Ajab-Gajab: वर्षों से इस परंपरा (Tradition) का किया जा रहा है निर्वहन, ढोल सहित अन्य पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर नाचते-गाते मेंढकी के घर पहुंचे बाराती
Procession of Frogs marriage
वाड्र्रफनगर. ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोग देवी-देवताओं का खुश करने वर्षोँ से चली आ रही कई परंपराओं का निर्वहन करते आ रहे हैं। ऐसी ही एक परंपरा है मेंढक और मेेंढकी की शादी की। इसमें किसान वर्ग के लोग इंद्रदेव को खुश करने मेंढक और मेंढकी की शादी कराते हैं।
इसमें सैकड़ों की संख्या में महिला-पुरुष शामिल होते हैं। ऐसी मान्यता है कि मेंढक-मेंढकी की शादी कराने से इंद्रदेव प्रसन्न होंगे और जमकर बारिश होगी। बारिश के कारण हमारे खेतों में फसलें लहलहाने लगेंगीं।
इंद्रदेव को खुश करने मेढ़क व मेंढ़की की शादी बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के वाड्रफनगर विकासखंड अंतर्गत ग्राम कोल्हुआ व पेंडारी में भी कराई गई। यहां के बैगा व पटेल की अगुवाई में कोल्हुआ के सैकड़ों महिला-पुरुष किसान मेंढक का विवाह कराने मेंढकी के गांव पेंडारी पहुंचे।
IMAGE CREDIT: Frogs marriage for raining इस दौरान पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप और धुन पर वे नाचते-गाते (Dance-singing) रहे। ग्राम पेंडारी के लोगों ने भी बारात का जमकर स्वागत किया। इसके बाद विधि-विधान से मेंढक व मेंढकी की शादी (Frogs marriage) कराई गई।
आदिवासी समाज में मान्यताओं पर आधारित है परंपरा आदिवासी समुदाय के लोगों के द्वारा समाज के मुखिया के मार्गदर्शन में परंपरा अनुसार मेंढक व मेंढकी की शादी कराई गई। साथ ही यह विश्वास जताया गया कि मेंढक-मेंढकी के विवाह होने से निश्चित रूप से बारिश होगी। हमारी फसलों में फिर से जान आ जाएगी और फसल मरने से बच जाएगी।
IMAGE CREDIT: Frogs marriage in Balrampur district इधर सरकारी तंत्र भी किसानों के खेतों में लगातार पानी पहुंचाने के लिए लगा हुआ है। इसके बावजूद किसानों को प्रकृति पर आश्रित रहना पड़ रहा है। यही कारण है कि 21वीं सदी में भी लोग मेंढक-मेंढकी की शादी कराकर विश्वास जता रहे हैं।