावा राजनारायण, नाना जी देशमुख, पंडित दीनदयाल जी सब अस्पताल में बैठे रहते थे। वह पल अजीब था। डाक्टर पिता से बात करने को मनाही करते थे और आप सब की बातें खत्म होने का नाम नहीं लेती थी।
महातम राय के अलावा दो शख्स और थे जिसे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी काफी पसंद करते थे। अटल जी दो बार संघ प्रचारक के रूप में भी आजमगढ़ आये थे। उस समय वे शहर के प्रतिष्ठित सर्राफा कारोबारी गुरुटोला निवासी द्वारिका प्रसाद अग्रवाल के घर भी रहे। इसके पहले अटल जी 1964 में आजमगढ़ के पल्हनी ब्लाक के बेलनाडीह गांव में राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित संघ के कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आए थे। उस समय उन्होंने बेलनाडीह गांव निवासी स्व. रघुवीर सिंह के घर जाकर भोजन किया था। उनके पौत्र आनंद सिह कहते हैं कि बाबा का निधन दो अक्टूबर 1992 को हुआ।
अटल जी के कहने पर ही 1962 में मेरे बाबा विधानसभा निजामाबाद से चुनाव लड़े। बाद में संघ से जुड़कर उन्होंने किसान संघ के साथ भी कार्य किया। मृत्यु के वक्त वह काशी प्रांत के कोषाध्यक्ष के पद पर रहे। अटल जी आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके प्यार और स्नेह को लोग नहीं भूल पा रहे। उनके मिल चुके लोगों को मानना है कि राजनीति के एक युग का अंत हो गया। दूसरा अटल अब इस दुनिया को नहीं मिला है।
By Ran Vijay singh
By Ran Vijay singh