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बरसती है मां की महिमा, मौजूद है आल्हा-उदल के प्रमाण

कव्हरगढ़ क्षेत्र देख पर्यटकों का दिल हो जाता है, बाग-बाग, 15 वीं-17 वीं शताब्दी की है पाषाण प्रतिमाएं

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बरसती है मां की महिमा, मौजूद है आल्हा-उदल के प्रमाण

बरसती है मां की महिमा, मौजूद है आल्हा-उदल के प्रमाण

बालाघाट/लालबर्रा- घने जंगलों के भीतर ऊंची पहाडिय़ों पर स्थित राजस्व ग्राम कव्हरगढ़ के वन्य क्षेत्र की प्रसिध्दि लंबे समय से आल्हा-उदल की रण किवदंती आज भी लोगों के मानस पटल पर विद्यमान है। ग्राम पंचायत रानीकुठार अंतर्गत ऊंची-ऊंची पहाडिय़ों से ढंके कव्हरगढ़ क्षेत्र का प्राकृतिक सौंदर्य न सिर्फ देखने लायक है। बल्कि यहां पर जगह-जगह पर पंद्रहवीं से सत्रहवीं शताब्दी के मध्यकाल की पाषाण प्रतिमाओं के रूप में आल्हा-उदल की लड़ाईयों के चित्र विद्यमान है। एक ओर पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित माता रानी बोबलाई देवी (मां बम्लेश्वरी) का मंदिर है तो दूसरी ओर स्थित शीर्षस्थ पहाड़ी पर आल्हा-उदल का दरबार क्षेत्र। सोना रानी का पलंग, सीता की नहेरनी व हनुमान जी सहित अनेक दर्शनीय स्थल सुशोभित है। इस क्षेत्र को इतिहास व पुरातत्व शोध संस्थान द्वारा संरक्षित घोषित किया गया है।
जानकारी के अनुसार बोबलाई मां के दरबार के ठीक नीचे कुटिया और अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थित है। पंडा बिरनसिंह परते ने इस कुटिया का निर्माण किया था। परंतु वर्तमान में पंडा सुनील पंद्रे अपनी सेवा दे रहे है। कुटिया के पास ही राधा-कृष्ण, भगवान विष्णु, भगवान शंकर, नंदी की पिंडी, आल्हा-उदल की प्रतिमा और सिंहवाहिनी की मूर्ति विराजित है। सीढियों के मध्य दांयी ओर भगवान भैरवनाथ की मूर्ति स्थित है, माता रानी के दरबार तक पहुंचने के लिए चट्टानों से ढंकी एक सुरंग से जाना पड़ता है, जिसके दांयी ओर एक सीधी खाई पड़ती है। अष्टमी पर्व पर यहां जवारे बोए जाते है और भक्तजन नवरात्रि के पर्व पर माता रानी की पूजा अर्चना भी करते हैं। माता रानी के दरबार के नीचे लगभग 200 मीटर पश्चिम दिशा में स्थित बावड़ी में तेज गर्मी में भी जल से भरी रहती है। बावड़ी में टूट-फूट के बाद जून 2004 में वन सुरक्षा समिति द्वारा इसका रखरखाव किया गया।
कव्हरगढ़ पहाड़ी की चढ़ाई इतनी कठिन है कि रास्ते में बार-बार कंठ सूख जाते है। इसलिए बावड़ी या कुएं से पानी भरने के बाद लगभग 2000 मीटर की सीधी दुर्गम चढ़ाई प्रारंभ होती है। रास्ते में दो सुरंग मिलती है जिसमें प्रथम सुरंग की लंबाई 50-60 फीट और दूसरी सुरंग की लंबाई करीब 30 फीट है। सुरंग के बाद हनुमान जी के दर्शन होते है। पहाड़ी के शीर्ष बिंदु से देखने पर आसपास के खेतों में चरने वाले मवेशी भी छोटे-छोटे जीव-जंतु की आकृति के दिखाई देते है। कचहरी चौक से आगे दो चट्टानों के मध्य माता सीता की नहेरनी स्थित है, इतनी ऊंचाई पर भी इस स्थान पर हमेशा पानी की उपलब्धता बनी रहती है।