
छत्तीसगढ़ी शब्द कोष और मानक छत्तीसगढ़ी व्याकरण तैयार करने वाले मर्मज्ञ थे चंद्रकुमार
नीरज उपाध्याय/बालोद. छत्तीसगढ़ी और हिंदी में साहित्य सृजन के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करने वाले चंद्रकुमार चंद्राकर का 25 सितंबर को स्मृति दिवस है। उनके असामयिक निधन से पूरा छत्तीसगढ़ स्तब्ध है। छत्तीसगढ़ी भाषा की समृद्धि और विकास में रम कर भाषाविद् के रूप में सुविख्यात चंद्राकर सन 2000 में छत्तीसगढ़ी शब्द कोष, 2006 में मानक छत्तीसगढ़ी व्याकरण, 2008 में छत्तीसगढ़ी मुहावरा कोष को छत्तीसगढ़ राज्य हिंदी ग्रन्थ अकादमी रायपुर द्वारा प्रकाशित की गई।
कार्य क्षेत्र में एकाग्रता एवं गतिशीलता बनाए रखें
वर्ष 2012 को वृहत छत्तीसगढ़ी शब्दकोष, 2016 छत्तीसगढ़ी भाषा का वर्तमान स्वरूप जैसी अनेक शोध परक किताबों की रचना कर छत्तीसगढ़ी साहित्य को समृद्ध और संपन्न किए। ऐसे व्यक्तित्व की पुरस्कार और सम्मान पर नजरिया कुछ अलग ही था। चंद्रकुमार कहते थे अपने कार्य क्षेत्र में एकाग्रता एवं गतिशीलता बनाए रखते हुए योग्यता की सर्वोच्चता तक पहुंचने का निरंतर प्रयास ही सर्वोत्तम पुरस्कार है। साहित्य एवं कला एक तीर्थ के समान है जहां निरंतर प्रोत्साहन और आशीर्वाद प्राप्त करना गौरव की बात है।
जन्मभूमि और शिक्षा भूमि को किया गौरवान्वित
भाषाविद् रहे चंद्रकुमार के गुरु राष्ट्रपति से सम्मानित पूर्व प्राचार्य सीताराम साहू श्याम से मिली जानकारी अनुसार जिले के ग्राम पैरी से 3 किमी पश्चिम में स्थित पवित्र तांदुला नदी के तट पर गौरैया पावन धाम है, जहां प्रतिवर्ष माघपूर्णिमा को तीन दिनों का मेला लगता है। इसी तीर्थ से लगे ग्राम चौरेल में 22 जनवरी 1962 को दाऊ गंगाप्रसाद चंद्राकर व गिरजादेवी के आंगन में पुत्र चंद्रकुमार का जन्म हुआ था।
प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल में
प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल में हुई। 11वीं की पढ़ाई समीप ग्राम पैरी के श्रीराम विद्या मंदिर उच्चतर माध्यमिक शाला से की। साहित्य का बीजारोपण वहां के अध्यापक एवं जिले के वरिष्ठ साहित्यकार, लोक गायक गुरु सीताराम साहू 'श्यामÓ के सानिध्य में कर शिक्षा भूमि को गौरवान्वित किया। गुरु सीताराम के अनुसार भूगोल विषय में एमए, एमफिल की उपाधि प्राप्त करने के बाद चंद्रकुमार ने संत राजाराम शदाणी महाविद्यालय डौंडीलोहारा में प्राचार्य पद को सुशोभित किया।
परिवार ने दिया आगे बढऩे में सबल
छत्तीसगढ़ की माटी का ऋण चुकाने के लिए चंद्रकुमार की उपलब्धियों में उनके परिवार का बड़ा योगदान और सहयोग रहा। पिता गंगा प्रसाद चंद्राकर, ससुर भागवत प्रसाद चंद्राकर जाने माने समाजसेवी, मानस मर्मज्ञ और संस्कारवान व्यक्ति के रूप में समादृत हैं। उनका प्रभाव चंद्रकुमार पर पड़ा। साहित्य सेवा में स्व. माता गिरजादेवी, अर्धांगिनी व्याख्याता उपासना चंद्राकर, बिटिया तनुश्री, रीतिका, भाई बलदाऊ और घनश्याम तथा अन्य परिजन ने चंद्रकुमार को संबल दिया।
उनकी उपलब्धियों पर ये मिला सम्मान
हरिठाकुर सम्मान 2003
चंद्राकर समाज रत्न सम्मान 2004
छत्तीसगढ़ रत्न सम्मान 2004
अंतर्राष्ट्रीय ब्राह्मण समाज द्वारा सम्मान 2012
निखिल शिखर शिरोमणी अलंकरण 20016
रविशंकर विश्वविद्यालय कार्यसमिति के रहे सम्माननीय सदस्य
शिक्षक सीताराम के अनुसार चंद्रकुमार चंद्राकर की विद्वता से प्रभावित होकर आपको रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर की कार्यसमिति के सम्माननीय सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया था। संकोची स्वभाव, प्रकृति प्रेमी, एकांत चिन्तन, शोध, एकांत साधना उनकी अप्रतिम विशेषता रही है। जीवन के अंतिम क्षणों तक उनकी सृजनशीलता बनी रही। शिक्षक सीताराम साहू ने बताया कि छत्तीसगढ़ी हाना-बाना और मुहावरे एवं छंद पर आकाशवाणी रायपुर में वार्ता रिकॉर्ड करवाने के लिए बहुत मुश्किल से मेरे आग्रह पर तैयार हुए। बीमारी की वजह से यह रिकॉर्डिंग दो तीन बार टलते रही।
कैंसर से लड़ते हुए हार गया कलम का यह योद्धा
पूर्व प्राचार्य चंद्रकुमार का बालोद जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की जीवनी लेखक के रूप में डौंडीलोहारा के आसपास के गांव के सेनानियों की जीवनी लिखकर अपनी सक्रियता दिखायी और लेखक के साथ और भी कई जगह जाकर इसमें सहयोग की इच्छा जताई थी। गुंडरदेही से निकलने वाला बालोद जिले का एकमात्र अखबार लोक असर के वे मान्य संरक्षक रहे। छत्तीसगढ़ी भाषा के उदभट और अच्छे इंसान के रूप में राजनीतिज्ञों, साहित्यकारों तथा कलाकारों के प्रिय पात्र रहे। भाषा और कलम का यह योद्धा कैंसर से लड़ते हुए 16 सितंबर 2018 को जिंदगी की बाजी हार गया। छप्पन वर्षीय ऐसे विलक्षण मेधावी भाषाविद् को विनम्र श्रद्धांजलि देने 25 सितंबर को परिवार, समाज, सहपाठी, गुरूजन, यूनिवर्सिटी का स्टॉफ सहित पूरे राज्य से साथी जुटेंगे।
शोक सभा का आयोजन किया
स्थानीय साहित्यकार सीताराम साहू, कमलेश चंद्राकर, जगदीश देशमुख, मिथलेश शर्मा, दरवेश आनंद, केशव साहू से लेकर दुर्गा पारकर, डीपी देशमुख, दीनदयाल साहू, डॉ. व्यास नारायण दुबे, डॉ. रमेश चंद्र मेहरोत्रा, त्रिभुवन पांडे, मुकुंद कौशल, रामहृदय तिवारी जैसे मूर्धन्य विद्वान उनकी प्रतिभा के कायल रहे हैं। रविशंकर विवि परिवार ने अपनी कार्यसमिति के सदस्य के निधन पर शोक सभा का आयोजन किया।
Published on:
25 Sept 2018 08:20 am
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