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चरण पादुका साहिब गुरुद्वारा : गुरु नानक देव और गुरु तेगबहादुर ने तमसा नदी के किनारे किया था तप

-गुरुद्वारे में प्राचीन शस्त्रों के साथ सुरक्षित हैं हस्तलिखित ग्रंथ-उदासीन पंथ के संस्थापक श्रीचन्द्र जी महाराज ने भी यहां किया था तप-दु:ख भंजन कुएं के जल से होता है सभी दुखों का नाश

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चरण पादुका साहिब गुरुद्वारा : गुरु नानक देव और गुरु तेगबहादुर ने तमसा नदी के किनारे किया था तप

चरण पादुका साहिब गुरुद्वारा : गुरु नानक देव और गुरु तेगबहादुर ने तमसा नदी के किनारे किया था तप

रणविजय सिंह

पत्रिका न्यूज नेटवर्क

आजमगढ़. जनपद मुख्यालय से 20 किमी दूर निजामाबाद स्थित चरण पादुका साहिब गुरुद्वारा (Charan Paduka Sahib Gurudwara) सिख धर्मावलम्बियों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां गुरु नानक देव, गुरु तेग बहादुर व दसवें गुरु गोविंद सिंह के साथ ही उदासीन पंथ के संस्थापक व गुरु नानक देव जी के पुत्र श्रीचन्द्र जी महाराज ने भी तप किया था। सिखों के इस स्थल के प्रति हिंदुओं के साथ मुसलमानों की भी गहरी आस्था है। सभी इस गुरुद्वारे में शीश नवाते हैं।

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बताया जाता है कि गुरु अमरदास की वंशावली से बाबा कृपालदास जी गुरु नानक देव के पवित्र स्थलों की खोज करते हुए निजामाबाद पहुंचे और यहीं रुक गए। यहीं उनके एक पुत्र ने जन्म लिया। इनका नाम बाबा साधु सिंह था। उनके साथ सौ सिंहों का जत्था हुआ करता था। गुरुद्वारे में आज भी पुराने शस्त्र नेजे, ढाल, तलवार, कवच, भाले, बन्दूक, कटार आदि मौजूद हैं। 1974 में यहां के दु:ख भंजन कुएं में खुदाई में अन्य प्राचीन हथियार भी मिले थे। यह सभी संरक्षित हैं। मान्यता है कि कुएं के जल से स्नान करने पर मिर्गी, कुष्ठ जैसे असाध्य रोगों से छुटकारा मिलता है।

...और जब गुरु नानकदेव की साधना से जिंदा हो उठा युवक

400 साल पहले सिख धर्म के प्रथम गुरु नानक देव जी महाराज निजामाबाद आए थे। तब वह तमसा नदी के पावन तट पर ठहरे। और यही पर रहकर साधना की थी। जनश्रुुति है कि उस दौरान एक कायस्थ परिवार का नवयुवक काल के गाल में समा गया। पति की असामयिक मौत से व्यथित युवती नानक जी की साधना स्थली पर पहुंची और गुरु को व्यथा सुनाई। बताया जाता है कि युवती की व्यथा सुन नानक जी ने अपने तपो बल से युवक को जिंदा कर दिया। बाद में यहीं गुरु नानक देव अपनी चरण पादुका छोड़ उपदेश के लिए दूसरे ठौर पर चल दिये। धीरे-धीरे उनकी चरण पादुका से लोगों की आस्था जुड़ गयी। और इस स्थान पर गुरुद्वारे का निर्माण हुआ।

गुरु तेग बहादुर ने किया 21 दिन तप

प्रथम गुरु की तपोस्थली देख गुरु तेग बहादुर जी भी यहां पधारे। उन्होंने भी नानक जी की तपोस्थली पर 21 दिन तक तप किया। उस दौरान कस्बे में पानी की किल्लत देख गुरु जी ने एक कुंआ खुदवाया। बाद में इसका नामकरण दुख भंजन कुंआ के रूप में हुआ। जनश्रुति है कि इस कुएं के पानी के सेवन से दु:ख दूर होता है। गुरु नानक जी व गुरु तेज बहादुर जी की स्थली के बाद सिख धर्म की यह स्थली काफी महत्वपूर्ण हो गयी। अब सिख समाज का हर व्यक्ति इस स्थली पर मत्था टेकना पुण्य समझता है।

सुरक्षित हैं 20 हस्तलिखित ग्रंथ

गुुरु नानक व तेग बहादुर की चरण पादुका मौजूद होने के कारण इस स्थली का नाम चरण पादुका साहिब पड़ा। गुरुद्वारे में उस दौरान के हस्तलिखित 20 ग्रंथ मौजूद हैं। हस्तलिखित गुरु ग्रंथ साहब के अलावा गुरु गोविंद द्वारा लिखित दशम ग्रंथ भी यहां उपलब्ध है। मान्यता है कि कहीं और दूसरा ऐसा स्थान नहीं जहां गुरु नानक जी, गुरु तेग बहादुर, गोविन्द सिंह और श्रीचन्द्र जी ठहरे हों और तप किया हो। गुरुद्वारे में दु:ख भंजन कुंआ, हस्तलिखित ग्रन्थ, हथियार और पोशाक यहां आकर्षण के केंद्र हैं। इनके प्रति लोगों में अपार श्रद्धा है।