scriptक्या सपा में कायम रहेगा यादवों का 29 साल का वर्चस्व या भारी पड़ेंगे अति पिछड़े नेता | Samajwadi Party will continue supremacy of Yadav in Azamgarh or backwa | Patrika News

क्या सपा में कायम रहेगा यादवों का 29 साल का वर्चस्व या भारी पड़ेंगे अति पिछड़े नेता

locationआजमगढ़Published: Nov 25, 2022 08:11:23 am

Submitted by:

Ranvijay Singh

समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष आजमगढ़ की कुर्सी पर 29 साल से यादवों का कब्जा है। उपचुनाव में मिली करारी हार के बाद क्या इस बार सपा किसी अति पिछड़े को मौका देगी। 20 दावेदारों के बीच कुर्सी के लिए कश्मकश है। पहली बड़ी संख्या में अति पिछड़ों ने दावा ठोका है।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव

लोकसभा उपचुनाव में रामपुर और आजमगढ़ सीट हारने के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव ने पार्टी की सभी ईकाइयों को भंग कर दिया। अब नए सिरे से संगठन खड़ा करने की तैयारी हो रही है।

साल 2017 में हार के बाद भी अखिलेश ने ऐसा ही किया था, लेकिन वे आजमगढ़ में जिलाध्यक्ष का चयन नहीं कर पाए थे। हवलदार यादव को दोबारा जिम्मेदारी सौंपी थी।

सपा में 29 साल से यादव ही जिलाध्यक्ष चुने गए हैं। इन्हीं का पार्टी में वर्चस्व है। पहली बार बड़ी संख्या में सवर्ण और अति पिछड़ों ने अध्यक्ष पद की दावेदार ठोक दी है।

ऐसे में सवाल है कि क्या यहां यादवों का वर्चस्व कायम रहेगा या फिर 2024 में जातीय समीकरण साधने के लिए अखिलेश किसी सवर्ण अथवा अति पिछड़ा को मौका देंगे। वैसे पार्टी की गुटबाजी के देखते हुए अखिलेश के लिए फैसला आसान नहीं होने वाला।

पहली बार हारा मुलायम का परिवार
आजमगढ़ जिला सपा का गढ़ कहा जाता है। साल 2014 में मोदी लहर के बाद भी आजमगढ़ संसदीय सीट से मुलायम सिंह यादव सांसद चुने गए। इसके पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को 10 विधानसभा सीटों में 9 पर जीत मिली थी। पार्टी साल 2017 में भी 5 सीट जीतने में सफल रही। साल 2029 के लोकसभा चुनाव में सपा मुखिया अखिलेश यादव आजमगढ़ सांसद चुने गए।

साल 2022 में अखिलेश के त्यागपत्र के बाद सीट खाली हुई तो यहां उपचुनाव में अखिलेश यादव ने अपने चचेरे भाई को धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा। धर्मेंद्र यादव चुनाव हार गए और बीजेपी दूसरी बार आजमगढ़ सीट जीतने में सफल रही। जबकि सपा ने साल 2022 के विधानसभा में सभी दस विधानसभा सीटें जीती थी। हार का कारण यादव के साथ अति पिछड़ों का साथ देना न रहा। ऐसे में गढ़ मेें दोबारा वर्चश्व कायम हो इसके लिए अखिलेश के सामने अध्यक्ष की कुर्सी को लेकर फैसले की चुनौती है।

यह भी पढ़ेः क्या मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव पर लगेगी रोक? हाईकोर्ट से सुनवाई के लिए मंजूर की सुभासपा की याचिका, जानिए कब होगी सुनवाई

 

पूर्व मंत्री डॉ. रामदुलार राजभर

जिलाध्यक्ष के लिए 20 से अधिक दावेदार
आजमगढ़ में सपा जिलाध्यक्ष की कुर्सी के लिए 20 से अधिक दावेदार हैं। निवर्तमान अध्यक्ष हवलदार यादव तीसरी बार कुर्सी संभालना चाहते हैं। वहीं छात्र नेता पप्पू यादव आठ साल से इस कुर्सी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। पूर्व मंत्री बाहुबली दुर्गा प्रसाद यादव अपने करीबी हरिश्चंद यादव या शिव मूरत यादव को अध्यक्ष बनाना चाहते हैं।

वहीं फूलपुर के पूर्व विधायक श्याम बहादुर यादव खुद अध्यक्ष बनना चाहते है। छात्रनेता लालू यादव, शैलेंद्र यादव, अमित यादव और आशीर्वाद यादव भी अध्यक्ष बनने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं। यहीं नहीं पूर्व ब्लाक प्रमुख प्रमोद यादव भी अध्यक्ष बनने की कोशिश में जुटे हुए है। आशीर्वाद के सिर पर पूर्व मंत्री बलराम यादव का हाथ है।

बात करें सर्वण नेताओं की तो अब तक शिशुपाल सिंह ने खुलकर दावेदारी की है। वहीं अति पिछड़ा वर्ग से पूर्व मंत्री डॉ. राम दुलार राजभर खुलकर दावेदारी ठोक रहे है। इनके अलावा आधा दर्जन ऐसे नेता है जो खुलकर सामने नहीं आ रहे है।

29 साल से अध्यक्ष की कुर्सी पर यादवों का वर्चश्व
समाजवादी पार्टी जिलाध्यक्ष की कुर्सी पर 29 साल से यादवों का वर्चस्व कायम है। वर्ष 1992 में सपा के गठन के बाद राम दर्शन यादव पहले जिलाध्यक्ष चुने गए और वे 2009 तक अध्यक्ष की कुर्सी पर कायम रहे। इसके बाद वर्ष 2009 में अखिलेश यादव सपा के जिलाध्यक्ष चुने गए।

वर्ष 2012 में अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी हवलदार यादव को सौंपी गई। तब से वही इस पद पर काबिज हैं। वर्ष 2017 के चुनाव के बाद जब अखिलेश यादव ने सभी इकाईयों को भंग किया था तो उस समय माना जा रहा था कि शायद कोई नया अध्यक्ष मिलेगा लेकिन फिर हवलदार को ही मौका दिया गया।

 

यह भी पढ़ेः दुष्कर्म का फर्जी एफआईआर कराने वाले गिरोह पर हाईकोर्ट सख्त, कार्रवाई का आदेश जारी

 

 

सपा जिलाध्यक्ष हवलदार यादव

अखिलेश के लिए आसान नहीं अध्यक्ष का चुनाव
सपा मुखिया अखिलेश यादव के लिए आजमगढ़ जिलाध्यक्ष का चयन एक बड़ी चुनौती है। पार्टी गुटों में बंटी हुई है। हर गुट से कोई न कोई अध्यक्ष की लड़ाई में है। हाल में हुए उपचुनाव में हार के बाद जातीय समीकरण साधाना अखिलेश के लिए 2024 के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। कारण कि उपचुनाव में सपा को पांच में से चार विधानसभा क्षेत्रों में हार मिली जबकि सभी जगह उन्हीं विधायक हैं। जिले में 18 प्रतिशत यादव है। अखिलेश की मजबूरी है कि उन्हें छोड़ नहीं सकते और यहां 25 प्रतिशत के आसपास अति पिछड़े है जिसकी मदद के बिना कोई चुनाव जीत नहीं सकते। यही वजह है कि इस बार भी सपा मुखिया के लिए चयन आसान नहीं होने वाला।

अति पिछड़ों की नाराजगी बढ़ाएगी सपा की मुश्किल
सपा जिलाध्यक्ष की कुर्सी को लेकर संसय बना हुआ है। कारण कि अति पिछड़े और सवर्ण नेता चाहते हैं कि उन्हें मौका मिले। जबकि यादव नेता चाहते हैं कि आबादी की दृष्टि से उन्हें प्राथमिकता दी जाए। ऐसे में अगर अखिलेश किसी यादव को अध्यक्ष बनाते हैं तो दूसरी जातियां नाराज होंगे। नहीं बनाते तो यादव मतदाताओं के छिटकने का खतरा होगा। अब देखना यह दिलचस्प होगा कि अखिलेश यादव निर्णय क्या लेते है। क्या एक बार फिर यादव के सिर पर ताज सजता है अथवा उनका 29 साल पुराना वर्चश्व तोड़ कोई गैर यादव सीट पर काबिज होता है।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो