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कैसे स्कूल चलें हम, शिक्षा के मंदिरों की स्थिति दयनीय

खतरों के साथ नए सत्र की शुरूआत

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खतरों के साथ नए सत्र की शुरूआत

खतरों के साथ नए सत्र की शुरूआत

नए शिक्षण सत्र शुरु होने पर भी शालाएं जर्जर हंै। शिक्षा विभाग में 2200 प्राथमिक, 668 माध्यमिक, 84 हाई स्कूल, 54 हायर सेकेंडरी स्कूल संचालित है। एक आंकलन के मुताबिक इनमें 40 प्रतिशत से अधिक स्कूल जर्जर अवस्था में है। केवल पांच प्रतिशत स्कूलों में ही सुधार कार्य हो रहे हंै। अकेले प्राथमिक व माध्यमिक की बात करें तो करीब 1200 स्कूल ऐसे हैं, जिनमें कक्षाएं लगाना जरा भी मुनासिब नहीं है। स्वयं डीपीसी इस बात की पुष्टि करते हंै। कहना है कि शासन को प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है।
16 जून से स्कूलों में बच्चों की कक्षाएं लगनी शुरू हो रही है। बच्चों को खतरा मोल लेकर इन्हीं जर्जर छतों के नीचे बैठाया जाएगा। विभागीय अधिकारी भी इस बात को मानते हैं। लेकिन बजट के अभाव में काम नहीं हो पा रहे हैं। पत्रिका ने जिले के कुछ ऐसे ही स्कूलों का मुआयना किया तो हालात चिंताजनक नजर आए।

खंडहर में तब्दील भवन, खिडक़ी पल्ले भी गायब

शासकीय प्राथमिक स्कूल मोहगांव लालबर्रा पूरी तरह से खंडहरनुमा स्थिति में दिखाई देता है। स्कूल भवन के चारो तरफ झाडिय़ां ऊग आई है। खिडक़ी पल्ले सब गायब हो चुके हैं। यहां स्कूली बच्चों को तो दूर की बात ग्रामीण अपने जानवर बांधना भी पसंद नहीं करेंगे। भवन की नींव भी काफी कमजोर हो गई है। यहां एक कमरा भी ऐसा नहीं है। जिसमें पानी न टपकता हो। विभागीय जानकारी के अनुसार यहां एक से पांच तक की कक्षाओं में 94 बच्चे दर्ज है। स्कूल स्तर से जानकारी डीईओ सहित अन्य अधिकारियों ने भेज दी गई है। लेकिन मामला सिफर है।

कच्ची जर्जर छत, झांकती रही सूर्य की किरणें

लालबर्रा के ही सालईटोला का प्राथमिक स्कूल भी कम नहीं है। करीब दो दशक से अधिक समय पुराना यह भवन डिस्मेंटर की स्थिति में पहुंच रहा है। लेकिन अब तक यहां नए भवन के लिए कार्य प्रारंभ नहीं किए गए हैं। बीआरसी कार्यालय के अनुसार यहां एक से 5 तक करीब 33 बच्चे शिक्षा अध्यन करते हैं। मैदान का अभाव है। शौचालय, पेशाब घर पूरी तरह कबाड़ खाने में तब्दील हो गए हैं। बच्चों को यहां बैठाना गंभीर खतरा मोल लिए जाने जैसा है। लेकिन मजबूरन बच्चों को बैठाया जाएगा।

उपेक्षा का शिकार यह स्कूल

लालबर्रा जनपद क्षेत्र का प्राथमिक माध्यमिक स्कूल टेंगनीखुर्द के हाल भी बेहाल दिखाई दिए। नए सत्र की शुरूआत को लेकर भी यहां कोई इंतजाम नहीं किए गए हैं। बाहर से ठीक दिखने वाले इस स्कूल के हालात अंदर प्रवेश करने पर पता चलते हैं। प्रवेश द्वार के दरवाजे की दीवार में बड़ी दरार है। भवन की छत जर्जर है। खिड़कियों में पल्लों की कमी के साथ ही कक्षाओं की हालत जर्जर है। इस स्कूल में भी भारी बारिश में पानी स्कूल में प्रवेश करेगा। हर बार मरम्मत के लिए प्रस्ताव भेजा जाता है। लेकिन हर बार उपेक्षा की हाथ लगती है। यहां एक से आठ तक करीब 101 बच्चे पंजीकृत है।

पुरानी हवेली की तरह हुआ स्कूल भवन

प्राथमिक स्कूल बांदरी का भवन भी काफी पुरानी प्रतीत होता है। वर्षाे से रंग रोंगन और मरम्मत नहीं होने से अलग ही काया स्कूल की नजर आती है। यहां एक से पांचवी तक के 33 बच्चे पंजीकृत है। आधुनिक शिक्षा के इस युग में भी यह स्कूल भवन पिछड़ों की तरह नजर आता है। सामने से भवन बैठने लायक दिखता है। लेकिन भवन अगल बगल व पीछे से यह किसी पुरानी हवेली की याद दिलाता है। कुछ कमरों की खिड़कियों से पल्ले गायब हो गए हैं। अस्वच्छता का माहौल बना हुआ है। घास भी ऊग आई है। यहां भी स्कूल चले हम को लेकर कोई तैयारियां दिखाई नहीं देती है।

जिम्मेदारों की अपनी अलग मजबूरी

जिला शिक्षा केन्द्र के जिम्मेदारों की अपनी अलग मजबूरियां है। डीपीसी जीपी बर्मन के अनुसार आधुनिक महंगी शिक्षा के बीच सरकारी स्कूलों का शिक्षा के क्षेत्र में काफी महत्व है। हालाकि इन स्कूलों के नए भवन या मरम्मत को लेकर कोई योजनाएं नहीं है। आवंटन के अभाव में विभाग चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता है। केवल अतिरिक्त कक्ष निर्माण के लिए राशि स्वीकृत हो पाती है, इसके लिए भी काफी संघर्ष करना पड़ता है। बर्मन के अनुसार यदि ऐसे स्कूलों को अंशदान दिया जाए, या धनाड्य वर्ग व जनप्रतिनिधि मदद करें, तो ऐसे स्कूलों की जरूरतें भी पूरी की जा सकती है। केवल सरकार और महकमें को जिम्मेदार ठहराया जाना न्याय संगत नहीं है।
वर्सन
नए भवन या मरम्मतीकरण का कोई प्रावधान है। बजट के अभाव में स्कूलों में काम नहीं हो पाए हैं। हालाकि नए सत्र को लेकर दिशा निर्देश दिए गए हैं। जिन स्कूल भवनों में बिलकुल भी बैठक व्यवस्था नहीं है। वहां वैकल्पिक व्यवस्थाएं बनाई जाएगी।
घनश्याम प्रसाद बर्मन, डीपीसी


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